तहसील सदर सुलतानपुर में स्थित जिला उपभोक्ता संरक्षण फोरम में अपने उपभोग की पीड़ा को लेकर आये फरियादी घडियाली आंसू बहाने के लिए मजबूर है । जनपद में एक अकेला जिला उपभोक्ता सरंक्षण फोरम तहसील सदर के प्रांगण मे उपभोक्ताओं को न्याय दिलाने के उददेश्य से विगत १४ -१५ वर्षो से स्थापित है जहां पर जनपद वासी बीमा कम्पनियों, दुकानदारो, बैंकिग असुविधा, ट्रासपोर्टर आदि मामलो से सम्बन्धित भुक्त भोगी व्यक्ति जनपद के उक्त फोरम न्यायालय मे न्याय पाने के लिए परिवाद दाखिल करते है ।
कहा जाता है कि फोरम की नियमावली के अनुसार छरू माह के अन्दर मामले का निस्तारण किया जायेगा । परन्तु जमीनी हकीकत कुछ और ही है जो इस जनपद के फोरम मे बिल्कुल नही दिखायी पड़ती । वादकारियों की बात कौन कहे फोरम मे उपस्थित होने वाले अधिवक्ताओं का कहना है कि लगभग चार पांच सालो मे फोरम के अध्यक्ष के साथ साथ सदस्यों ने शायद कभी अपनी सीट पर बैठ कर कोरम पूरा किया हो ऐसा संयोेग देखने को नही मिला है । इधर दो तीन महीने से काजलिस्ट का मात्र अवलोकन कर लेने से सहज पता चल जाता है कि एक भी मुकदमें का निस्तारण तीन सदस्यीय पीठ ने नही किया है । केवल परिवादी तारीख लेकर लौट जाते है अधिवक्ता गण इससे काफी मायूस है ।
जिला उपभोक्ता संरक्षण फोरम के अध्यक्ष प्रमोद कुमार श्रीवास्तव को हार्ट अटैक का दौरा होने के कारण अस्वस्थ्ता के चलते फोरम की कुर्सी रिक्त पडी है वही एक मात्र सदस्य महेन्द्र कुमार मिश्र भी अपनी कुर्सी पर बैठने की जहमत नही मोल लेते यदि कभी कभार कार्य निपटारा के लिए बैठ भी गये तो आर्डर सीट में ओवर राइटिंग जरुर हो जायेगी । फिर हाल फोरम के अध्यक्ष व सदस्य का मार्निग अदालत के चलते मई माह मे दर्शन नही हुए क्योकि अदालत तो ऐन केन प्रकारेण चल ही रही है । फोरम मे पेशकार के रुप में सुनील कुमार आर्य की तैनाती है जिन्हे शायद कुछ ही अधिवक्ता पहचानते है क्योकि उन्हे सम्भवतरू लकवा मार गया है इसलिए कोर्ट पर उनकी जिम्मेदारी कौन निभा रहा है यह समझ से दूर है ।
टाइपिस्ट माता प्रसाद वर्मा अदालत पर अपनी हाजिरी लगाते है लेकिन शायद एक दर्द उन्हे जरुर सता रहा होगा कि यदि चार पांच महीने मे कोई निर्णय टाइप करने को नही मिला है तो भविष्य मे टाइप करने की आदत न छूट जाय । बेचारे अर्दली पवन कुमार दूबे व चपरासी श्याम वल्लभ तो चैथे स्तम्भ हो गये है जो जिला उपभोक्ता फोरम में मौजूद पत्रावलियों एवे मुकदमें की फाइलो को सुरक्षित रखकर एक आलमारी से दूसरी आलमारी मे रखकर ढाक के तीन पात का काम कर रहे है । वादकारी और उपभोक्ता आखिरकार फोरम की चैखट को चूम कर प्रतिदिन आर्शीवाद लेकर घर जाने पर मजबूर है ।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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