दुनिया की किसी भी सभ्यता/संस्कृति में भारत जैसी गुरू की कल्पना नहीं है-यह बात प्रख्यात चिन्तक, विचारक, दार्शनिक स्तम्भकार/विधान परिषद सदस्य मा0 श्री हृदय नारायण दीक्षित ने मुख्य अतिथि के तौर पर ओशो ध्यान केन्द्र, महानगर में आयोजित गुरू पूर्णिमा के अवसर पर कही। उन्होंने कहा कि मौलवी, पादरी आदरणीय हैं लेकिन वे सब अपने-अपने पथ, मजहब, रिलीजन की शिक्षा देकर बांधते है परन्तु भारतीय परम्परा का गुरू सभी बन्धनों से मुक्त करता है।
श्री दीक्षित जी ने यह भी कहा कि गुरू उर्जा का बड़ा पिण्ड है, शिष्य छोटा। उर्जा बड़े पिण्ड से छोटे पिण्ड की तरफ प्रवाहित होती है। यह प्रकृति का नियम है जिसे विज्ञान ने सिद्ध कर दिखाया है। गुुरू महा पावर हाउस से उर्जा लेने में सक्षम है। गुरु ट्रान्सफार्मर का काम करता है वह पावर हाउस से उर्जा लेकर शिष्य के पास ट्रान्सफर करता है।
उन्नीसवीं सदी में यूरोप के लोगों को विश्व के अधिकांश हिस्से में तूती बोलती थी। बीसवीं सदी में अमेरिका का बोलबाला था, परन्तु इक्कीसवीं सदी में भारत को ज्ञान, भारती की आभा, भारत की प्रज्ञा, भारत की संस्कृति पूरे विश्व में फैलगी। भारत विश्व गुरू बनकर रहेगा।
इस अवसर पर श्री राम अजोर पाण्डेय, शिव प्रताप सिंह स्वामी आनन्द, राजेश सिंह, डा. विजय, डा. रिचा, मोहन स्वामी आदि सैकड़ों लोग उपस्थिति थे, कार्यक्रम के आयोजक श्री शिव प्रताप सिंह ने अतिथियो का आभार व्यक्त किया कार्यक्रम देर रात तक चलता रहा।
शिव प्रताप सिंह
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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