१७ अप्रैल । आज जिधर नजर दौडाइये कुछ ना कुछ ऐसा नकारात्मक पहलू जरुर दिख जायेगा जिससे हमें सोचने पर मजबूर हो जाना पड़ता है कि आगे आने वाले वक्त मे क्या होने वाला है जब नशे की बात वयस्को के संदर्भ मे की जाती है तो इसे हम बडी विकट समस्या के रुप मे देखते है लेकिन ये हमारा दुर्भाग्य ही है जो आज हम बच्चो को भी नशे की लत का शिकार देख रहे है ।
आमतौर पर ये बच्चे या तो गरीब श्रेणी के बाल मजदूर है या फिर उच्च वर्ग के हाई प्रोफाइल स्कूल मे पढ़ने वाले धनाढ््यों के बच्चे। गरीब वर्ग के साधन हीन बच्चे जिनकी उम्र्र औसतन १०-१२ वर्ष की होगी कायदे से तो उनकी पढ़ाई लिखाई की उम्र्र है लेकिन हालात से मजबूर होकर उन्हे काम पर लगा दिया जाता है आज दूसरों की देखा देखी धूम्रपान करने लगे है ।
तमाम ऐसी जगहो पर जहां ऐसे बच्चे काम करते है इन्हे फुरसत के पलो मे आप बीडी सुलगाकर पीते हुए देख सकते है पान की दुकानो से ऐसे वच्चो को पान मसाला लेते हुए देखा जा सकता है । बच्चे जिन्हे ढ़ंग से भोजन मिलना चाहिए ताकि उनका शरीर स्वस्थ हरे दिमाग स्वस्थ हो अगर वो नशे की गिरफ्त मे आ चुके है तो उनकी युवावस्था क्या होगी और बुढापा किस कदर गुजरेगा ।
आप सोचिए नया पौधा जिसको ढ़ंग से पानी मिलना चाहिए ताकि उसका पोषण और संवर्द्धन हो सके अगर उसकी जडो मे तेजाब की बूंदे डाली जाने लगी तो क्या होगा उस पौधे का आप खुद अंदाजा लगा लीजिए इसी तरह वर्तमान मे धनी वर्ग के बच्चे स्कूल के दौरान जो वक्त बचता है उसमे सिगरेट का प्रयोग करते हुए देखे जा सकते है ।
बचपन की कोमल अवस्था अगर ऐसे अंगारो से जलाई जाने लगी तो देश का भविष्य क्या होगा ज्यादा बताने की आवश्यकता नही है दोनो वर्ग के बच्चो मे ऐसी दुष्प्रवृत्त्ति का एक कारण तो साफ नजर आ रहा है कि ऐसे बच्चे जरुरत से ज्यादा स्वतंत्र है ।
कारण अलग अलग है लेकिन पारिवारिक देखरेख और नियंत्रण इन बच्चो के मामले मे शिथिल है आज आवश्यकता है कि इस बारे मे गौर से विचार किया जाय और इन नये पौधो को पानी की जगह तेजाब की सिंचाई से बचाया जाय तभी भारतवर्ष के सुखद भविष्य की सफल कल्पना की जा सकती है । वरना बिना हवा भरा टायर गाडी को कितनी दूर खींच पायेगा।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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