लखनऊ - उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्मारकों की सुरक्षा के लिए विशेष पुलिस बल के गठन किये जाने एवं इस पर होने वाले करोड़ों रूपये खर्च करने का लिया गया निर्णय देश व प्रदेश के करोड़ों करोड़ गरीब, दलित जनता एवं बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की उन भावनाओं का अपमान है, जिसके तहत उन्होने आजीवन दलितों और गरीबों के उत्थान की लड़ाई लड़ी। साथ ही इस विधयेक से यह भी साबित होता है कि प्रदेश सरकार का वर्तमान पुलिस बल पर कोई विश्वास नहीं रह गया है।
उ0प्र0 कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता द्विजेन्द्र त्रिपाठी ने आज यहां जारी बयान में कहा कि बाबा साहब अम्बेडकर एवं दलित महापुरूषों के नाम पर उ0प्र0 सरकार द्वारा एक ओर जहां गरीब जनता की गाढ़ी कमाई का धन अपव्यय किया जा रहा है, पत्थरों की खरीद और स्मारकों, मूर्तियों एवं पार्कों के निर्माण में भारी धन का दुरूपयोग किया जा रहा है। इसके विपरीत बाबा साहब अम्बेडकर एवं मा0 कांशीराम ने एक मिशन के तहत आजीवन गरीबों और दलितों के उत्थान एवं उनके सामाजिक स्तर को बढ़ाने के लिए कार्य किया था। उनकी भावना यह कतई नहीं थी कि गरीबों और दलितों की गाढ़ी कमाई को पार्कों और स्मारकों के नाम पर पानी की तरह बहाया जाय। प्रदेश सरकार द्वारा बर्बाद किये जा रहे धन को यदि प्रदेश के गरीबों, दलितों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान में खर्च किया जाता, तो शायद बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर एवं मा0 कांशीराम की भावनाओं का सम्मान होता।
श्री त्रिपाठी ने कहा कि जिस प्रकार हजारों करोड़ रूपये वर्तमान प्रदेश सरकार ने स्मारकों, मूर्तियों और पार्कों के निर्माण में बर्बाद किया है, उससे गरीबों और दलितों का कोई भला नहीं होने वाला है। उन्होने कहाकि सबसे अच्छा होता कि यही धन गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले दलितों और गरीबों के हितों के लिए खर्च किया जाता।
श्री त्रिपाठी ने कहा कि एक तरफ जहां प्रदेश सरकार बीपीएल कार्डधारकों की संख्या को लेकर प्रश्न उठा रही है और कह रही है कि प्रदेश में मात्र एक करोड़ सत्तर लाख ही बीपीएल कार्डधारक हैं, जबकि इनकी संख्या इससे काफी अधिक है। इस परिस्थिति की गम्भीरता का आभास अगर प्रदेश सरकार को होता तो वह अरबों रूपये फिजूलखर्ची में न बर्बाद करती। उन्होने कहा कि जिस प्रदेश में लाखों गरीब जनता को दो जून की रोटी और तन को ढकने के लिए कपड़ा मयस्सर न हो, उस प्रदेश में प्रदेश सरकार द्वारा गरीब जनता की गाढ़ी कमाई का धन पानी की तरह बहाया जाना कहां तक उचित है ।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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