भारत का संविधान अत्यन्त धर्मनिर्पेक्ष और मानव अधिकारों की हिफाज़त करने की नियत से बनाया गया है। आर्टिकिल (Article) 14 में सभी लोगों को क़ानून की नज़र में बराबरी का दर्जा दिया गया है। आर्टिकिल 15 में शैक्षिक संस्थाओं में सभी नागरिकों को बराबर के अधिकार की गारण्टी दी गयी है। आर्टिकिल 16 के तहत सरकारी नौकरियों में सभी नागरिकों में बराबरी का अधिकार दिये जाने की गारण्टी दी गयी है। इन तीनों आर्टिकिल्स के कारण भारत के किसी भी नागरिक के खि़लाफ उसके धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, पैदाइश या निवास स्थान के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं किया जा सकता।
आर्टिकिल 25 में सभी लोगों को धर्म और सम्प्रदाय की आजादी की गारण्टी दी गयी है। यह खुशी की बात है कि संविधान की कानूनी गारण्टी के अलावा भारतीय समाज आमतौर से सभी को बराबरी का दर्जा दिये जाने पर यकीन करता है।
इसके बावजूद कान्स्टीट्यू्शन (शेडूल्डकास्ट्स) आर्डर 1950 (Constitution (SCs) Order 1950) के पैरा-3 में भारत सरकार ने यह शर्त लगा दी कि आर्टिकिल 341 के तहत शेडूल्डकास्ट्स को दी जाने वाली सुविधायें केवल उन्हीं लोगों को मिलेंगी जो हिन्दू, सिख या नवबौद्ध हों। इस धार्मिक भेद-भाव के कारण 1950 से अब तक मुसलमान और ईसाई दलितों को सरकारी शैक्षिक संस्थाओं, सरकारी नौकरियों और दूसरे मामलों में उन अधिकारों से वंचित किया गया है जो उन्हीं के हम-पेशा हिन्दू, सिख या नवबौद्ध शेडूल्डकास्ट्स को मिल रहे हैं।
मुसलमान और ईसाई दलितों को सबसे ज़्यादा नुकसान इस बात से हुआ कि जिन इलाकों में मुसलमानों की अच्छी संख्या है या वे बहुसंख्यक हैं वहां लोकसभा और विधानसभा की सीटें शेडूल्डकास्ट्स के लिए आरक्षित कर देने के कारण मुसलमान और ईसाई दलितों को उन सीटों पर मुकबला करने से वंचित रखा गया है।
1952 से अब तक 15 लोक सभा के चुनावों में लगभग 540 सीटें मुसलमान और ईसाई दलितों को उन इलाकों में अतिरिक्त मिल सकती थीं जो मुस्लिम बहुसंख्य इलाकों में आरक्षित की गयी हैं। इस नुकसान का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोकसभा में अब तक लगभग 450 मुसलमान मेम्बर चुने गये हैं और 540 सीटों से महरूम किये गये हैं। इसी तरह विधान सभाओं में मुसलमानों को 1952 से अब तक लगभग 3000 से ज्यादा सीटें अतिरिक्त रूप में मिलतीं अगर मुसलमान और ईसाई दलितों को धर्म के आधार पर शेडूल्डकास्ट्स के अधिकार से वंचित न किया जाता। इतनी बड़ी संख्या में लोक सभा और विधान सभाओं में मुसलमान और ईसाई गरीबों का प्रतिनिधित्व न हो सकने के कारण मुसलमानों को विकास के विभिन्न क्षेत्रेां में अपने अधिकारों से वंचित होना पड़ा है। राजनैतिक संस्थाओं में कम प्रतिनिधित्व के कारण मुसलमानों और ईसाईयों के खिलाफ दूसरे क्षेत्रों में भी भेद-भाव के मामले और अवसर बढ़े हैं।
इस पैराग्राफ का साम्प्रदायिक परिदृश्य और उद्देश्य इस बात से स्पष्ट हो जायेगा कि अगर कोई हिन्दू, सिख या बौद्ध शेडूल्डकास्ट्स का व्यक्ति इस्लाम या ईसाई धर्म को स्वीकार कर लें तो उसी दिन से आर्टिकिल 341 के तहत उपलब्ध की जाने वाली सभी सुविधाओं से वह वंचित कर दिया जाता है और अगर वही व्यक्ति पुनः हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म में वापस चला जाय तो उसी दिन से उसके सारे अधिकार फिर से पुनर्जीवित हो जाते हैं। यह कहना अनुचित न होगा कि पैरा 3 का प्रबन्ध मुसलमान और ईसाई गरीबों को हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्मों के स्वीकार करने पर उन्मुख करने की नियत से किया गया है। दूसरी तरफ हिन्दू, सिख और बौद्ध धर्म के मानने वाले शेडूल्डकास्ट्स के व्यक्तियों को आर्टिकिल 341 का लालच देकर उन्हें इस्लाम और ईसाई धर्म में जाने से रोकने की नियत से यह पैरा लागू किया गया है। हमारी नज़र में गरीब मुसलमानों के लिए इस पैराग्राफ के माध्यम से इस्लाम छोड़ देने का ख़तरा पैदा किया गया है।
वर्ष 2004 में इस पैरा 3 के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में इस आधार पर याचिका दाखिल की गयी कि इस पैरा के कारण ईसाई दलितों के लिए आर्टिकिल्स 14, 15, 16 और 25 में दिये गये अधिकारों की खिलाफवर्जी होती है। इस याचिका में जवाब दावा दाखिल करने के लिए केन्द्र सरकार ने 2005 में रंगनाथ मिश्रा कमीशन कायम किया। वर्ष 2007 में रंगनाथ मिश्रा कमीशन ने केन्द्र सरकार को सुझाव दिया कि पैरा 3 को समाप्त किया जाय क्योंकि इससे संविधान के आर्टिकिल्स 14, 15, 16 और 25 की न केवल खिलाफवर्जी हो रही है बल्कि यह पैरा अन्यायपूर्ण भी है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने हाल ही में सुप्रीमकोर्ट में अपने जवाब दावा में कहा है कि पैरा 3 समाप्त किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति व जनजाति आयोग ने सुप्रीमकोर्ट के समक्ष अपने जवाबदावा में यह लिखा है कि मुसलमान और ईसाई दलितों को भी शेडूल्डकास्ट्स के अधिकार मिलने चाहिए लेकिन वर्तमान शेडूल्डकास्ट्स के लोगों अर्थात हिन्दू, सिख और बौद्ध शेडूल्डकास्ट्स पर खराब असर न पड़ने दिया जाय। सुप्रीमकोर्ट के निर्देशांे के बावजूद भारत सरकार ने अपना नज़रिया सुप्रीमकोर्ट के समक्ष नहीं पेश किया है। इस कारण सुप्रीमकोर्ट भी फैसला करने की हालत में नहंी आ सका है।
उल्लेखनीय है कि श्री लालू प्रसाद यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री की हैसियत से और श्री मुलायम सिंह यादव ने यू0पी0 के मुख्यमंत्री की हैसियत से अपनी-अपनी विधान सभाओं द्वारा यह प्रस्ताव मंजूर कराने के बाद भारत सरकार को प्रेषित किये थे कि उपरोक्त पैराग्राफ 3 को समाप्त किया जाय।
दिनांक 2 सितम्बर, 2005 को सुश्री मायावती, राष्ट्रीय अध्यक्ष, बहुजन समाज पार्टी ने डा0 मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री को लिखे गये तीन पत्रों में यह मांग की कि चूंकि अब किसी भी धार्मिक अल्पसंख्यक को उनके धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा रहा है, इसलिए कान्स्टीट्यूशन (शेडूल्डकास्ट्स) आर्डर 1950 (Constitution (SCs) Order 1950) में लगायी गयी इस अनुचित शर्त का कोई औचित्य नहीं रह जाता कि आरक्षण के फायदे केवल हिन्दू धर्म से संबंध रखने वाले शेडूल्डकास्ट के मेम्बरों को दिये जाते हैं। उन्होंने पैरा 3 को समाप्त करने की सिफारिश करते हुए यह भी लिखा कि इस पैरा को समाप्त करने से एक फायदा यह भी होगा कि हिन्दू शेडूल्डकास्ट के मेम्बरों का यह डर भी समाप्त हो जायेगा कि वह अपनी पसन्द से किसी दूसरे धर्म को नहीं स्वीकार कर सकते।
हम इस असंवैधनिक और अन्याय पूर्ण काले कानून को भारत के संविधान में दिये गये बुनियादी अधिकारों और हिन्दुस्तानी समाज के सेक्युलर मिजा़ज के खिलाफ समझते हैं और भारत सरकार से मांग करते हैं कि इस काले कानून को फौरन समाप्त किया जाय।
इस सन्दर्भ में हम सारे वोटरों से अपील करते हैं कि जब कोई उम्मीदवार उनसे वोट मांगने आये तो वे उस उम्मीदवार की हिमायत इस शर्त पर करें कि वह उम्मीदवार पैरा 3 को खत्म कराने के लिए खुलकर और व्यवहरिक तौर पर कोशिश करेगा। जो उम्मीदवार इस धार्मिक भेद-भाव को समाप्त करने के हक में न हो उसे साफ तौर से वोट देने से मना कर दिया जाय।
हम सभी संस्थाओं से अपील करते हैं कि इस रेजोल्यूशन को प्रभावकारी बनाने के लिए अपने-अपने इलाकों में वोटरों के स्तर पर तेज़ी से काम करना शूरू करें।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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