आम के गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए सम-सामयिक महत्व के कीट एवं रोगों का उचित समय में प्रबन्धन नितान्त आवश्यक है, क्योंकि बौर निकलने से लेकर फल लगने तक की अवस्था अत्यन्त ही संवेदनशील होती है। वर्तमान में आम की फसल को मुख्य रूप से भुनगा एवं मिज कीट तथा खर्रा रोग से क्षति पहंुचने की ज्यादा सम्भावना बनी रहती है।
यह जानकारी निदेशक, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण श्री ओम नारायण सिंह ने दी है। उन्होंने बताया कि आम की फसल में लगने वाले भुनगा कीट बौर, कोमल पत्तियों एवं छोटे फलों के रस चूसकर हानि पहंुचाते हैं जिससे प्रभावित भाग सूखकर गिर जाता है। यह कीट मधु की तरह का पदार्थ भी विसर्जित करता है, जिससे पत्तियों पर काले रंग की फफूॅद जम जाती है, इसके फलस्वरूप पत्तियों द्वारा हो रही प्रकाश संश्लेशण की क्रिया भी मंद पड़ जाती है। उन्होंने कहा कि मिज कीट मंजरियों एवं तुरन्त बने फलों तथा मुलायम कोपलों में अण्डे देती हैं, जिसकी सूॅडी अन्दर ही अन्दर खाकर क्षति पहुंचाती हैं, प्रभावित भाग काला पड़ कर सूख जाता है। भूनगा एवं मिज कीट के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 0.3 मिली0 प्रतिलीटर पानी में या क्लोरपाइरीफास 2.0 मिली0 प्रतिलीटर पानी या डायमेथोएट 2.0 मिली0 प्रतिलीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
श्री सिंह ने बताया कि खर्रा रोग के प्रकोप से ग्रसित फल एवं डंठलों पर सफेद चूर्ण के समान फफूॅद की वृद्धि दिखाई देती है। प्रभावित भाग पीले पड़ जाते हैं तथा मंजरियां सूखने लगती हैं। उन्होंने कहा कि खर्रा रोग से बचाव हेतु ट्राइडोमार्फ 1.0 मिली0 दवा प्रतिलीटर पानी में या डायनोकेप 1.0 मिली प्रतिलीटर पानी के घोल को भुनगा कीट के नियत्रंण हेतु प्रयोग किये जा रहे घोल के साथ मिलाकर छिड़काव किया जाना चाहिए।
संयुक्त निदेशक (उद्यान) श्री राणा प्रताप सिंह ने भी बागवानों को सलाह दी है कि बागों में जब बौर पूर्ण रूप से खिल रही हो तो उस अवस्था में कम से कम रसायनिक दवाओं का छिड़काव किया जाये जिससे पर-परागण क्रिया प्रभावित न हो सकें।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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