वर्तमान शिक्षा प्रणाली नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक सरोकार स्थापित करने में असफल सिद्ध हुई है। इसलिये वर्तमान शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन करना आवश्यक है। आज प्राथमिक विद्यालयांे से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक शिक्षक अपने कर्तव्यों से विरत हो चुके हैं। अभिभावकों की यह जिम्मेदारी है कि वह अध्यापकों से पूछें कि वे छात्रों को क्या पढ़ा रहे हैं और स्वयं क्या पढ़ रहे हैं ? आजकल शिक्षकों में पढ़ने की रूचि घटती जा रही है जिसका असर शिक्षण की गुणवत्ता पर पड़ रहा है। नैतिक मूल्यों में गिरावट की अहम वजह यही है।
उक्त विचार सोमवार को यू.पी. प्रेस क्लब में पण्डित सालिग्राम शुक्ल की 13वीं पुण्यतिथि पर विकास पुरूष पं. सालिग्राम शुक्ल सेवा संस्थान, उ.प्र. द्वारा आयोजित ‘‘क्या वर्तमान शिक्षा प्रणाली नैतिक मूल्यों और सामाजिक सरोकारों की कसौटी पर खरी उतरती है?’’ विषयक संगोष्ठी में वक्ताओं ने व्यक्त किये। संगोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित करते हुए उ.प्र. और उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने कहा कि वही शिक्षा प्रणाली बेहतर मानी जाती है जो छात्रों में नैतिक मूल्यों और सामाजिक सरोकार की भावना विकसित करे। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की जरूरत बताते हुए श्री तिवारी ने कहा कि देश में इस समय जो चैतरफा नैतिक गिरावट देखने को मिल रही है वह मौजूदा शिक्षा प्रणाली की खामियों को उजागर करती है। उन्होंने कहा कि आदर्श शिक्षा प्रणाली व्यक्ति और समाज को उन्नयन के रास्ते पर ले जाती है।
पूर्व मंत्री एवं वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वरूप कुमारी बक्शी ने संगोष्ठी में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान में शिक्षा से लेकर समाज और राजनीति में हर जगह नैतिक मूल्यों में कमी देखी जा रही है। अगर हम अपनी शिक्षा प्रणाली को नैतिक मूल्यों पर आधाारित बनायें तो देश समाज की तमाम विसंगतियों को दूर किया जा सकता है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे प्रो. रमेश दीक्षित ने कहा कि मौजूदा शिक्षा प्रणाली में और अधिक गिरावट की गुंजाइश नहीं बची है। देश एवं समाज के हित में आजादी के पूर्व से चली आ रही शिक्षा प्रणाली को बदलना ही होगा। इसके अलावा शिक्षकों के पेंच भी कसे जाने जरूरी हैं। अभिभावकों समेत पूरे समाज की यह जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चों के साथ ही शिक्षण संस्थाओं एवं शिक्षकों पर नज़र रखें। पूर्व मंत्री अशोक बाजपेयी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली समाज एवं नैतिकता से कितना सरोकार रखती है, यह सोचनीय है। उन्होंने कहा कि सिर्फ शिक्षा प्रणाली बदलने से ही नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक सरोकारिता में वृद्धि नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि सारा दोष शिक्षा प्रणाली का ही नही है, नैतिक मूल्यों में गिरावट के लिये काफी हद तक समाज भी जिम्मेदार है। आज समाज तमाम गलत कार्यों को भी अपनी मौन स्वीकृति देता है। संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए न्यायमूर्ति हैदर अब्बास ने कहा कि आज से पचास वर्ष पूर्व भी यही शिक्षा प्रणाली थी, लेकिन समाज में उच्च कोटि के नैतिक मूल्य थे। हर शिक्षित व्यक्ति देश एवं समाज से सरोकार रखता था। इसलिये नैतिक मूल्यों में गिरावट के लिये सिर्फ शिक्षा प्रणाली को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, इसके लिये कई कारण जिम्मेदार हैं। संगोष्ठी को खासतौर से डाॅ. पुष्पा तिवारी, मजदूर नेता वाई.के. अरोड़ा, डाॅ. हसन रज़ा, सिराज मेंहदी तथा सुरेन्द्र राजपूत समेत दर्जन भर वक्ताओं ने सम्बोधित किया। इसके पूर्व संस्थान द्वारा स्वरूप कुमारी बक्शी, न्यायमूर्ति हैदर अब्बास, डाॅ. अम्मार रिज़वी, डाॅ. पुष्पा तिवारी, डाॅ. हसन रज़ा, वाई.के. अरोड़ा, प्रियदर्शी जेतली, सिराज मेंहदी, डाॅ. सूर्यप्रकाश तिवारी प्राचार्य, हिसामुल इस्लाम सिद्दीकी, पत्रकार संतोष वाल्मीकि, सुरेन्द्र वर्मा तथा सुरेन्द्र राजपूत का मुख्य अतिथि नारायण दत्त तिवारी द्वारा अंगवस्त्र प्रदान कर सम्मान किया गया ।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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