मई। सूबे में स्टाफ नर्सों की हजारों रिक्तियां खाली हैं, मगर उत्तर प्रदेष चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग द्वारा न्यायालय के सवालों का जवाब उचित रुप में न देने के कारण सूबे के स्वास्थ्य महकमें में स्टाफ नर्सों की भर्ती नही हो पा रही है। इसी का नतीजा है कि सूबे के चिकित्सालय भगवान भरोसे चल रहे हैं। एक तरफ उत्तर प्रदेष शासन नर्सिंग प्रषिक्षण केन्द्रों की अनिवार्यता एवं मान्यता निजी क्षेत्र में जारी करता है तो वही दूसरी तरफ उन निजी क्षेत्रों से प्रषिक्षित स्टाफ नर्सों को भर्ती के लिए न्यायालय के सवालों का सही जवाब न देकर उसे संतुष्ट नही कर पा रहा है। ये बातें नर्सिंग एण्ड पैरामेडिकल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट एसोसिएषन के सरंक्षक डा. नीरज बोरा ने कही।
डा. नीरज बोरा ने बताया कि उत्तर प्रदेष चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा में नर्सिंग (अराजपत्रित) सेवा नियमावली 1999 असाधारण विधायी परिषिष्ट भाग - 4, खण्ड (क) 29.12.1999 के द्वारा भर्ती के श्रोत 5 (डी) (1) के तहत 95 प्रतिषत छात्र नर्स और धात्रियों में से महिला स्टाफ नर्स हेतु नियम 10 में दी गयी अहर्ताएं पूरी करते हैं। उत्तर प्रदेष शासन (चिकित्सा स्वास्थ्य अनुभाग 11) द्वारा 25 फरवरी 2005 को राजकीय/निजि संस्था में प्रषिक्षण प्राप्त अभ्यर्थियों की नियुक्ति के संबंध में समान अवसर प्रदान किये गये थे। मगर उच्च न्यायालय लखनऊ खण्डपीठ ने अपने एक आदेष के तहत उपरोक्त शासनादेष को मानने से इनकार कर दिया है जिससे निजी क्षेत्र से प्रषिक्षित स्टाफ नर्स की भर्ती में रोडा अटक गया है। सबसे अजीब बात तो यह है कि उत्तर प्रदेष चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग भी इस मामले में दिलचस्पी नही ले रहा है। जिसका उदाहरण उसके द्वारा न्यायालय के सवालों का जवाब देकर संतुष्ट नही करने के रुप में देखा जा सकता है। इस प्रषासनिक तकनीकि में हीलाहवाली का नतीजा यह है कि सूबे में हजारों प्रषिक्षण प्राप्त स्टाफनर्स इस मंहगाई के दौर में बेरोजगारी का दंष झेल रहा है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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