१५ मार्च । जनपद के महत्वपूर्ण संस्थानो, आफिसों एवं न्यायालयो में कार्य करने वाले लोग वादकारियों गली मोहल्लो के लोग में आने वाले संविधान संशोधन की बडी चर्चाएं है । वैसे तो राष्ट्रपति द्वारा संशोधनो को ३ फरवरी से त्वरित पूरे देश मे लागू कर दिया है और इसे ६ माह के अन्दर चर्चा के बाद सदन द्वारा पारित कराना आवश्यक है ।
सांसद सदस्य कुछ संशोधनो पर एक राय नही है क्योकि दिल्ली गैंगरेप के बाद कडे कानूनो की आवश्यकता हुई । जिस पर तत्काल समिति के रिपोर्ट पर शासना देश राष्ट्रपति द्वारा जारी किया गया । प्रश्न यह उठता है कि भारतीय दण्ड संहिता में पहले से उल्लिखित सजा के प्रावधान छेडखानी और दुष्कर्म के मामले में आखिरकार क्यो सही साबित नही हुए है ।
लोगो का मानना है कि चाहे जितने बडे नियम बनाये जायें उसका सही अनुपालन नही किया जायेगा तो समस्या मुंह बाये खडी रहेगी । बनाये गये नियमो का पालन तो पुलिस प्रशासन को ही करना है । प्रशासनिक अमला नियमो का सही पालन तब तक करती है जब तक उसके कोई करीबी लोग कानून के दायरे मे अभियुक्त नही बनते ।
जैसे ही कोई करीबी सगे सम्बन्धी कानून की पेंचीदगी में फंसते है तुरन्त उसी कानून के रास्ते व परिभाषाएं बदल जाती है । चर्चा में इस समय उम्र का विषय ज्यादा गम्भीर माना जा रहा है । विशेष कर यह फैसला कि उम्र १६ वर्ष कर दिया जाय तो इस स्थिति मे लोगो का आंकलन है कि १६ साल उम्र का भी दुरुपयोग किये जाने का खतरा आम जनता से नही बल्कि उन लोगो से है जो ज्यादा स्पष्ट वादी व रसूखदार लोग है । लोगो की एक राय रैकेट के लोग ही इसका फायदा उठाने का प्रयास करेगें । जिसमें उनकी कभी जल्दी से पकडदारी नही हो पाती है ।
यदि कुछ लोग जान भी जायें तो शिकायत करने के पहले अपनी जान की सुरक्षा खतरे मे दिखायी पडती है । गांवो मे कहावत है कि जो लोग नियम कानून बनाते है तो उन्हे अपने बचने के रास्ते भी ढूढने पडते है । कही ऐसा नही तो वयस्कता उम्र १८ साल मे अभी तक बडे घराने ज्यादा अभियुक्त बनाये गये हो और मामले भी जब प्रकाश मे आये है तो हवस की शिकार महिलाएं निम्न वर्ग व मध्यम वर्ग में जीवन यापन करने वाले परिवार से ज्यादा है । ज्यादातर तो मामले यदि पकड मे आ जाते है तो वह अपराध दुष्कर्म का हो जाता है । और पकड मे नही आये तो सब ठीक ठाक मनोरंजन के रुप मे चलता रहता है ।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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