इस बेतहाशा कड़ाके की ठंड में आम जनजीवन अस्त व्यस्त हो चुका है इस हाड़ कंपाउहृ ठंड से गरीब और निराश्रित जनता को बचाने का प्रशासनिक इंतजाम सिर्फ उहृंट के मुंह मे जीरा साबित हो रहा है ।
‘ये ठंड है कि ईश्श्व्रीय दंड है’ ये पंक्ति अनायास ही मन मे नही आ गई। जब आप भी गहराई से सोचेगे तब आप भी इस तथ्य से इंकार नही कर पायेंगें। क्योंकि आज समूचा उत्त्तर भारत ही नही बल्कि साथ ही साथ पूरा देश जिस तरह की कडाके की सर्दी के तले सांस ले रहा है उस सर्दी के संबंध मे पारे का उतार चडाव बताने से या प्रशासन पर राहत कार्योे मे अनियमितता का दोषारोपण करने भर से किसी को कुछ हासिल होने वाला नही है।
ये प्रकृति का ऐसा प्रहार है जिस पर अंकुश नही लगाया जा सकता सिर्फ अपने सामथ्र्य और विवेक से अपना बचाव किया जा सकता है विगत कुछ दिनो से जनपद सुलतानपुर का तापमान इस कदर गिर रहा है कि हम उत्त्तर प्रदेश के सबसे ठंडे शहरो की कगार मे आ गये है।
सुबह से लेकर सारा दिन और सारी रात हम चाहे घर मे हों या घर के बाहर, ऐसी कडाके की ठंड सहने को विवश है जो हड्डियो तक हमे ना चाहते हुए महसूस होती है चाहे जितना गर्म कपडा पहन लें अलाव के सामने बैठे रहे कुछ भी कर ले।
इस बर्फीली जानलेवा सर्र्दी के सामने हर कोई दुश्मन के आगे आत्मसमर्पण किया हुआ सिपाही जैसा नजर आ रहा है कुछ आशा के साथ धूप का इंतजार लोग करते है और धूप है कि निकलती ही नही हो जाता है सोने पर सुहागा।
क्या बच्चे क्या बुजुर्ग इस भयानक ठंड ने नौजवानो के हांथो की हथेलियो को यूं सर्द कर रखा है कि जो हथेलियां बेवजह भी बाइक का हैंडिल थाम लेती थी आज वही हथेलियां दस्ताने पहनकर भी बाइक के हैडिल पर कांपती हुई नजर आती है।
विगत चार छ सालो की बात छोडे दे तो ऐसी ठंड शायद यदा कदा ही पडी होगी । क्या आपने कभी सोचा है कि पहले भी यही प्रदेश थे, जिले थे, लोग थे और आज भी सब कुछ वही है तो मौसम मे इतना असुंतुलन क्यो।
आज गर्मी पडती है तो इतनी पडती है कि बोतल मे रखा साधारण पानी उबले हुए पानी जैसा लगता है बरसात होगी तो इतनी कि गांव के गांव डूब जायेगे और ठंडी पडेगी तो इस तरह कि खून बर्फ जैसा जमता प्रतीत होता है ये सब गौर करिये तो एक तरह का ईश्श्व्रीय दंड है।
जो ईश्श्व्र ने एक एक इंसान को अलग अगल न देकर समूची मानव जाति को इकटठें प्रकृति के माध्यम से दे रहा है। प्रकृति के माध्यम से क्यो दे रहा है तो जरुरत से ज्यादा छेडछाड इंसानो द्वारा प्रकृति से हुई और हो रही है इसीलिए बेलगाम वैज्ञानिको के अविष्कारो के अंधाधुध प्रयोग और मशीनीकरण ने प्रकृति मे जो असंतुलन पैदा कर दिया है।
इसका खमियाजा भी हमे इसी तरह बेलगाम गर्मी, बरसात और सर्दी के रुप मे भुगतना पडेगा कुछ सोचिए कि प्रकृति मे आये हुए इस असंतुलन को कैसे कम किया जाय मुदद यही है फिलहाल प्रकृति तो अपना प्रहार कर कर चुकी है हमे मौके पर अपना बचाव करना है।
जिससे जिस तरह बन पडे ठंड से अपनी सुरक्षा करे जो साधनहीन है, गरीब हैं उन्हे इस कडाके की ठंड से बचाने का जिम्मा क्या सिर्फ सरकार और प्रशासन का ही है सामथ्र्य शाली इंसानो की श्रेणी मे आने वालो को भी आगे आना चाहिए।
इंसानियत का तो यही तकाजा है सिर्फ शासन प्रशासन से मुकम्मल व्यवस्था की उम्मीद हमेशा रखना अपने आपको धोखा देना है इसलिए आज हमे पारा कितना चढा कितना उतरा अलाव कहॉ नही जला कम्बल बंटे कि नही बंटे सब छोडकर वस्तु स्थिति को स्वीकार करने, प्रकृति के इस ठंड रुपी प्रहार से अपनी और अपने लोगो की सुरक्षा करने की जरुरत है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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