सरोजनी नगर आवासीय समिति मैदान में सच स्वरूपा मां जसजीत जी का प्रकाशोत्सव समारोह अत्यन्त श्रद्धा भक्ति एवं हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। आज के ही पावन दिवस, सन् 1993 में सच स्वरूपा मां को परमात्मा के साक्षात् दर्शन हुए और तदोपरान्त उन्होंने मानव सेवा का कार्य आरम्भ किया। आज के समारोह में सच स्वरूपा मां ने सुदूर प्रान्तों से आए भक्तों को नव वर्ष की शुभकामनाएं दीं और सत्य के मार्ग पर चलने की दुआएं और आशीर्वाद दिया।
‘चिन्ता’ विषय पर प्रवचन करते हुए मां ने कहा कि सांसारिक प्राणी मृग तृष्णा के पीछे भटकते हैं। सुख पाने के लिए परन्तु सच्चा सुख परमात्मा के नियम को स्वीकार करने में है, उसकी सच्चाई को अपनाने में है।
सच स्वरूपा मां ने कहा कि लोग इस कदर चिन्ता करते हैं कि यह उनकी आदत में शामिल हो जाता है। वह हर बात की फिक्र करते हैं, जिससे उनका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है, अनेकों रोग लग जाते हैं और मन और शरीर थका-थका रहता है।
सच स्वरूपा मां ने अपने प्रवचन में कहा कि हम अतीत की जिन बातों को बदल नहीं सकते, उन्हें स्वीकार कर लेने में भी भलाई है। चिन्ता से भविष्य और वर्तमान दोनों खराब हो जाते हैं।
मां ने कहा कि परमात्मा सर्वव्यापी सत्ता है, वो सबकी सुनता है, जरूरत है बस उसे आवाज़ लगाने की। प्रार्थना जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा कर देती है, अनेक साखियों के माध्यम से मां ने इस बात को स्पष्ट किया कि प्रार्थना इन्सान द्वारा उत्पन्न की जाने वाली ऊर्जा का सबसे सशक्त रूप है। मां ने कहा कि चिंतित व्यक्ति को चाहिए कि वह अधिक से अधिक कार्य में व्यस्त रहे, सुख पाने के लिए दूसरों पर उपकार करे और छोटी-छोटी बातों से अपने को विचलित न होने दे और प्रभु का चिंतन करे। सच स्वरूपा मां ने प्रवचन के अन्त में सभी को अपना दिव्य आशीर्वाद प्रदान करते हुए संगत को निरोग एवं मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु दुआएं दीं।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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