जनपद के सरकारी विभाग और अधिकारी स्वयं एक्ट और शासना देश को तोडने मे लगे है । हैरत है कि नियतिप्राधिकारी जिनको इस एक्ट का पालन कराने का प्रभार दिया गया है वो स्वयं इसे तोडने मे लगे है ।
गौरतलब हो कि जनपद को सुव्यवस्थित बसाने के लिए महा योजना लागू है जिसका कि नगर मुख्यालय व आस पास के क्षेत्र में इसका प्राधिकार एक्ट के माध्यम से लागू है इस आर.वी.ओ. एक्ट का पालन सभी को करना अनिवार्य है जिसमें आम जनता सरकारी विभाग, निगम, पालिका परिषद, जला पंचायत आदि सभी के निर्माण कार्यो का मानचित्र इस एक्ट के प्राविधान के अनुसार ही होना चाहिए जिससे निर्माण कर्ता को निर्मित भूखण्ड का एक निश्चित मानक व निश्चित शुल्क जमा करना अनिवार्य होता है ।
यह धनराशि वाकायदा एक हेड के जरिये बैंक मे जमा की जाती है । जिससे विभाग के सरकारी राजस्व प्राप्त होता है । मगर विडंबना यह हेै कि प्राधिकार क्षेत्र के आम नागरिक तो इस एक्ट का पालन करते है मगर न तो नगर पालिका परिषद ना ही जिला पंचायत और न ही सरकारी विभाग इस एक्ट का पालन करते है न ही विकास शुल्क ही जमा करते है जिससे प्रतिमाह लाखो का राजस्व का नुकसान इस विभाग व सरकार को होता जा रहा हेै वही इस भेद भाव से जनता में भी भारी आव्रहृोष है साथ ही मजबूरी है कि विभाग एक्ट का पालन न करने पर निर्माण ध्वस्थ करा सकता है या जुर्माना लगा सकता है ।
वही दूसरी ओर सरकारी विभाग मनमर्जी दुकानो व व्यवसायिक काम्पलेक्स का निर्माण करते है और न मानचित्र स्वीकृत कराते है न ही विकास शुल्क ही जमा कराया जाता है नजीर के तौर पर नगर मे बन रहे ट्रांसपोर्ट नगर को लिया जा सकता है जिसमें सैकडो दुकाने व दर्जन भर शोरुम बिना मानचित्र स्वीकृती के धडल्ले से एक्ट का उल्लंघन कर बनाया जा रहा है और उसके भी कोई और नही स्वयं नियति प्राधिकारी बतौर अधिशाषी अधिकारी बनवा रहे है यही नही इस गैर स्वीकृत मानचित्र वाली कम्पलेक्स का शिलान्यास जिला नियंत्रक ने किया है और इसे अवैध कार्यो का संरक्षण भी यही अधिकारी कर रहे है ।
अब इन्ही की देखादेखी जिला पंचायत ने भी बिना मानचित्र स्वीकृत कराये बी.एस.ए. प्रांगण मे दुकानो का निर्माण शुरु कर दिया है । मगर रोकने वाला कोई नही है न मानचित्र का पता न विकास शुल्क का पता चूंकि मामला सरकारी है और कानून कायदे मात्र निर्बलो और आम जनता के लिए है सरकारी अधिकारी तो स्वयं में संविधान और शासना देश हो चुका है । उस पर कौन सा एक्ट प्रभावी होगा सरकार लाखो रुपये वेतन, बंगला, गाडी और आम जनता से सुरक्षा के लिए सुरक्षा गार्ड मय असलहा प्रदान करती है ।
विभाग शरीफो को मान चित्र न होने पर जुर्माना करता है पुलिस भेजकर हडकाता है । जेल भिजवाता है मगर इन अधिकारियों को कौन बोलेगा जनपद मे तो स्वयं ये अधिकारी ही मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, माननीय मुख्य न्यायाधीश बन चुके है जो ये कहते सुनते है वही कानून होता है । हद तो तब हो जाती है जब मानचित्र स्वीकृत कराने के लिए गैर सरकारी हजारो रुपये खर्च करने के बाद भी फाईल जे.ई. व नियतिप्रधिकारी के बंगले तक महिनो मे पहुंचती है । तब तक भवन निर्माता विभाग के सैकडो चक्कर लगाता है और भवन का शिलान्यास तक नही हो पता मगर यहां सरकारी विभाग चाहे जहां निर्माण चाहे जब करा ले शर्त यह है कि शिलान्यास डी.एम. या मंत्री विधायक से करा दें सारे कानून उसी दिन समाप्त मान लिया जाता है ।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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