सिटिजन फाॅर सस्टेनेबुल डेवलपमेण्ट (सी0एफ0एस0डी0) के संस्थापक अध्यक्ष, भूतपूर्व पी0सी0एस0 चन्द्र भूषण पाण्डेय, पर्यावरणविद ने बताया कि संस्था द्वारा, दिनांक 05 मार्च, 2013 से एक 11 दिवसीय गोमती नदी अध्ययन एवं तटवासी जनजागरण पदयात्रा निकाली जा रही है।
अध्ययन दल, मारकण्डेय महादेव, गंगा-गोमती संगम, गाजीपुर से शुरू होकर जौनपुर, सुल्तानपुर, फैजाबाद, बाराबंकी होते हुए लखनऊ पहुॅचेगा। अध्ययन के दौरान अध्ययन दल लगभग 300 किमी0 की यात्रा करते हुए, 200 गाॅवों में जनसंवाद स्थापित करेगा। यात्रा अवधि में 25 गोष्ठिया की जाएगी।
अध्ययन दल प्रत्येक 3 किमी0 पर सी0एफ0एस0डी0 रिवर फ्रेण्ड क्लब के सदस्य के रूप में 100 गोमती मित्रों की तैनाती करेगा जो नदी साक्षरता तथा संस्था की माॅगों को कार्यरूप में बदलने के लिए आवष्यक वातावरण का निर्माण करेगा।
संस्था के द्वारा अध्ययन में प्राप्त तथ्यों पर रिपोर्ट तैयार कर विष्व जल दिवस पर मा0 राष्ट्रपति भारत सरकार तथा महामहिम राज्यपाल उ0प्र0 को प्रेषित करेगा। संस्था अपनी रिपोर्ट ‘‘नदी की व्यथा’’ शीर्षक स्मारिका में प्रकाषित करेगा। सी0एफ0एस0डी0 का मानना है नदी स्वास्थ रक्षा के लिए जनान्दोलन खड़ा करना एक मात्र समाधान है। संस्था द्वारा इस क्रम विगत एक दषक से यमुना, गंगा, सई तथा इस वर्ष गोमती नदी के तटवासियों को जागृत करने का अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान का संक्षिप्त विवरण निम्नवत हैः-
अवधि:- 5 मार्च 2013 से 16 मार्च 2013 (11 दिवसीय)
सम्मिलित जनपद- गाजीपुर, जौनपुर, सुल्लतानपुर, फैजाबाद तथा बाराबंकी से गुजरते हुए लखनऊ।
पद यात्रा की दूरी:- लगभग 300 किमी0
पद यात्रा में सम्मिलित गांव:- नदी के दाहिने तट के लगभग 200 गांव।
अध्ययन दल के जिला मुख्यालयों पर पहुॅचने का कार्यक्रम निम्नवत् है:-
ऽ गाजीपुर-मारकण्डेय महादेव (गंगा-गोमती संगम) गाजीपुर -5 मार्च, 2013 (पूर्वाह्न 10 बजे)
ऽ जौनपुर-गोमती तट (षाहीपुल) -7 मार्च, 2013 (पूर्वाह्न 3 बजे)
ऽ सुल्लतानपुर गोमती तट (पपर्यावरण-पार्क) -11 मार्च, 2013 (पूर्वाह्न 3 बजे)
ऽ लखनऊ गोमती तट -16 मार्च, 2013 (पूर्वाह्न 3 बजे)
अध्ययन दल का नेतृत्व चन्द्र भूषण पाण्डेय जिला उद्यान अधिकारी/पर्यावरणविद द्वारा किया जाएगा। इस दल में आषीष सिंह, अमरेज बहादुर, के0 के0 सिंह तथा जिलाजीत प्रमुख रूप से सम्मिलित रहेगें। इसके अलावा विभिन्न जनपदो के कार्यकर्ता एवम् नागरिक भी सम्मिलित होते रहेंगे।
सिटिजन फाॅर सस्टेनेबुल डेवलपमेण्ट सोसाइटी (सी0एफ0एस0डी0) द्वारा गंगा, यमुना, घाघरा, गोमती एवं सई नदी प्रणाली का विगत आठ वर्षों से निरन्तर गहन परीक्षण, विष्लेषण तथा अवलोकन किया जा रहा है। अध्ययन के दौरान संस्था को जो तथ्य मिले उसके आधार पर उक्त नदी प्रणालियों के अक्षुण्ण भविष्य के लिए (पूर्ण नीरा, सदा नीरा तथा पवित्र नीरा) निम्नानुसार माँग भारत सरकार तथा अन्य सम्बन्धित संस्थाओं के समक्ष निरन्तर रखी जा रही हैं-
सीवेज/स्लज को नदी में प्रवेष करने से रोका जाय। सीवेज को उपचार संयंत्रों के माध्यम से षत प्रतिषत उपचारित करके जल सिंचाई हेतु कृषकों को उपलब्ध कराया जाये।
श्मषाम घाटों को अनिवार्यतः विद्युतीकृत शवदाह गृहों में रूपान्तरित किया जाये तथा प्रतीक रूप में ही राखो का विसर्जन नदी में किया जाय।
परम्परागत श्मषाम घाटों को नदी तटों से विस्थापित किया जाये। नदी तटों पर केवल विद्युतीकृत शवदाह गृहों को ही अनुमति प्रदान की जाये।
औद्योगिक अपषिष्टों के नदी में प्रवाहित होने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया जाये।
नदी से जल निकासी का नियमन किया जाय तथा जल चोरी पर कड़ी निगरानी रखी जाय।
नदी को सदा नीरा, पूर्ण नीरा तथा पवित्र नीरा बनाये राने हेतु नदी में बाँध न बनाये जाये।
नदी को डस्टबिन न मानते हुए एक जीवन्त प्रणाली माना जाय तथा उसके जीवन से खिलवाड़ बन्द किया जाय।
जल पुलिस का गठन किया जाय। जल थानों एवं पुलिस चैकियों की स्थापना किया जाय।
प्रदूषण नियंत्रण प्रणाली के संस्थागत रूप को और प्रभावी बनाया जाय।
समस्त नदी जल स्रोतों का मात्रात्मक एवं गुणात्मक डेटाबेस बनाया जाय तथा इसकी निगरानी मासिक आधार पर किया जाय एवं इसकी सूचना दैनिक समाचार पत्रों एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से जन मानस के समक्ष प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया जाये।
प्रदूषण नियंत्रण में जन भागीदारी को प्रोत्साहित करने हेतु संस्थागत विकास किया जाए।
नदियों में मिलने वाले नालों पर चेकडैम बनाये जायें तथा वर्षा काल में नदी के पूर्ण नीरा होने के उपरान्त नालों के चैनल बन्द कर दिया जाय। जो जल अभाव की दषा में उपयोग में लाया जाये जिससे नदी जल उपयोग पर दबाव कम होगा।
नदी में प्रदूषण करने के अपराध के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान किया जाय तथा पर्यावरणीय अपराधों के लिए विषेष न्यायालय बनाये जाये। जिसमें न्यायाधीष के रूप में पर्यावरणविदों को नियुक्त किया जाय।
यदि समय रहते उपर्युक्त सुझावो पर अमल नही किया गया तो वैदिक नदी सरस्वती की तरह गोमती भी काल के गाल में समा जाये तो आष्चर्य नही होगा। विगत 60 वर्षो में आदि गंगा गोमती दो तिहाई जल खो चुकी हैं तथा अवषेष एक तिहाई जल को समाप्त होने में मात्र 30 वर्ष लगेगा। आदि गंगा गोमती विलख रही है अपने जीवन की अन्तिम सांसे गिन रही है। पतित पावनी गोमती मानव के पापो के बोझ के तले ऐसी दबी हुई है जैसे लगता है कि इस कलयुगमें असहाय द्रौपदी तारण हार श्री कृष्ण की बाट जोह रही है। आज की यमुना रीवर नही सीवर है। गोमती की सहायक क्वारी नदी सूख चुकी है। गोमती भी सूखने वाली है गोमती के सूखने के साथ ही हमारी एक बहुत बड़ी सांस्कृतिक धरोहर सूख जायेगी गोमती के दोनों तटों पर बसे एक लाख से अधिक परिवारो की रोटी भी सूख जायेगी। गोमती माता के सूखने के साथ ही पतित पावनी गंगा भी शायद ही गंगा सागर पहुंच पायेगी।
अतः नदी तटवासियों एवं प्रषासन से अनुरोध है कि उपर्युक्त बिन्दुओं को प्राथमिकता के आधार पर संज्ञान लेते हुए आवष्यक नीतिगत एवं वैधानिक तथा प्रषासनिक बदलाव के लिए आवष्यक वातावरण बनाने तथा तद्नुसार कार्यवाही करवाने में अपनी भूमिका अदा करने की कृपा करें।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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