जनपद मे राजस्व कर्मियो पर जिलाधिकारी का कोई नियंत्रण नही रह गया है न भय है न डर सभी वाद कारियो और बेरोजगारो छात्रो को आय जाति निवास बनवाने मे बिना २००रु० से १०००रु० तक की वसूली जारी है।
तहसील मे लेखपालो कानूनगो द्वारा अपने प्राईवेट मुंशियो की मनमानी लिखी रिर्पोट पर आंख मूंद कर दस्तखत कर देते है कारण साफ है कि रिपोर्ट तभी लिखी जाती है जब घूस की रकम अन्दर जेब मे आ जाती है यही प्रव्रिहृया लेखपाल के बाद कानूनगो फिर नायब तहसीलदार तक अपनाई जा रही है।
कुछ लोग इससे बचने के लिये जिले मे अपर जिलाधिकारी के नेतृत्व मे चलाई जा रही जन सुविधा केन्द्र में जाते है वहां भी यही हाल है पैसे देने पर १ घण्टे मे सारी रिर्पोटिग पूरी हो जाती है और पैसा न देने पर निर्धारित दिवस पर भी आय जाति निवास नही बन पाता।
भले ही बेरोजगार का काम हो या न हो हालात यह है कि सब कुछ बिना नियंत्रण के चल रहा है तहसीलदार नायब समेत सभी आंख मूंदे इस परंपरा को निभा रहे है उस व्यवस्था को आगे बढाने के लिए निजी लोगो को भी जनसुविधा केन्द्र की प्रहृेंचाइजी बांटी गई है मगर वो भी लोग कुछ को छोडकर इन राजस्व कर्मियो के कुछ को छोडकर इन राजस्व कार्मियो के रवैये से पंगु हो चुके है।
उनके यहां आने वाले फार्मो पर ये लेखपाल कानूनगो आदि रिपोर्ट नही लगाते जो लोग सीधे यहां आते है उन्हे घूस देने पर तत्काल सुविधा प्राप्त है । पहले तो सब कुछ ढंका तुपा था मगर अब खुले आम पैसा लिया जाता है तहसील मे चर्चा है कि इस तरह वसूली गई रकम से उच्चाधिकारियो के बंगले की दैनिक वस्तुएं खरीदी जाती है जिसके लिए वाकायदा तहसीलदार के चपरासी को दोपहर मे बंगले से पर्ची भेजी जाती है जो लगभग २ से चार हजार तक होती है। जिसके लिए पूरे राजस्व विभाग की सभी पटल पर चपरासी द्वारा या शुक्ला जी द्वारा वसूली होती है ।
हैरत है कि महीने मे ५० हजार से १ लाख तक वेतन पाने वाले अधिकारी भी हजार दो हजार का घरेलू समान नही खरीद पाते है पूर्रि्त के लिए तहसीलो मे घूस खोरी को बढावा दिया जा रहा है इसी के आड़ मे गांव गरीबो, बेरोजगारो, जरुरतमंदो से वसूली की जा रही है।
यही कारण है कि आये दिन खबरे छापने ज्ञापन मिलने विरोध होने पर भी जिला प्रशासन द्वारा तहसीलो के चपरासी तक को नही हटाया जाता है न ही कार्यवाही की जाती है जनता ने और समाज सेवियो ने इन भ्रष्टाचारी व्यवस्था को तत्काल समाप्त करने की मांग की है ।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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