बदलीयुक्त बूंदा-बांदी एवं नम वातावरण में विशेष सावधानी बरती जाये
आवश्यकतानुसार रसायन का छिड़काव करें -ओम नारायण सिंह
उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण निदेशक श्री ओम नारायण सिंह ने प्रदेश के किसानों को आलू की फसल को पिछेती झुलसा रोग से बचाने हेतु सलाह दी है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में आलू के व्यवसायिक एवं गुणात्मक उत्पादन को सुनिश्चित करने हेतु आलू उत्पादक सम-सामयिक महत्व के कीट/व्याधियों का उचित समय पर नियंत्रण करें, क्योंकि आलू की फसल पिछेती झुलसा रोग के प्रति अत्यन्त संवेदनशील होती है तथा प्रतिकूल मौसम विशेषकर बदलीयुक्त बूंदा-बांदी एवं नम वातावरण में झुलसा रोग का प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है जिससे फसल को भारी नुकसान होने की सम्भावना बनी रहती है।
श्री सिंह ने कहा कि आलू की अच्छी पैदावार सुनिश्चित करने हेतु किसानों द्वारा रक्षात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये। उन्होंने बताया कि पिछेती झुलसा रोग के प्रकोप से पत्तियां सिरे से झुलसना प्रारम्भ होती हैं जो तीव्रगति से फैलती हंै जिसके फलस्वरूप पत्तियों पर भूरे/काले रंग के जलीय धब्बे बनते हैं तथा पत्तियों के निचली सतह पर रूई की तरह फफूंद दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि बदलीयुक्त 80 प्रतिशत से अधिक आर्द्र वातावरण एवं 10 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम पर इस रोग का प्रकोप बहुत तेजी से होता हैै और 2 से 4 दिनों के अन्दर ही सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाती है।
उद्यान निदेशक ने कहा कि बदलीयुक्त मौसम में आलू की फसल को पिछेती झुलसा रोग से बचाने के लिये आलू उत्पादक जिंग मैगनीज कार्बामेट 2.0 से 2.5 कि0ग्रा0 को 800 से 1000 ली0 पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से पहला रक्षात्मक छिड़काव करें। उन्होंने कहा कि 10 से 15 दिन के अन्तराल पर काॅपर आक्सीक्लोराइड 2.5 से 3.0 कि0ग्रा0 अथवा जिंक मैगजीन कार्बामेट 2.0 से 2.5 कि0ग्रा0 में से किसी एक रसायन का चयन कर आवश्यकतानुसार दूसरा छिड़काव करें। उन्होंने बताया कि माहू कीट के प्रकोप की स्थिति में इसके नियंत्रण के लिए दूसरे छिड़काव में फफूंदीनाशक के साथ कीटनाशक जैसे-डायमेथाएट 1.0 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाकर छि़डकाव करें।
उन्होंने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि जिन खेतों में आलू की फसल को पिछेती झुलसा रोग का प्रकोप हो गया हो उसकी रोकथाम के लिए अन्तःग्राही (सिस्टेमिक) फफूंदनाशक मेटालेक्जिल युक्त रसायन 2.5 कि0ग्रा0 अथवा साईमोक्जेनिल युक्त फफूंदनाशक 3.0 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 ली0 पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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