06 मार्च, 2013
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, श्री बी0एल0 जोशी ने आज भातखण्डे संगीत संस्थान समविश्वविद्यालय के द्वितीय दीक्षान्त समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश की संगीत परम्परा की अपनी विशिष्टता रही है और इसका योगदान भी ऐतिहासिक है। हिन्दुस्तानी संगीत इसी प्रदेश की उल्लेखनीय देन है। शास्त्रीय संगीत के साथ ही सुगम संगीत पर भी उत्तर प्रदेश ने अपनी छाप छोड़ी है। उन्होंने कहा कि वर्तमान संगीत के पुनर्जागरण की अलख महाराष्ट्र में विष्णु दिगम्बर पलुस्कर और पं0 विष्णु नारायण भातखण्डे ने जलाई थी, परन्तु उनका प्रयास उत्तर प्रदेश में ही सफल हुआ। उन्होंने कहा कि लगभग 86 वर्ष पूर्व लखनऊ में भातखण्डे संगीत संस्थान की स्थापना हुई, जो आज एक वटवृक्ष के रूप में हमारे सामने है।
राज्यपाल ने उपाधि प्राप्त छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि इस विश्वविद्यालय की डिग्री अन्य विश्वविद्यालयों की डिग्री से बिल्कुल अलग है। उन्होंने कहा कि यहां विद्यार्थी अपनी कला में जितना रियाज करेंगे उतनी ही इसमें कामयाबी मिलती जायेगी। कला के क्षेत्र में पारगंत होने तथा कुछ नया करने पर ही अपनी जगह बना पायेंगे। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यहां उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को संगीत के क्षेत्र में अच्छे अवसर प्राप्त होंगे और सफल संगीतज्ञ के रूप में अपना विशिष्ट स्थान बनाने में सफल होंगे।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि पद्मविभूषण पंडित बिरजू महाराज जी ने कहा कि शिक्षक संगीत शिक्षा में कमी न करें। भारतीय संगीत को बढ़ाये जाने की आवश्यकता है। संगीत और लखनऊ से उनका पुराना रिश्ता है। उन्होंने छात्र-छात्राओं एवं उपाधिधारकों को अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।
भातखण्डे संगीत संस्थान समविश्वविद्यालय की कुलपति, सुश्री श्रुति सडोलीकर काटकर ने विश्वविद्यालय की प्रगति आख्या रिपोर्ट प्रस्तुत की। दीक्षान्त समारोह में राज्यपाल ने सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को स्वर्ण पदक एवं उपाधि देकर सम्मानित किया।
कार्यक्रम में पद्मविभूषण पंडित बिरजू महाराज जी व सुश्री शाश्वती सेन ने अपनी नृत्य प्रस्तुति दी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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