प्रदेश के औद्यानिक फसलों के गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए पौधों को कैटरपिलर (सूड़ी/लर्वा) से बचाना अति आवश्यक है। पौधांे में कीटों व रोगों की रोकथाम के लिए समय से जैव उर्वरक व जैव नियंत्रक का प्रयोग अत्यन्त लाभदायक होगा।
यह जानकारी निदेशक, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण श्री ओम नारायण सिंह ने दी है। उन्होंने बताया कि औद्यानिक फसलों को सम-सामयिक कीटों व रोगों से बचाकर किसान अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि एन0पी0वी0 (न्यूक्लीयर पाली हिड्रोसिस वायरस) कैटरपिलर (सूड़ी) के रोकथाम के लिए अत्यन्त प्रभावी जैवनाशी है। जब लर्वा छोटेे हांे तभी इसके घोल को सायंकाल संक्रमित पौधों पर छिड़काव करना चाहिए।
श्री सिंह ने बताया कि एजाडिरेक्टिन (नीम का तेल) हानिरहित वानस्पतिक कीटनाशक है। इसका प्रयोग किसान औद्यानिक फसलों में कीटों के नियंत्रण हेतु कर सकते हैं। एक लीटर नीम के तेल को 200 से 300 लीटर पानी में घोलकर पौधों में छिड़काव करना चाहिए। उन्होंने बताया कि जैव उर्वरक (बायो फर्टिलाइजर) मिट्टी की उर्वरकता को प्राकृतिक रूप से बढ़ाता है। किसान जैव उर्वरक का प्रयोग करके यूरिया की बचत कर सकते हैं तथा इससे बीज शोधन, मृदा उपचार एवं बेहन उपचार भी किया जा सकता है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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