20 अप्रैल। संस्कत सभी भाषाओं की जननी है। उसमें सिस्टम है। इसलिए दुनिया को सिस्टम में चलाने के लिए संस्क्त आवश्यक है। विवेकानन्द संस्कत के साथ-साथ अंग्रेजी के भी विद्वान थे। उन्होने भारत का ज्ञान दुनिया को उन्हीं की भाषा में दिया था। अपनी संस्कति व धर्म के प्रति गर्व होना चाहिए। हिन्दू धर्म मानवतावादी है। इसमें दूसरे मजहब के लोगों के प्रति भी स्नेह है। कोलम्बस द्वारा अमेरिका की खोज के बाद 17 करोड़ रेड इंडियन मार दिये गये। 11 करोड़ लोग आस्ट्रेलिया में मारे गये।
यह बात प्रख्यात कथावाचक अतुल कृष्ण महाराज ने विश्व संवाद केन्द्र में कही। वे विश्व संवाद केन्द्र त्रैमासिक पत्रिका के विवेकानन्द विशेषांक के लोकार्पण पर बोल रहे थे। विवेकानन्द ने शिकागो में सभी को भाई-बहिन कहा। यह विदेशियों के लिए आश्चर्य का विषय था। विवेकानन्द ने कुछ नया नहीं कहा। वे भारतीय संस्कति का उद्घोष कर रहे थे।
अतुल कष्ण ने कहा कि सनातन काल में नारद मुनि ने भक्ति योग का प्रसार किया। वर्तमान युग में स्वामी विवेकानन्द ने यही किया। भुवन भास्कर वाजपेयी ने कहा कि भारत युवा देश है। उसे विवेकानन्द से प्रेरणा लेनी होगी।
मुख्य वक्ता श्री मधुभाई कुलकर्णी ने इस अवसर पर कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने विश्व के समक्ष भारतीय सर्वगामी सनातन आध्यात्मिक परम्परा को प्रभावशाली ढंग से रखा। उस समय ईसाइयों को लगा कि भारत जैसे समद्ध आध्यात्मिक शक्ति के आगे भारत में ईसाइयत का अधिक प्रचार नहीं हो सकेगा। अतः उनकी योजना कमजोर पड़ गयी। स्वामी जी ने भारतीय युवा शक्ति का आह्वान कर उनको उठने, जाग्रत रहकर लक्ष्य प्राप्ति की प्रेरणा दी।ी
इस अवसर पर क्षेत्र प्रचारक शिव नारायण, क्षेत्र सेवा प्रमुख नवल किशोर, विहिप के केन्द्रीय मंत्री पुरुषोत्तम नारायण सिंह, विश्व संवाद केन्द्र प्रमुख राजेन्द्र, डा. दिलीप अग्निहोत्री आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। समारोह की अध्यक्षता प्रान्त संघचालक प्रभु नारायण श्रीवास्तव ने की और संचालन अशोक सिन्हा ने किया।
समारोह में विश्व संवाद केन्द्र पत्रिका के युवा शक्ति और स्वामी विवेकानन्द विशेषांक का विमोचन हुआ। इसमें 52 लेख हैं। प्रमुख रूप से श्री इन्द्रेश कुमार, मा.गो. वैद्य, मधुभाई कुलकर्णी, डा. ओम प्रकाश सिंह, हरिकष्ण निगम, प्रो. ब्रज किशोर कुठियाला, अशोक सिन्हा, डा दिलीप अग्निहोत्री नन्द किशोर श्रीवास्तव, विजय कुमार सिंघल आदि के लेख इसमें शामिल हैं। पत्रिका का सम्पादन नरेन्द्र भदौरिया ने किया है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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