श्री अखिलेश यादव, मुख्यमंत्री,
उत्तर प्रदेश, लखनऊ
महोदय,
कृपया निवेदन है कि मैं डॉ नूतन ठाकुर, पत्नी श्री अमिताभ ठाकुर,
निवासी- 5/426, विराम खंड,गोमतीनगर, लखनऊ, फोन नंबर- 94155-34525 एक सामाजिक
कार्यकर्ता हूँ. मैं आपके समक्ष पीसीएस अधिकारी श्री हरिशंकर पाण्डेय को गंभीर
भ्रष्टाचार उजागर करने पर विभिन्न संलिप्त अधिकारियों द्वारा कई प्रकार से
प्रताडित किये जाने सम्बंधित प्रकरण प्रस्तुत कर रही हूँ.
श्री पाण्डेय ने भारत के नियंत्रक महालेखाकार (कैग) परीक्षक के वर्ष 2007-2012 के
ग्रामीण अभियंत्रण विभाग, उत्तर प्रदेश शासन की गंभीर और भारी अनियमितताओं के
सम्बन्ध में इस दौरान किये गए समस्त कार्यों में 25% कार्यों का सत्यापन एवं
मूल्यांकन किया गया और इसके आधार पर प्रथमदृष्टया कई सौ करोड रुपये के शासकीय
धन की जानबूझ कर हानि और क्षति की बात कही. कैग रिपोर्ट के अनुसार इस विभाग
द्वारा उपरोक्त अवधि में सभी स्थापित मापकों, मानकों, नियमों का मनमर्जी से
खुला उल्लंघन किया गया और इस प्रकार से व्यापक वित्तीय अनियामितातातें करते
हुए शासकीय धन की चोरी और गबन किया गया. उदाहरणार्थ जहाँ भारत सरकार के
नियमानुसार पहले प्रशासनिक स्वीकृति, फिर वित्तीय स्वीकृति और अंत में तकनीकी
स्वीकृति दी जाती है, वहीँ इस विभाग द्वारा 298.07 करोड रुपये से जुड़े
1,098 मामलों
में नियमों के पूर्ण अवहेलना में पहले ही तकनीकी स्वीकृति दे दी गयी. इतना ही
नहीं, कई मामलों में तो पहले ही ठेकेदार नियुक्त कर दिये गए, रेट नियत कर दिये
गए और बाद में बैक-डेट के पत्रों के माध्यम से पहले से ही शुरू हो चुके
कार्यों को तकनीकी स्वीकृति दी गयी. इसी प्रकार से कई मामलों में बैकडेट में
प्रशासनिक स्वीकृति दी गयी. इसी प्रकार से प्रधानमंत्री सड़क योजना में जहाँ
ग्रामीण अभियंत्रण विभाग को ही प्रोजेक्ट कार्यदायी संस्था (पीआईयू) बनाया
जाना अनिवार्य था, इस विभाग द्वारा रुपये 131.91 करोड मूल्य के 47 ग्रामीण
सडकों (कुल लम्बाई 248.9 किलोमीटर) को अवैध रूप से विभाग के बाहर की संस्थाओं
को दे दिया गया. शासकीय नियमों के विरुद्ध विभाग द्वारा “नितांत कामचलाऊ
व्यवस्था” हेतु प्रभारी अधिकारी नियुक्त कर उन्हें वित्तीय अधिकार प्रदान कर
दिये गए. ज्यादातर मामलों में टेंडर (निविदा) की स्थापित प्रक्रियाओं तथा
नियमों का खुला उल्लंघन हुआ. सरकार के दिसंबर 2000 के आदेश के अनुसार दो लाख
से ऊपर के कार्यों 30 दिनों की नोटिस पर टेंडर द्वारा तथा दो लाख से कम के
कार्य 15 दिनों के शोर्ट-टर्म टेंडर के आधार पर प्रदान किये जाने चाहिए. कैग
द्वारा किये गए सर्वेक्षण में पाया गया कि वर्ष 2007-12 में किये गए कुल
9423 कॉन्ट्रेक्ट
बॉण्ड में 2 लाख रुपये से ऊपर के कुल 6873 (73%) बॉण्ड जो रुपये 1372.69 के थे,
नियमों का उल्लंघन करते हुए शोर्ट-टर्म टेंडर के आधार पर आमंत्रित किये गए. इसी
प्रकार से कुल 9423 कार्यों में 671.35 करोड रुपये के 3090 कॉन्ट्रेक्ट
बॉण्ड (अर्थात
33%) सिंगल-टेंडर के आधार पर स्वीकृत किये गए जो नियमविरुद्ध है.
भौतिक सत्यापन में कैग द्वारा कई सारी कमियां, खामियां और अनियमितताएं दिखीं
और इनके परिणामस्वरुप कई स्थानों पर बहुत घटिया स्तर के काम देखने को मिले.
कैग द्वारा स्वतंत्र रूप से पांच मंडलों में की गयी टेस्ट जांच में यह पाया
गया कि क्वालिटी कंट्रोल पर कोई ध्यान नहीं रखा गया.
इस प्रकार की तमाम अनियमितताओं को कैग रिपोर्ट से सामने लाते हुए निष्कर्ष
निकाला कि असंतोषजनक प्लानिंग तथा निम्न-स्तरीय आतंरिक नियंत्रण के अतिरिक्त
वित्तीय अनियमितता और सभी प्रकार के नियमों की स्पष्ट अवहेलना किये जाने के
फलस्वरूप ग्रामीण अभियंत्रण विभाग में इस अवधि में भारी गडबडियां हुई हैं और
सरकार को भारी वित्तीय हानि हुई है.
चूँकि सम्बंधित विभाग के अधिकारी इन अनियमितताओं में पूरी तरह लिप्त थे अतः
किसी ने भी उस पर कोई कार्यवाही नहीं की और मामला तब तक दबा रहा जब तक श्री
हरि शंकर पाण्डेय, विशेष सचिव, ग्रामीण अभियंत्रण विभाग ने इस सम्बन्ध में
अपनी जांच आख्या दिनांक 09/11/2012 द्वारा सारी बातें अपने विभागीय प्रमुख
सचिव और कृषि उत्पादन आयुक्त के समक्ष नहीं रखीं.
इस रिपोर्ट की खबरें शीघ्र ही मीडिया में आयीं और मैंने स्वयं भी इस मामले को
आगे बढ़ाया. मैंने अपने पत्र संख्या- NRF/RED/FIR/01 दिनांक- 05/12/2012 के
माध्यम से थानाध्यक्ष, गोमती नगर, जनपद लखनऊ को इस सम्बन्ध में प्रथम सूचना
रिपोर्ट दर्ज कराये जाने हेतु धारा 154(1) सीआरपीसी के प्रावधानों के अंतर्गत
दिनांक 05/12/2012 आवेदनपत्र दिया जिसे थाना गोमतीनगर ने प्राप्त कर लिया गया
और मुझे इसकी रिसीविंग दी लेकिन उस पत्र में प्रस्तुत तथ्य प्रथमदृष्टया सीधे
तौर पर शासकीय धन की चोरी और गबन और जनसेवकों द्वारा अपने पद का खुला दुरुपयोग
करते हुए भ्रष्ट आचरण करने की बात लिखी होने और इस प्रकार संज्ञेय अपराध बनने
के बाद भी थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं किया
गया. मैंने पुनः दिनांक 05/12/2012 को धारा 154(3) सीआरपीसी के अंतर्गत एक
प्रार्थनापत्र वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, लखनऊ की सेवा में प्रथम सूचना रिपोर्ट
अंकित करा कर अग्रिम कार्यवाही किये जाने हेतु जरिये डाक प्रेषित किया और मा०
मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट के समक्ष समक्ष धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत मुक़दमा
पंजीकृत करने हेतु आवेदन पत्र 1209/2012 प्रस्तुत किया.
मा० मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, लखनऊ ने अपने आदेश दिनांक 11/03/2013 द्वारा
कहा कि चूँकि प्रार्थिनी के प्रार्थनापत्र का आधार कैग रिपोर्ट को बनाया है और
कैग की रिपोर्ट पर कार्यवाही करने का अधिकार केन्द्रीय और राज्य सरकारों को है
तथा उसके आधार पर अधीनस्थ न्यायालयों को आपराधिक मुक़दमा दर्ज करने का
क्षेत्राधिकार नहीं है, अतः प्रार्थना पत्र अंतर्गत धारा 156(3) सीआरपीसी की
परिधि में नहीं आता है.
मैंने मा० मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को विधिसम्मत नहीं समझते हुए मा०
जिला एवं सत्र न्यायाधीश के समक्ष अंतर्गत धारा 397/399 सीआरपीसी दाण्डिक
पुनरीक्षण याचिका प्रस्तुत किया जिस पर मा० न्यायालय अपर सत्र न्यायाधीश/टीईसी-
5, लखनऊ ने सीएजी रिपोर्ट के आधार पर शासन को कार्यवाही करने का अधिकार
प्राप्त होने के आधार पर हस्तक्षेप से मना किया. लेकिन साथ ही इस आदेश में
स्पष्ट अंकित किया गया कि सीएजी रिपोर्ट के अनुसार शासकीय धन के दुरुपयोग का
अभियोग उत्तर प्रदेश सरकार के शासकीय अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा किया
गया है और उनके कृत्य भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम से आच्छादित होगा.
अतः इस प्रकरण में निरंतर मा० न्यायालयों द्वारा गंभीर संज्ञेय अपराध कारित
होने की बात कही जा रही है. मैंने अभी मा० विशेष न्यायालय भ्रष्टाचार के समक्ष
पप्रार्थनापत्र दे रहा है जो विचाराधीन न्यायालय है.
इसके अतिरिक्त श्री हरि शंकर पाण्डेय ने श्री उमा शंकर, निदेशक एवं मुख्य
अभियंता, ग्रामीण अभियंत्रण विभाग, उत्तर प्रदेश की जन्मतिथि से सम्बंधित मूल
आवेदनपत्र तथा व्यक्तिगत पत्रावली गायब करा कर उनकी जन्मतिथि 25/10/1951 से
घटाकर 25/10/1957 किये जाने की प्रक्रिया में शासकीय दस्तावेजों में हुए
हेराफेरी, धोखाधड़ी आदि के सम्बन्ध में विस्तृत जांच दिनांक 30/10/2012 विभागीय
प्रमुख सचिव, श्री संजीव दूबे को प्रेषित किया था. जांच के आधार पर उन्होंने
श्री उमा शंकर द्वारा अपने निहित स्वार्थों की पूर्ती हेतु छह वर्ष का अनुचित
सेवाकाल बढाए जाने हेतु की आपराधिक मंशा से ग्रामीण अभियंत्रण विभाग के
सम्बंधित अनुभाग के समीक्षा अधिकारी, अनुभाग अधिकारी, श्री शहजादे लाल, संयुक्त
सचिव एवं श्री हरेन्द्र वीर सिंह, तत्कालीन विशेष सचिव के साथ दुरभिसंधि कर यह
आपराधिक कृत्य करने पर इनके विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की सुसंगत धाराओं में
मुक़दमा दर्ज किया जाने की संस्तुति की थी.
मैंने अपने पत्र संख्या- NRF/US/ FIR /01 दिनांक 08/12/2012 के माध्यम से
थानाध्यक्ष, गोमती नगर, जनपद लखनऊ को आवेदन किया और फिर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक
से भी अनुरोध किया. कोई कार्यवाही नहीं होने पर मैंने मा० मुख्य न्यायिक
मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन किया और उन्होंने प्रस्तुत प्रार्थनापत्र को
स्वीकार कर लिया.
अपने आदेश में मा० मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने कहा कि प्रार्थिनी का
प्रार्थनापत्र परिवाद के रूप में दर्ज किये जाने योग्य है. अतः उन्होंने
प्रार्थनापत्र स्वीकार करते हुए आदेश किया कि मामला परिवाद के रूप में दर्ज
हो. वर्तमान में यह प्रकरण मा० मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष विचाराधीन
है.
स्पष्ट है कि यह सब श्री हरि शंकर पाण्डेय के अथक प्रयासों और उनके द्वारा
विभाग में व्याप्त गंभीर और उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार को सामने जाने के कारण ही
संभव हो सका है कि जिस प्रकार से कतिपय अधिकारियों द्वारा शासकीय धन की लूट की
गयी है, उसके बारे में मा० न्यायालयों तक बात पहुँच सकी है.
अत्यंत ही दुर्भाग्य और कष्ट का विषय है कि इन्ही श्री पाण्डेय को कार्यालय
ज्ञाप दिनांक 28/06/2013 द्वारा शासकीय अभिलेखों में हेराफेरी, नियमों
शासनादेशों की अनदेखी करते हुए जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने तथा स्वेच्छाचारिता
एवं अनुशासनहीनता करने जैसे मनगढंत आरोपों का दोषी बताते हुए उनके विरुद्ध
उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमावली 1999 के अंतर्गत
विभागीय जांच की जा रही है.
मैं समझती हूँ इससे अधिक इस प्रदेश का दुर्भाग्य नहीं हो सकता कि जो अधिकारी
सीधे-सीधे भ्रष्टाचार कर रहे हों उन्हें पुरस्कृत किया जाए और जो इन मुद्दों
को उजागर करे, उन्हें सामने लाये उसे उलटे दण्डित किया जाए. इस एक घटना से
आपकी भी भ्रष्टाचार से लड़ने की बातों को गहरा झटका लगा है. एक व्हिसलब्लोवर के
प्रति इस प्रकार की लक्षित कार्यवाही किसी भी प्रदेश के लिए अच्छी नहीं कही
जायेगी और दूसरे अन्य ईमानदार लोगों को भी एक सबक के रूप में कार्य करेगी.
श्री पाण्डेय ने मात्र वही किया जो उनका दायित्व था और जो कार्य उनके विभागीय
प्रमुख सचिव और शासन के मुख्य सचिव को करना चाहिए था. यह संभव है कि उनकी जांच
में कुछ तथ्य त्रुटिपूर्ण हों पर उनकी घोटाले संबधित जांच तो सीधे-सीधे कैग
रिपोर्ट पर आधारित है और स्वयं मा० न्यायालयों द्वारा उनकी बात को सही मानते
हुए संज्ञान लिया गया है.
मैं जानती हूँ कि एक अधिकारी के सेवा सम्बंधित मामलों में बाहरी व्यक्ति को
बोलने का अधिकार नहीं है पर यह रूटीन प्रकरण नहीं है. यह एक व्हिसलब्लोवर
को परेशान
और दण्डित करने, उसे प्रताडित करने का मामला है और इस रूप में हम सभी लोगों से
सम्बंधित है.
इन सभी तथ्यों के दृष्टिगत मैं आपसे तत्काल निम्न तीन निवेदन करती हूँ-
(एक) कृपया तत्काल श्री हरि शंकर पाण्डेय पर अकारण अधिरोपित किये गए इस
विभागीय कार्यवाही को समाप्त किया जाए या कम से कम तब तक स्थगित किया जाए जब
तक प्रकरण मा० न्यायालय में विचाराधीन हैं
(दो) श्री पाण्डेय को इस प्रकार प्रताडित करने का प्रयास करने वाले सभी वरिष्ठ
अधिकारियों को एक व्हिसलब्लोवर और सरकारी धन को लूटने से बचाने वाले अधिकारी
को अकारण प्रताडित करने के सम्बन्ध में जांच करा कर दण्डित किया जाये
(तीन) कैग रिपोर्ट और श्री पाण्डेय की रिपोर्ट पर तत्काल कार्यवाही कराई जाए.
निवेदन करुँगी कि यह एक अत्यंत गंभीर मामला है और सीधे-सीधे आपकी प्रतिष्ठा,
भ्रष्टाचार के प्रति आपके व्यक्तिगत रुख और स्वच्छ प्रशासन के प्रति आपके
समर्पण से जुड़ा हुआ है. पूरे प्रदेश की निगाहें इस मामले में आपकी ओर हैं. अतः
मुझे विश्वास है कि आप इस मामले में व्यक्तिगत ध्यान दे कर श्री पाण्डेय को
उनके अच्छे और सराहनीय कार्यों के लिए पुरस्कृत और प्रोत्साहित करते हुए उनके
प्रताडित और दण्डित करने का गलत प्रयास करने वाले अधिकारियों को कठोर दंड दे
कर एक बहुत ही अच्छा सन्देश पूरे देश में देंगे.
डॉ नूतन ठाकुर
लखनऊ
094155-34525
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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