सुलतानपुर २८ फरवरी
जनपद मे चल रही बाल विकास पुष्टाहार विभाग की योजना आई०सी०डी०एस० योजना मे लगी गरीब महिलाएं स्वयं आर्थिक कुपोषण की शिकार हो गई है ।
गौरतलब हो कि जनपद में चल रही बाल विकास विभाग की कुपोषित नीतियों के चलते इसके अन्र्तगत गांव गांव योजना को संचालित करने वाली आंगन वाडी कार्यकत्रियों और सहायिकाएं बीते ३५ वर्षो से सरकार की इस योजना मे समाज सेवा कर रही है और उन्हे सरकार इस भंयकर मंहगाई के युग मे बेहद अल्प मानदेय पर भारत सरकार की अति महत्वपूर्ण योजना को एक मजबूरी और एक आस के सहारे चलाने मे लगी है ।
मगर सरकारे आती है सरकारे जाती है मगर इनके मानदेय या सरकारी कर्मी बनाने की बात नही होती सरकार कभी रोजगार सेवक बनाती है कभी सफाई न करने वाले सफाई कर्मी की भर्ती करती है और तो और बिल्कुल न काम करने वाले शिक्षको की धडाधड भर्ती करती जा रही है मगर जो वाकई गांव गिरांव के अतिनिर्धन परिवार के बच्चो की सेवा स्वास्थ्य और पढाई कराने के लिए बीते ३५ वर्ष से जुटी है उन्हे व उनके परिवार को ही कुपोषित करने मे लगी है उन्हे इतना कम मानदेय दिया जाता है कि उससे दो जून की रोटी नही खाया जा सकता ।
चूंकि यह दशा एक आंगनवाड़ी व सहायिका की है वो भी एक गरीब महिला होने के नाते मजबूर है । और सरकार जैसी ताकतवर संस्था से लड नही सकती सबसे बडी बात यह है कि इनका कोई मजबूत संगठन नही है और कर्मचारी संगठनो को सर्मथन भी नही है यही कारण है कि प्रदेश के गरीबो की आय भी ३६००० सालाना सरकार मानती है मगर इन महिलाओ की आय भी इसी के बराबर ठहरती है मगर इन्हे या इनके परिवारो को सरकार की शायद ही कोई योजना का लाभ दिया जाता हो ? जबकि प्रदेश व केन्द्र सरकार की लगभग ज्यादातर योजनाओं मे भी इन्हे मूल योजना से हटाकर जोड दिया जाता है फिर भी सरकार न तो इनके भविष्य को देखती है न ही इनके परिवार को बस इतना जरुर करती है कि कभी प्रधानमंत्री तो कभी मुख्य सचिव उ०प्र० कुपोषण पर चिन्ता जरुर जाता है मगर जिनके सहारे इसे दूर किया जाना है उनके कुपोषण पर कभी सरकार नही सोचती ।
उ०प्र० सरकार इन्हे महज २००रु० प्रतिमाह देती है और इनके कर्मचारी अधिकारी इन महिलाओं से पूर्ण कालिक कर्मचारियों के बराबर काम लेती है मगर उन्हे कभी तवज्जो नही देती । उक्त बाते और व्यथा आंगनवाडि़यों ने नाम न छापने की शर्त पर आव्रहृोश व्यक्त किया गया ।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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