ओम नारायण सिंह
लखनऊ: दिनांक 07 फरवरी, 2013
फरवरी एवं मार्च का महीना शहद उत्पादन एवं मौनवंश विभाजन के लिए सबसे उपयुक्त होता है। इस मौसम में मौनों को पराग तथा मकरन्द पर्याप्त मात्रा में मिलता है, जिसके कारण मधु उत्पादन एवं प्रजनन कार्य तीव्र गति से होता है इस समय मौनवंशों को सर्दी से बचाने हेतु आवश्यक उपाय करना जरूरी है। बी फलोरा क्षेत्र में माइग्रेशन करो से मौनवंश सम्बर्द्धन के साथ-साथ मधु उत्पादन का अच्छा लाभ मिलता है।
यह जानकारी निदेशक उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण श्री ओम नारायण सिंह ने दी है। उन्होंने सर्दी में मौनपालन प्रबंधन करने हेतु मौनपालकों को सलाह दी है कि मौनवंशों का माइग्रेशन बी लोरा क्षेत्र में समय से कर देना चाहिए, जिससे मौनें, पूर्ण रूप से फूल खिलने तक प्रक्षेत्र से परिचित हो जायें। मौनवंशों को ठंण्ड से बचाने हेतु मौनगृह का प्रवेश द्वार छोटा कर देना चाहिए तथा टाप कवर में पुवाल आदि भर देना चाहिए जिससे तापक्रम नियंत्रित बना रहे। काफी पुराने काले छत्तों को निकाल कर नये छत्तों का निर्माण कराना चाहिए, जिससे मौमी पतिंगों से सुरक्षा हो सके।
श्री सिंह ने कहा कि इस मौसम में ब्रूड रियरिंग तेज हो जाती है, जिससे मौनों की संख्या अधिक हो जाने से स्वार्म की प्रवृत्ति जागृत होने लगती है। अतः बकछूट नियंत्रण पर पूर्ण सावधानी बरतनी चाहिए। अधिक स्वार्मिग की स्थिति दिखाई देने पर मौनवंशों का तत्काल विभाजन कर देना चाहिए। क्योंकि बकछूट के समय विभाजित मौनवंश उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं। मौनालय में उच्च क्षमता वाले मौनवंशों में रानी कोष बनवा लिए जायें। इन रानी कोषों को विभाजित मौनवंशों में देने से कम समय में अच्छी गुणवत्ता वाले मौनवंश तैयार किये जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि शहद निष्कासन के समय यह सुनिश्चित कर लिया जाये कि कम से कम 70-80 प्रतिशत कोष्ठ सील कर दिये गये हों ताकि परिपक्व शहद का उत्पादन हो सके। जहां तक हो सके मौनपालक अलग-अलग फसलों से उत्पादित होने वाले मधु को प्रथक-प्रथक भण्डारित करें ताकि शहद की गुणवत्ता बनी रहे और बाजार में इसका उचित मूल्य प्राप्त किया जा सके।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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