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सुरक्षित मातृत्व के लिए गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ तीन वर्षों में 200 प्रतिशत बढ़ा संस्थागत प्रसव, वर्ष 2005-06 मंे 20.6ः के मुकाबले वर्ष 2009 में 62.1ः हुआ

Posted on 12 April 2013 by admin

edited-dsc01775सुरक्षित मातृत्व के लिए गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ
तीन वर्षों में 200 प्रतिशत बढ़ा संस्थागत प्रसव, वर्ष 2005-06 मंे 20.6ः के मुकाबले वर्ष 2009 में 62.1ः हुआ
लगातार बेहतर होती स्वास्थ्य सुविधाओं से प्रदेश में  मातृ मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आई है। वर्ष 1997 में 707 के मुकाबले वर्ष 2010 में यह दर 345 हो गयी है। इस तरह पिछले 13 वर्षों में यह 49 प्रतिशत घटी है। आशा है, आने वाले दिनों में और मजबूत स्वास्थ्य सेवाओं और जन जागरूकता की वजह से इसमें तेजी से कमी आएगी।
कस्तूरबा गाँधी के जन्मदिन 11 अप्रैल को सुरक्षित मातृत्व दिवस के तौर पर मनाते हुए इस अवसर पर आयोजित मीडिया कार्यशाला में डाॅ. नीरा जैन, महाप्रबंधक, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वस्थ्य मिशन-उत्तर प्रदेश ने बताया कि प्रसव के दौरान या फिर गर्भावस्था के 42 दिनों के अन्दर यदि गर्भपात, गर्भ की किसी जटिलता  अथवा प्रसव की वजह से माँ की मृत्यु होती है तो उसे मातृ मृत्यु की श्रेणी में रखा जाता है।  इसकी गणना प्रति एक लाख जीवित जन्म प्रति वर्ष के हिसाब से की जाती है।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अधिकारियों के अनुसार, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 के आंकड़े बताते हैं कि संस्थागत प्रसव में तीन वर्षों में 200 प्रतिशत वृद्धि हुई और यह वर्ष 2005-06 मंे 20.6ः के मुकाबले वर्ष 2009 में 62.1ः हो गयी है।
मातृ मृत्यु और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए सरकार द्वारा कई योजनायें चलायी गयी हैं जिनका सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल रहा है। विशेषतः जननी सुरक्षा योजना और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रमों को प्रोत्साहन मिलने से संस्थागत प्रसव की संख्या बढ़ी है और इस कारण से मातृ-मृत्यु और नवजात-मृत्यु की संख्या भी कम हुयी है।
गर्भावस्था की समस्याओं के बारे में बताते हुए विशेषज्ञों ने कहा कि प्रदेश में प्रति वर्ष लगभग 55 लाख महिलायंे गर्भवती होती हैं और उनमे से 15 प्रतिशत गर्भावस्थाओं में समस्याएं होने की संभावनाएं होती हैं, इनमे से कई समस्याएं ऐसी होती हैं जिनका पूवानुमानुमान नहीं किया जा सकता और उन्हें साधारण रूप से दूर भी नहीं किया जा सकता लेकिन यदि सही समय पर उचित देख भाल न मिले तो इनमंे से ज्यादातर की मृत्यु की संभावना होती है। सही समय पर उचित इलाज से इन्हें बचाया जा सकता है। इनमंे 5 से 8 प्रतिशत महिलाओं को आपरेशन द्वारा प्रसव की आवश्यकता होती है।
प्रदेश में होने वाले कुल प्रसवों के 43 प्रतिशत प्रसव जननी सुरक्षा योजना के अंतर्गत राजकीय स्वास्थ्य इकाइयों पर हो रहे हैं, 2 प्रतिशत प्रसव सरकार सहायतित अस्पतालों में एवं 16 प्रतिशत प्रसव निजी क्षेत्र के अस्पतालो ंमें हो रहे है। प्रदेश में प्रतिवर्ष लगभग 3 लाख बच्चों की मृत्यु हो जाती है जिनमें से 1.25 लाख की मृत्यु अपने जन्म के पहले ही सप्ताह में हो जाती हैं । इसकी प्रमुख वजह भी प्रसव पश्चात उचित सुविधाएँ समय से न मिल पाना ही है।
मातृ मृत्यु के प्रमुख कारणों में रक्त स्राव, असुरक्षित गर्भपात, एक्लैम्पसिया, उच्च रक्तचाप और बाधित प्रसव हैं। वार्षिक स्व्ास्थ्य सर्वे-2010 के अनुसार मातृ मृत्यु अनुपात में 345 के आंकड़े के साथ उत्तर प्रदेश भारतीय राज्यों में दूसरे स्थान पर था जबकि 381 के साथ असम का स्थान पहला था। राजस्थान में यह 331, मध्य प्रदेश में 310, बिहार में 305, झारखण्ड में 278, उड़ीसा में 277, छत्तीसगढ़ में 275 और उत्तराखंड में 188 था।
मृत्यु के कारणों और और इसे रोकने के सरकार के प्रयासों के बारे में बताते हुए अधिकारियों ने कहा कि इस तरह के मामले में पहली देरी होती है खतरे की समय पर पहचान न हो पाना और दूसरी देरी होती है स्वास्थ्य सेवाओं तक समय से पहुँच न पाना। मातृ मृत्यु अनुपात में कमी लाने में 108 की एम्बुलेंस सेवा सहायक होगी, जो सही समय पर गर्भवती को अस्पताल तक पहुचने में कामयाब हो रही है। साथ ही आशा बहुओं द्वारा गर्भवती की देखरेख के दौरान ही यह तय कर लिया जाना कि प्रसव के समय पर उसे किस अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र पर किस वाहन से ले जाना है मातृ मृत्यु अनुपात में और अधिक कमी लाने में सहायक होगी। वर्तमान में 1,30,000 आशा बहुएं इस काम में लगी हैं और वे गर्भवती को उचित सलाह और शिक्षा दे रही हैं। तीसरी देरी यानि स्वास्थ्य सेवाओं में कमी, को दूर करने के लिए ए0एन0एम0/स्टाफ नर्सों का क्षमता वर्धन कार्यक्रम चलाया जा रहा है और महिला डाक्टरों की नियुक्ति की जा रही है। साथ ही साथ 1001 ग्रामीण केन्द्रों को 24ग7 प्रसव इकाइयों के रूप में सक्रिय किया गया है।
अधिकारियों ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि सरकार द्वारा सुदृढ़ की जा रही सुविधाओं का सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों के बीच व्यापक प्रचार-प्रसार होना बहुत जरुरी है जिससे वे वास्तविक रूप से इन सेवाओं का लाभ ले सकें।
वर्ष 2012 के लिए राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस की थीम ‘सुरक्षित मातृत्व के लिए गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ’’ था और उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे ही वर्ष 2013 के लिए थीम बनाने का निर्णय लिया है। सुरक्षित मातृत्व दिवस के अवसर पर सभी बिन्दुओं पर जानकारी व कार्यक्रमों के व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु कई कार्यक्रम प्रदेश के सभी जनपदों पर आयोजित किये जा रहे हैं ।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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