औषधीय पौधों की खेती में किसान सीमैप में उपलब्ध नवीन तकनीकी का लाभ उठाये-कृषि मंत्री
किसान औषधीय पौधों की बाजार में खपत देखकर औषधीय एवं सगंध पौधों की खेती करें। इस खेती में खरीददारों को भी हिस्सेदार बनाये। इस संबंध में केन्द्रीय औषधि एवं सगन्ध पौधा संस्थान (सीमैप) में उपलब्ध वैज्ञानिक तकनीक का पूरा लाभ उठायें। किसान ऊसर भूमि का भी औषधीय पौधें लगाने में सदुपयोग कर सकते हैं। इससे मृदा के स्वास्थ्य में सुधार के साथ किसान समद्ध भी बनेंगे।
कृषि मंत्री श्री आनन्द सिंह ने आज यहाॅ यह विचार केन्द्रीय औषधि एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) द्वारा आयोजित एक दिवसीय किसान मेला में व्यक्त किये। इस अवसर पर उन्होंने औस ज्ञान्या एवं मैन्थेल खेती की नवीन कृषि पद्धति विषय पत्रिकाओं का विमोचन भी किया। उन्होंने कहा कि औषधियों को बोना, काटना, आसवन/प्रसंस्करण, विक्रय करना आदि कई स्थितियों से गुजरना पड़ता है। औषधियों की सामग्री गुणवत्ता पूर्ण हों, इसका एक मानक होना भी अति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि औषधीय एवं सगंध पौधों की खेती में नीलगाय का डर भी नहीं रहेगा। उन्होंने बताया कि कोई भी किसान औषधीय खेती का ज्ञान प्राप्त कर स्वयं भी औषधीय सगंध पौधों को उगाने का कार्य कर सकता है।
उन्होंने वैज्ञानिक किसानों को क्षेत्रवार औषधीय खेती करने का ज्ञान दें। उन्होंने बताया कि भारत देश औषधीय कृषि में पुराने समय में दुनिया में आगे रहा है, आज फिर वही समय आ गया है कि किसान औषधीय सगंध पौधों की खेती के महत्व को पहचानें एवं अपनायें।
किसान मेले में भारी संख्या में किसानों, कृषि वैज्ञानिकों एवं संबंधित व्यवसायियों ने भाग लिया। सीमैप के निदेशक डा0 आलोक कालरा ने ग्रामीण विकास कार्यक्रम एवं सीमैप के कार्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश मैन्था एवं मैन्था आयल उत्पादन में विश्व में सर्वप्रथम है। कृषि वैज्ञानिक डा0 संजय कुमार ने ट्राइकोडर्मा की खेती एवं इसकी उपयोगिता बताई।
मेले में भारतीय स्टेट बैंक, बायोटेक, सत्या इण्डस्ट्रीज, एग्रो सीमैप, मुस्कान अगरबत्ती, नेचरलेप, सीमैप पब्लिकेशन, जर्मन की कृषि टूल्स कम्पनी एवं प्रदेश की अन्य कृषि टूल्स कम्पनियों आदि ने अपने स्टाॅल लगाकर सजीव प्रदर्शन एवं उत्पादों का विक्रय किया। इस अवसर पर महिलाओं को अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण भी दिया।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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