भक्ति और आस्था के साथ-साथ साधु-संतों द्वारा किये गये सामाजोत्थान के कार्याें में अनोखा रहा महाकुम्भ

Posted on 03 March 2013 by admin

महाकुंभ मेले में कई मायने में खास और अनोखा रहा। अनोखा इसलिए कि इस कुंभ में सिर्फ स्नान ध्यान, मोक्ष, भक्ति की ही बात नहीं हो रही थी बल्कि महाकुंभ में आए संत धर्म की अलख तो जगा ही रहे थे, साथ ही कर्म, गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने एवं सामाजिक विकास और समाज सुधार  की बात भी कर रहे थे। गंगा से लेकर ‘बेटी बचाओ‘ तक के आंदोलनों के जरिए यहां आए संत अपने संदेश मुखरता से प्रचाारित कर रहे थे। सूचना विभाग अपनी प्रदर्षनियों और दूसरे डिस्पले माध्यमों के जरिए, जो बात आम जनता तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा था, वही बात साधु-संत करते नजर आए।
जाहिर है ये कुंभ सिर्फ आस्था का संगम भर नहीं रहा। ये संदेशों और आंदोलनों का संगम भी बना। देश भर के संतों का इलाहाबाद में संगम हुआ। तो पूरे विष्व के कल्याण की बात की जाने लगी। कई संतों ने फैसला किया कि धर्म की बात बहुत हो गई अब कर्म की बात भी करनी चाहिए। जिस समाज ने उन्हें संत बनाया उस समाज के लिए भी कुछ करना चाहिए। क्योंकि इतिहास गवाह रहा है कि स्वामी विवेकानंद और दयानंद सरस्वती जैसे संतों ने समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया था।
गंगा की निर्मलता और अविरलता को लेकर कुंभ में हमेशा चिंता व्यक्त की जाती रही है। संत समाज वर्षो से गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए आंदोलन करता रहा है। लेकिन संभवतः पहली बार उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद में गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर चल रहे महाकुंभ में पर्यावरण और बेटी बचाओ, महिला सशक्तिकरण तथा प्रदूषणमुक्त भारत सहित गरीब की पुत्रियो के विवाह कराने के लिए संतों की ओर से अभियान चलाया गया।  कोई संत विकलांगों के विकास की बात कर रहा था तो कोई गो वंष की रक्षा का संदेष दे रहा था।  तो कोई देष के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले षहीदों की याद में अखंड यज्ञ कर रहा था। इस महाकुंभ में  भगवान के नाम के साथ -साथ धर्म और कर्म की बात करने वाले कर्मयोगी संतों का भी बोलबाला रहा।
कुंभ में गंगा को बचाने के लिए कई संतों ने आवाज बुलंद कर रखी थी। प्रषासन के सामने भी गंगा को स्वच्छ बनाए रखने की बड़ी चुनौती थी। कई संस्थाओं ने कुंभ के षुरू होने से पहले ही गंगा की स्वच्छता से जुड़े कई नारे मेला क्षेत्र से लेकर पूरे षहर में लगाए गए थे। प्रशासन और नगर निगम ने स्नान के दौरान साबुन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा रखा था। कोशिश यही थी कि कुंभ के दौरान करोड़ों की संख्या में आए लोग गंगा को लेकर संवदेनशील बने और गंगा इस दौरान कम से कम प्रदूषित हो।  खुद स्थानीय सांसद रेवती रमण सिंह ने गंगा की सफाई को लेकर कार्यक्रम चलाया। उन्होंने ही शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी को मनाया। शंकराचार्य आए तो उन्होंने अपने शिविर में बाकायदा गंगा यमुना सम्मेलन करवाया। जिसमें उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी आये। वहीं अरैल घाट पर मौजूद परमार्थ निकेतन में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री के आने पर संत समाज की ओर से गंगा को लेकर कानून बनाने के लिए एक प्रस्ताव भी उन्हें सौंपा गया।
गंगा की रक्षा के साथ साथ जिस मुद्दे पर सबसे ज्यादा बल संतो ने दिया वह था पर्यावरण संरक्षण। महाकुंभ में आस्था के साथ सामाजिक सरोकार की भी गंगा बह रही थी, जहां साधु-संत इसे ग्रीन कुंभ का दर्जा दिलाने में जुटे हुए थे। इस आंदोलन का सबसे बड़ा केंद्र रहा अरैल घाट पर स्थित परमार्थ निकेतन। जिसके अगुवा स्वामी चिदानंद मुनि ने पूरे कुंभ के दौरान गंगा और पर्यावरण को लेकर झंडा बुलंद किए रखा। ग्रीन कुम्भ के संकल्प में शामिल होने के लिए उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बी एल जोशी सहित उ0प्र0 के लोक निर्माण ,सिचाई मंत्री शिवपाल यादव भी आए थे। ‘हरित कुम्भ‘ का संकल्प लेने वाले बाबा के विदेशी भक्तों ने पर्यावरण प्रेम को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए अपने आप को एक हरे पेड़ के रूप में सजाया और फिर पूरे मेले क्षेत्र में घूम घूमकर लोगों को हरित कुम्भ के संकल्प को दोहराया
विश्व के सबसे बडे धार्मिक आयोजन महाकुंभ में आस्था के साथ ही देशभक्ति की भावना स्पष्ट रूप से दिख रही थी, क्योंकि यहां शहीदों को सम्मान देने के लिए कई तरह के आयोजन किए जा रहे थे। सबसे खास रहा सेक्टर 9 स्थित बालक योगेष्वर दास की ओर से बनाया गया ‘शहीदों का गाव‘। इस धार्मिक मेले में उन जवानों के लिए भी जगह दी गई थी, जिन्होंने कारगिल युद्ध और मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के दौरान देश की आन-बान और शान के लिए अपनी शहादत दी थी।
वहीं राजस्थान के शनिधाम ट्रस्ट के महामंडलेश्वर परमहंस दाती महाराज एक ऐसे मुहिम को चला रहे थे, जो आज की तारीख में सबसे अहम है। बेटी बचाने की मुहिम। हाल के दिनों में जिस तरह महिलाओं के प्रति उत्पीड़न और अत्याचार के मामले सामने आए उसके बाद दाती महाराज ने ये फैसला किया। दाती महाराज ने ‘बेटी बचाओ‘ अभियान से संत समाज और अपने भक्तों को जोड़ने के लिए एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन अपने षिविर में किया था। ऐसे ही कई और मुद्दों के साथ संत समाज ने कुंभ के दौरान न ही उस पर चर्चा की, बल्कि संगोष्ठियां बुलाकर अपने भक्तों को भी जागरूक करते नजर आए।
कुंभ के इस पवित्र अवसर की महत्ता मंे एक अध्याय तब और जुड़ गया जब मेला के सेक्टर नम्बर 6 में बजरंग दास मार्ग गंगा तट पर स्थित भिखारी उर्फ जंगाली बाबा सोनभद्र के षिविर में पूरी तरह निःशुल्क रूप से बिना दहेज के कुल 99 जोड़े कुंभ मेलाधिकारी मणि प्रसाद मिश्रा की उपस्थिति में परिणय-सूत्र में बंधाये गये। इन 99 जोड़ों में एक जोड़ा मुस्लिम परिवार का भी था। इन परिणय-सूत्र में बंधने वाले जोड़ों में अधिकांश गरीब परिवार के थे और अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा पिछड़े वर्ग से संबंधित थे जो छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखण्ड राज्य के थे।
प्रदेश सरकार की भी शुरू से यही कोशिश थी कि कुंभ के दौरान जहां उत्तर प्रदेश की जनता सरकार की योजनाओं के बारे में समझें वहीं बाहर से आए लोगों के बीच प्रदेष के अच्छे शासन अच्छी व्यवस्था का संदेश जाए। कुम्भ में देश विदेश से आये विभिन्न बुद्धिजीवियो, मन्त्रीगणों मनीषियो ने भी कुंभ मेले की व्यवस्था देख प्रसंसा करके ही गये।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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