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किसान आलू की फसल को कीट/रोगों से बचायें -कृषि निदेशक

Posted on 19 January 2013 by admin

रबी में उगाई जाने वाली सब्जियों में आलू का प्रमुख स्थान है, जिसमें कीटों/रोगों के प्रकोप के फलस्वरूप उत्पादन प्रभावित होता है। इसलिए यह आवश्यक है कि फसलों की नियमित निगरानी करते रहें कीट/रोग के प्रकोप की स्थिति में तत्काल उनके रोकथाम के उपाय अपनायें। आलू की फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों/रोगों माहू एवं कटवर्म कीट, अगेती-पछेती झुलसा, मोजैक रोग प्रमुख है।
कृषि निदेशक श्री डी0 एम0 सिंह से प्राप्त जानकारी के अनुसार आलू के कीटों में कीट पत्तियों एवं तनों का रस चूसकर नुकसान पहुॅंचाता है। यदि कीट का प्रकोप आर्थिक क्षति स्तर 5 प्रतिशत प्रभावित पौधे से अधिक हो तो एजाडिरैक्टिन 0.15 प्रतिशत ई0 सी0-2.5 लीटर, डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई0सी0-1.0 लीटर, मिथाइल-ओ-डिमेटान 25 प्रतिशत ई0 सी0 1.0 लीटर में से किसी एक को प्रति हे0 की दर से 500-600 ली0 पानी में घोल कर छिड़काव करें।
श्री सिंह ने बताया कि कटवर्म भूमिगत कीट है। कीट की सूडि़याॅं रात के समय छोटे-छोटे पौधों को जमीन की सतह से काट देती हैं। कीट के प्रकोप की स्थिति में क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई0सी0 की 1.0 से 1.5 लीटर मात्रा को 600-700 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए। उन्होंने बताया कि आलू की फसल में अगेती/पछेती झुलसा रोग का प्रकोप होने पर पत्तियों पर भूरे एवं काले रंग के धब्बे बनते हैं तथा तीव्र प्रकोप होने पर सम्पूर्ण पौधा झुलस जाता है। रोग के प्रकोप की स्थिति में मैन्कोजेब 75 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0-2.0 कि0ग्रा0, जिनेब 75 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0-2.5 कि0 ग्रा0 रसायनों में से किसी एक को प्रति हे0 की दर से 600-800 ली0 पानी में घोल कर छिड़काव किया जाये। श्री सिंह ने बताया कि यह रोग विषाणुओं द्वारा फैलता है जिसका प्रमुख वाहक कीट सफेद मक्खी है, जिसकी रोकथाम हेतु रोग ग्रसित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। रोग वाहक कीटों को नष्ट करने के लिए डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई0 सी0-1.0 लीटर, फास्फामिडान 40 प्रतिशत एस0एल0-500 मि0ली0 रसायनों में से किसी एक को प्रति हे0 की दर से 600-700 ली0 पानी में घोल कर छिड़काव करें।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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