१२ अप्रैल । नगर की सडको को चैडा कराने एवं सड़कों के बीच डिवाइडर बनवाना निश्चय ही प्रशासन का सराहनीय कार्य है परन्तु इन मार्गो पर आवागमन की व्यवस्था पूर्णतः ठीक ढंग से न करा पाना प्रशासन की बहुत बडी असफलता है । मार्गो को चैडा कराने का प्रशासनिक उद्देश्य तो आवागमन को आसान बनाना था लेकिन इन मार्गो का अधिकांश भाग गाडियों की पार्रि्कग के रुप मे इस्तेमाल हो रहा है ।
इस हकीकत को नगर की किसी भी सडक पर आसानी से देखा जा सकता है ऐसे मे तो यही अंदाजा लगता है कि प्रशासन जान बूझकर इन तथ्यों की अनदेखी कर रहा है । बस स्टैड से लेकर गोलाघाट तक सडको को यातायात हेतु अच्छी तरह से परिमार्जित किया गया लेकिन इसके रखरखाव की जिम्मेदारी से मुंह मोड लिया गया है अवंतिका जलपान गृह, सवेरा होटल और बैड बाक्स की दुकानो के सामने यातायात हेतु बनी सडको का अधिकांश हिस्सा पार्रि्कग या कहे अवैध पार्रि्कग के रुप मे इस्तेमाल हो रहा है ।
मोटर साइकिल और चार पहिया वाहन इस तरह से यहीं खडे किये जाते है कि आने जाने वाले लोगो और वाहनो के लिए नाममात्र की जगह बचती है परिणाम स्वरुप दिन भर जाम की समस्या झेलनी पडती है । आगे बढें तो ठीक यही हाल रमाशंकर मार्केट के सामने है । सडक के दूसरे किनारे पर प्राइवेट सवारी वाहनो का अनाधिकृत स्टैड । और आगे बढे तो गोलाघाट स्थित आई. सी.आई.सी.आई. बैंक और अगल बगल की दुकानो के सामने भी अवैध रुप से दिनभर दो पहिला और चार पहिया वाहनो द्वारा सडक का भरपूर उपयोग पार्किग हेतु दिनभर किया जाता है ।
हैरानी की बात ये है कि यह स्थिति जिलाधिकारी निवास के ठीक सामने की है तो बाकी जगह की बात ही क्या । जिलाधिकारी हो सकता है इस स्थिति से अनजान हो क्योकि बंद गाडी में बैठकर आने जाने मे उन्हे पता ही नही लगता होगा कि आस पास क्या स्थिति है । इन सारी स्थितियों को देखकर यातायात पुलिस प्रशासन की कर्तव्य विमुखता ही सिद्ध होती है या फिर से माना जाय कि सक्षम अधिकारियों और कर्मचारियों के उहृपर वर्कलोड इतना ज्यादा है कि उन्हे यह सब दिखाई ही नही दे रहा है । कुछ भी हो नगर की सूरते हाल यही है शासन प्रशासन की सफलता असफलता का निर्णय आप खुद करिये । प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता ?
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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