द्रुपका बौद्धों ने यहां हेमिस मोनास्ट्री में दो दिन तक वार्षिक हेमिस फेस्टिवल मनाया। इसमें दुनिया भर से आए 75,000 से ज्यादा मेहमानों ने हिस्सा लिया। उन्हें लद्दाख के आध्यात्मिक प्रमुख महामहिम महामहिम ग्यालवंग द्रुपका ने आशीर्वाद दिया। यह त्यौहार पांचवें चंद्रमास के 10वें और 11वें दिन मनाया जाता है। हेमिस फेस्टिवल आठवीं सदी के भारतीय गुरू पंद्मसंभव या गुरू रिनपोचे के जन्म की सालगिरह है जिन्हें पूरे हिमालय क्षेत्र में तंत्रयान बौद्ध धर्म का प्रसार करने के लिए जाना जाता है। यह समारोह स्थायी तौर पर लद्दाख के सबसे बड़े बौद्ध मठ हेमिस मोनास्ट्री के प्रांगण में होता है।
द्रुपका बौद्धों ने मशहूर हेमिस फेस्टिवल का आयोजन पूरे जोश और उत्साह से किया। त्यौहार की अवधि में स्थानीय स्थानीय तौर पर सार्वजनिक छुट्टी होती है। और पूरा शहर इस त्यौहार में शामिल होता है। स्थानीय लोग इस मौके पर अपने सर्वोत्तम परंपरागत
परिधानों में त्यौहार मनाने वाली जगह पर इकट्ठे होते हैं।
इस त्यौहार के मौके पर दुनिया भर के भिन्न समाज और देश से आए लोगों ने बड़ी तादाद में बौद्ध मठवासियों को भव्य मुखौटा नृत्य और धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नाटक ‘चाम’ करते हुए देखा। नृत्य करने वाले झांझ, डमरू और तुरही लिए रहते हैं। झांझ, तुरही और ढोलक के साथ किए जाने वाले पवित्र अभिनय भी किए गए। मुखौटा लगाकर किए जाने वाले नृत्य की श्रृंखला में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रदर्शन किया गया। बौद्ध मठों में रहने वालों न इस मौके पर विस्तृत और रंग-बिरंगे
परिधान पहने और चटख रंग में रंगे मुखौटे लगाए। यह नृत्य का सबसे अहम हिस्सा है। इस नृत्य के मूवमेंट धीमें हैं और अभिव्यक्तियां अद्भुत। इस नृत्य के दौरान हर्बल अगरबत्तियों की खुश्बू माहौल में भरी हुई थी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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