1 मार्च
कुंभ मेला केवल भक्ति, आस्था, अध्यात्म और दर्शन का ही संगम नहीं रहा बल्कि यह कई अन्य विधाओं खान पान, वेशभूशा, रहन-सहन आदि सहित भारतीय संस्कृति और सभ्यता का संगम रहा। इन तीनों नदियों के समागम स्थल पर वास्तव में जो संगम देखने को मिला है उससे भारतीय संस्कृति की छवि प्रदर्षित हुई है। इस समागम स्थल की रेती पर देश-विदेश से आये लोगों का रहन-सहन, खान-पान, वेशभूशा, संस्कृति, कलाकृति आदि का जो मिलन होता है उससे सही मायने में नदियों के समागम स्थल पर संगम को सम्पूर्ण भारत का संगम कहा जा सकता है।
इस संगम नगरी में विभिन्न भाषाओं का संगम रहा। कंुभ में लगे विभिन्न तम्बुओं में विभिन्न प्रांतों के लोग एक साथ रहते थे, एक साथ स्नान करते थे और खान-पान, रहन-सहन भी साथ-साथ रहा। देश के कोने-कोने से आये विभिन्न धर्माचार्यो, संतों के अखाड़ों, धर्म स्थलों में भी लोगों का संगम देखने को मिला।
मेले में छोटे कारोबार की शक्ल लिए कलाकृतियों का संगम भी कुंभ मेला-2013 में एक से बढ़कर एक अद्भूत छटा देखने को मिलती रही। प्रदेश के इस प्रमुख शहर इलाहाबाद में देश के विभिन्न प्रांतों से आये व्यापारी अपने प्रांतो के मशहूर चीजें को बिक्रय व प्रदर्शन हेतु लाये थे, राजस्थान और असम में लकड़ी से बनी कलाकृतियों में ऊँट, हाथी, ताजमहल, कई तरह के घर, दिलकश जूतियाँ, नागरे, कई रंग के सिंदूर, और अन्य तरह की मनमोहक वस्तुए अपनी रंग बिखेर रहें है, वहीं दूसरी तरफ पूर्वाेत्तर भारत की परम्परागत विभिन्न वस्तुओं की झलक का संगम देखने को मिला। इसके साथ ही साथ मेले में खूबसुरत कश्मीरी शाॅल, चादरें, कारपेट, पाशमीना शाॅल, रजाई और भी कई वस्तुएं कशमीर घाटी की कलाओं का प्रसार भी कर रही है। वहीं नागालैण्ड की मूंगा सिल्क साड़ी व कपड़े मेले में अपनी पहचान बनाये रखा।
खान पान के संगम में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी संस्कृति के लिए मशहूर भारतीय खान-पान का भी संगम इस महाकंुभ में देखने को मिल रहा है। चूंकि इस कुंभ मेले में विदेश व देश के विभिन्न प्रांतों से भक्त, श्रद्धालु और सैलानी आये। जिनका खान-पान विभिन्न प्रकार का होता है जैसे महाराष्ट्र के लोगों को पाव-भाजी तथा महाराष्ट्रीयन खान-पान, भेलपूरी, दक्षिण भारत के से आये लोगों को उत्पम, ढोसा, इटली, साम्भर और अन्य दक्षिण भारतीय व्यंजन खाते हुए देखे जा सकते हंै। गुजरात से आये लोग ढोकला, पोहा, श्री खण्ड, दाल ढोकला व दाल पराठा आदि खाते हूए देखे गये। इसे पूूर्वोत्तर के प्रांतों से आये लोग भी खाते थे। साथ ही साथ पूर्वांचल की दाल बाटी, लिट्टी चोखा आदि भी देष विदेष से आये पर्यटक, श्रद्धालु/स्नानार्थी चाव से खा रहे थे। यह संगम नगरी भारतीय व्यंजनों की संगम नगरी रही है।
वेशभूषा का संगम प्रयाग राज इलाहाबाद मंे दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले में वेषभूषा का जो संगम देखने को मिल रहा था वो भी अपने आप में अद्भूत संगम था। यहां देश विदेश के विभिन्न प्रांतों से आये लोग अपने पारम्परिक वेषभूषा में आये थे और यहां पर आकर अन्य प्रांतों की वेशभूषा को भी अपना कर उन प्रांतों के लोगों के साथ घुल मिलकर उन प्रांतों की संस्कृति खान पान, वेशभूशा, रहन-सहन आदि की विषेषता को भी जाना। इस कुंभ में कई गृहस्थों द्वारा आपसी वैवाहिक रिष्ते भी बनाये गये हैं। महाकंुभ का यह संगम भारतीय संस्कृति, रहन-सहन, वेषभूषा की एक नमूना सभी के सामने पेष किया। जो कि पूरे विष्व में अन्य किसी जगह पर देखने को नहीं मिलता है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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