८ मई । जनपद मे फर्जी प्रेस और पुलिस लिखे दो पहिया व चार पहिया वाहनो की भरमार, नही होती जांच शातिर अपराधी भी हो सकते है इन वाहनो पर । वही लाल नीली बत्त्ती और हूटर लगे वाहनो से सवारियां ढोई जा रही है ।
जबकि बीते दिनो भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने इन लाल बत्ती वाहनो और अन्य सिम्बलो पर कडाई के साथ रोक लगाई थी । मगर यहां तो उत्तर प्रदेश मे उल्टा कानून है जिस चीज पर रोक लगाई जाती है। उसे ही यहां की जनता और अधिकारी जानबूझ कर करते है जिससे कि आम जनता मे यह संदेश जाये कि अगला बहुत पावर फुल है । उसी का नतीजा है सत्त्ताधारी नेताओं का एक मात्र शौक लालबत्त्ती युवाओं का एक मात्र शौक गाडी पर प्रेस या पुलिस लिखाकर आम जनता मे रौब गालिब करना और अपने मुंह मिंया मिठठू बन फर्जी कहानी अवनी पत्नीयों को व मित्रो को सुना कर ढींग हाकना एक परंपरा बन गई है ।
अपने जिले की पुलिस और उसके पर्दानशीन अधिकारी कभी भी इस बात की तहकीकात नही करते कि वास्तव मे इन गाडियों पर पत्रकार या पुलिस ही टहल रहे है या कैबिनेट व सरकार का वास्तिविक ओहदेदार ही है अथवा कोई वांटेट अपराधी इसकी आंढ मे नसीले पदार्थो की या अवैध हथियारो की तस्करी कर रहा है । यह काम बेसक पुलिस का है । आये दिन सडको पर शादी विवाहों मे लाल नीली बत्त्ती लगी हूटर बजाती गाडियां आपको दिखेगी ।
मगर रोकने वाला जब स्वयं महाभ्रष्ट और अपराध से ग्रस्त तो उसका फायदा अपराधी तो उठायेगें ही । पिछले दिनो उच्च न्यायालय ने भी चैपहिया वाहनो से काली फिल्मे लगे शीशो वाली गाडियों का चालान व अपारदर्शी फिल्मे हटवाने का आदेश प्रदेश के गृह सचिव को दिया था मगर उसे महज कागजी आदेश मान हमारे जनपद के पुलिस कप्तान भूल गये और आज धडल्ले से काली फिल्म लगी गाडियों से अपराध हो रहे है जिसमे बैठे लोगो को बाहर से कोई देख भी नही सकता अन्दर चाहे किसी से बलात्कार हो रहा हो चाहे मर्डर किया जा रहा हो ।
वो भी चलती गाडी मे वो भी भीड भरी सडको पर फिर भी न दिखाई देने के चलते कोई रोकने वाला नही है न जाने क्यो हमारे जनपद की पुलिस इतनी डरपोक और कायर हो गई है कि उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय के आदेशो कस पालन भी नही करा पा रही है ।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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