प्रशासनिक सभा से प्रजातांत्रिक सभा तक
प्रशासनिक व्यवस्था के सुचारू संचालन एवं आवश्यक राजस्व संग्रह के उद्देश्य से ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने समय-समय पर जरूरत के अनुसार कम्पनी के नियमों एवं नीतियों में परिवर्तन किया। प्रारम्भिक दौर में कम्पनी ने बम्बई, मद्रास और बंगाल से ही कमेटी के सदस्यों द्वारा प्रशासन की शुरुआत की, किन्तु सुदृढ़ प्रशासन की आवश्यकता को देखते हुए ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा वर्ष 1833 में चार्टर ऐक्ट लागू करके गवर्नर जनरल पद का सृजन किया गया। वर्ष 1834 में चैथी प्रेसीडेंसी स्थापित की गई और इलाहाबाद को राजधानी बनाया गया तथा वहाँ के किले को मुख्यालय बनाकर व्यवस्था का क्रियान्वयन प्रारम्भ किया गया। इस राज्य का नाम नार्थ वेस्टर्न प्राॅविंसेज एण्ड अवध रखा गया।
1857 की क्रान्ति से उत्पन्न स्थितियों से निपटने एवं स्वाधीनता आन्दोलन को दबाने के उद्देश्य से 1861 में इण्डियन काउन्सिल ऐक्ट पारित किया गया, जिसमें राज्य लेजिसलेटिव काउन्सिल के गठन का प्रस्ताव पारित हुआ और उसमंे भारतीय प्रतिनिधित्व की बात कही गई। भारतीय आन्दोलनकारियों एवं स्वाधीनता की मांग पर अडिग महापुरुषों की बदौलत कम्पनी के लेजिसलेटिव काउन्सिल में भारतीयों को अधिकार मिल सका। पं0 मदन मोहन मालवीय ने तो यहां तक कह दिया था कि प्रतिनिधित्व का अधिकार दिये बिना सरकार को टैक्स लेने का अधिकार नहीं है, किन्तु ईस्ट इण्डिया कंपनी ने पूर्ण नियंत्रण अपने पास ही रखा। कौंसिल के शुरुआती सदस्यों में 5 अंग्रेज अधिकारी व 4 भारतीय प्रतिनिधि सम्मिलित थे। ऐक्ट में संशोधन करके सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई, जिसमें से अधिकांश गैर सरकारी थे। जन प्रतिनिधि व जनता के बीच कोई लोकतांत्रिक सम्बन्ध नहीं था। मुस्लिम मतदाताओं को अपना प्रतिनिधि चुनने के लिये पृथक निर्वाचन क्षेत्र का प्राविधान किया गया। वर्ष 1920 तक कौंसिल के सदस्यों की संख्या 123 कर दी गई।
जनवरी 1887 से अगस्त 1920 तक विधान मण्डल की कुल 38 बैठकें हुईं, जिनमें कुल 39 विधेयक प्रस्तुत किये गये और 4 बार राज्य सरकार का बजट पेश हुआ। थार्नहिल-मेन मेमोरियल भवन में 14 प्रस्ताव, मेयो मेमोरियल भवन में 18 प्रस्ताव, म्योर सेंट्रल कालेज में 3 प्रस्ताव तथा गवर्नमेंट हाउस में 3 प्रस्ताव पारित हुए।
एक अप्रैल 1937 को उत्तर प्रदेश में विधान सभा का गठन हुआ जिसमें सदस्यों की संख्या 228 निर्धारित की गई, किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उ0प्र0 विधान सभा का स्वरूप परिवर्तित हुआ और वर्तमान में विधान सभा की सदस्य संख्या 404 है, जिसमें से 335 सामान्य और 85 अनुसूचित जाति के सदस्य हैं। विधान परिषद की सदस्य संख्या 108 है।
लेजिस्लेटिव असेम्बली का नाम विधानसभा और लेजिस्लेटिव कौंसिल का नाम विधान परिषद पड़ा। स्वंतत्रता प्राप्ति के उपरांत भारतीय संविधान में 16 के स्थान पर 3 प्रकार के प्रतिनिधित्व का प्राविधान किया गया, जो कि सीधे जनता द्वारा चुन कर विधान सभा में भेजे जाते हैं। भारत की संविधान सभा में शुरुआती चरण में विधान सभा द्वारा 16 सदस्य चुनकर भेजे गये जिनमें सर्वश्री रफी अहमद किदवई, नवाब मोहम्मद इस्माइल खान, महाराज कुमार अमीर हैदर खान, पं0 जवाहर लाल नेहरू, पं0 गोविन्द बल्लभ पंत, डाॅ0 एस0 राधाकृष्णन, आचार्य जे0बी0 कृपलानी, श्रीमती सुचेता कृपलानी, श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित, हरगोविन्द पंत, हरिहर नाथ शास्त्री, डाॅ0 कैलाश नाथ काटजू, फिरोज गांधी, कमलापति त्रिपाठी, गोविन्द मालवीय, श्री प्रकाश, राजा जगन्नाथ बख्श सिंह, पदमपत सिंहानिया एवं पुरुषोत्तम दास दण्डन सम्मिलित हैं।
जिन दिनों संविधान सभा के लिए 55 सदस्य निर्वाचित किये गये उन दिनों मुस्लिम और सामान्य समुदाय के सदस्यों के निर्वाचन की अलग-अलग व्यवस्था थी। संविधान सभा के लिए 8 मुस्लिम तथा 47 सदस्य सामान्य समुदाय से निर्वाचित घोषित किये गये।
संविधान सभा के लिये निर्वाचित सदस्यों में आचार्य जे0बी0 कृपलानी, यू0पी0 के ऐसे सदस्य थे, जिनके भाषण से संविधान सभा की कार्यवाही 9 दिसम्बर, 1946 को पूर्वाह्न 11ः00 बजे आरम्भ हुई थी। उनके प्रस्ताव से डाॅ0 सच्चिदानन्द सिन्हा अस्थायी सभापति चुने गये और डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद को भी स्थायी सभापति चुने जाने के लिये आचार्य जी ने ही प्रस्ताव रखा था। दोनों प्रस्तावों का विरोध नहीं हुआ था। यू0पी0 के सदस्य श्री रफी अहमद किदवई और राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन, संविधान सभा की नियम समिति (रूल्स आॅफ प्रोसीजर कमेटी) के सदस्य थे तथा श्रीप्रकाश फाइनेंस एवं स्टाॅफ कमेटी और श्री मोहन लाल सक्सेना हाउस कमेटी के निर्विरोध सदस्य निर्वाचित हुए थे।
‘कैबिनेट मिशन’ ने 16 मई, 1946 को यह सुझाव दिया था कि संविधान सभा में भारतीय रियासतों और राजाओं के 93 प्रतिनिधि रखे जायें। 21 दिसम्बर, 1946 को श्री के0एम0 मुन्शी ने संविधान सभा में 6 सदयों का नाम देते हुए एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया कि यही सदस्य, सभा की एक समिति के लिए नामों का चयन करेंगे जो ‘चैम्बर आॅफ प्रिंसेज’ की ओर से गठित ‘निगोशियेटिंग कमेटी’ से विचार विमर्श करके सभा के लिये उनकी सीटें निर्धारित किये जाने पर विचार करेगी। यू0पी0 से निर्वाचित पं0 जवाहर लाल नेहरू इस समिति के सदस्य थे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के 65 वर्षों के उपरान्त भी जिस जनता के अधिकार प्राप्ति के लिये, समृद्धि व विकास के लिये अनेक महापुरुषों ने अपना बलिदान तक दे दिया था, वह अधिकार जनता को अभी भी प्राप्त नहीं हो सका है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जनता द्वारा प्रतिनिधि चुनकर विधानसभा में गये। जनता के हितों के लिये विधेयक भी बनाये गये। देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने के लिये नियम व कानून भी बनाये गये, परन्तु ठीक प्रकार से क्रियान्वित नहीं किये जा सके। विगत कुछ वर्षों में समाजवाद की नीतियों को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार ने जनता को शिक्षित व उन्नत बनाने के लिए हर सम्भव प्रयास किया है, जिससे जनता अपने प्रतिनिधि चुनते वक्त अपने बुद्धि और विवेक का परिचय दे सके। प्रदेश की वर्तमान सरकार ने वास्तव में भारत को गांवों का देश मानते हुए फसलों का सही दाम निर्धारण, स्वस्थ भारत के लिये बच्चों को दोपहर का भोजन, गांवों केे विद्युतीकरण, साईकिल आवंटन, मेधावी छात्रोें को लैपटाॅप वितरण, बोरोजगारी भत्ता, गांवों में ही महीने में 20 से 25 दिन तक रोजगार प्रदान करने की प्रक्रिया, उच्च शिक्षा प्रदान करने की उत्तम व्यवस्था, मुफ्त में शिक्षा की पुस्तकें, कन्याधन, छात्र-छात्राओं की जरूरत की वस्तुएं सरकार मुहैया करा रही है। इस प्रकार समाज के सभी वर्गों के सदस्यों के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा अनेक योजनाएं क्रियान्वित की गई हैं, जिससे कि प्रदेश का विकास सम्भव हो।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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