14 अपै्रल, 2013 को बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर की जयंती के अवसर पर विवाद खड़े कर सुश्री मायावती ने साबित कर दिया है कि उनको इस महापुरूष के प्रति कोई श्रद्धा नहीं है बल्कि वह उनकी आड़ में अपनी राजनीति चमकाना चाहती थी। इसलिए बाबा साहेब के भक्तों ने भी बसपा अध्यक्ष को सबक दिया और बसपा रैली एक फ्लाप शो बनकर रह गई।
सुश्री मायावती ने अपने जमाने में प्रदेश को बदहाल और बदनाम बनाया। जनता के हर वर्ग का उत्पीड़न किया। महापुरूषों के स्मारकों के नाम पर भ्रष्टाचार और कमीशन खोरी का काला धंधा चलाया। बाबा साहेब जैसे महापुरूष के समकक्ष अपनी प्रतिमाएं लगवा दीं। तानाशाहों को छोड़कर किसी ने जीते जी अपनी प्रतिमाएं नहीं लगवाई हैं। पार्कों, स्मारकों के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई लूटने और लुटाने का खुला खेल चला। अब बसपा की पूर्व मुख्यमंत्री को दलित याद आ रहे हैं जबकि पूरे पांच साल के उनके कार्यकाल में दलित उनके आस पास भी नहीं फटक सकते थे। किसी दलित से वे उस अवधि में नहीं मिली। उनके कई मंत्री विधायक बलात्कार में संलिप्त रहे। थाने तक में अस्मत लूटी जाती रही। जिस किसी दलित महिला ने अपना दुखड़ा सुनाने की कोशिश की तो उसे जेल भिजवा दिया गया। बसपा राज में पूर्व मुख्यमंत्री का आदेष ही कानून था। उनके नाम पर चंदा वसूली का ऐसा आंतक था कि कइयों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ गया। विपक्ष के प्रति उनका रवैया विद्वेष पूर्ण था। समाजवादी पार्टी के एक लाख कार्यकर्ताओं पर फर्जी मुकदमें लगा दिए गये थे। जातीयता के उन्माद के फलस्वरूप बसपा सरकार में सामाजिक सद्भाव बिगड़ गया था और कानून व्यवस्था तार-तार हो गई थी। उनके कई मंत्री, विधायक लूट, भ्रष्टाचार, अवैध कब्जे और अकूत संपत्ति बनाने के आरोपों में जेल की हवा खा रहे हैं। अब भी बसपा के कई पूर्व मंत्री लोकायुक्त और सी0बी0आई जाॅच के घेरे में हैं और उन्हें भी जेल यात्रा करनी पड़ सकती है। बसपा की पूर्व मुख्यमंत्री सत्ता से बाहर होने से बौखलाई हुई हैं। वे मतिभ्रम की शिकार हो गई हैं। उन्हें यह याद नहीं कि पहली बार मुुख्यमंत्री बनते ही श्री मुलायम सिंह यादव ने विधानसभा की सड़क का नाम डा0 अम्बेडकर मार्ग कर दिया था। अम्बेडकर योजना के तहत दलितों को राहत देने का काम हुआ था। दलितों और मुस्लिमों की शैक्षिक, आर्थिक तथा सामाजिक उन्नति के लिए समाजवादी पार्टी सरकार ने तमाम निर्णय लिए हैं। समाजवादी पार्टी डा0 अम्बेडकर और दूसरे दलित महापुरूषों को बसपा की तरह वोट बटोरने का माध्यम बनाने में विश्वास नहीं करती है, वह इन्हें श्रद्धेय मानती है। मायावती कभी इनके रास्ते पर चली नहीं क्योंकि बाबा साहब की शिक्षाओं को उन्होंने पढ़ा ही नहीं। बाबा साहब समता मूलक समाज के पक्षधर थे, जबकि सुश्री मायावती समाज को तोड़ने का काम करती रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री जब कानून की बात करती है तो हंसी आती है। उन्होंने कभी कानून का सम्मान नहीं किया। वे कानून तोड़ने-फोड़ने का कोई इरादा भी न रखें। जनता ने उन्हें खुद तोड़ दिया है। अभद्र और असंसदीय भाषा का इस्तेमाल वह हताशा और कुंठा की वजह से कर रही हैं। उन्हें अपनी जबान पर लगाम देना चाहिए। अब कभी उन्हें सत्ता में नहीं आना है और इसी भरोसे के साथ उन्हें जीना सीख लेना चाहिए।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com