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‘प्रजातंत्र में संविदा सरकारें-अनिवार्यता और चुनौतिया विषय पर गोष्ठी का आयोजन

Posted on 30 December 2012 by admin

आज उत्तर प्रदेष विधान परिषद के सांविधानिक संसदीय अध्ययन संस्थान उत्तर प्रदेष शाखा की ओर से विधान भवन के तिलक हाल में ‘‘प्रजातंत्र में संविदा सरकारें-अनिवार्यता और चुनौतियाॅं’’ विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। सभापति विधान परिषद ने अपने संबोधन में कहा कि आज हम भारत के संविधान पर गौरव महसूस कर रहे है इस संविधान में ऐसी व्यवस्था है जो सरकारें जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। इसमें संविद सरकारें जब किसी पार्टी का सदन में बहुमत नहीं होता तो छोटे-छोटे दलों को मिलाकर बनते हैं। यह हमारे देष ही नहीं आज विष्व के तमाम देषों में इसका प्रचलन बढ़ गया है आज इसकी प्रांसगिकता और बढ़ गयी है। वास्तव में आज के परिपेक्ष में यह विषय बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है। संविदा के तहत गठित सरकारें ज्यादा जनता के प्रति जवाबदेह हो रही है। इसका अनेक भारत के राज्यों में उदाहरण है। गोष्ठी में विधान सभा अध्यक्ष श्री माता प्रसाद पाण्डेय ने कहा है कि 1967 के बाद जब समाजवादी अन्दोलन का जोर चला तो संविद सरकारों का गठन शुरू हो गया है तथा इस प्रदेष ही नहीं अनेक प्रदेषों में ऐसी सरकारें गठित हुई तथा जनता की इच्छाओं पर खरी उतरी है। तथा आज भी ऐसी सरकारें अच्छा कार्य कर रही है।

इस गोष्ठी में निदेषक संसदीय संस्थान नई दिल्ली प्रो0 वाई.सी. सिमहाद्री ने अपने संबोधन में कहा कि हमारा संविधान अत्मिक रूप से एकातमावादी तथा व्यवहारिक रूप से बहुलवादी है क्योंकि इस देष में आज 28 राज्य है तथा 7 केन्द्र शासित प्रदेष है। विषेष रूप से महाराष्ट्र, बिहार आदि में संविद सरकारें अच्छी कार्य कर रहे है तथा आषा है कि संविद सरकारों में ज्यादातर जनता की सुनवाई होती है।
इस गोष्ठी में अन्य विद्वान श्री कैलाष चन्द्र मिश्र, श्री राजेन्द्र कुमार वर्मा, श्रीमती तुलिका आषुतोष, प्रो0 बृजेष चन्द्रा, श्री एम. पी. साहनी तथा पूर्व मंत्री श्री शतरूद्र प्रकाष ने भी विचार व्यक्त किये तथा कहा कि संविद सरकारों के लिए श्री एस.आर. बोमई बनाम यूनियन आॅफ इण्डिया तथा दल बदल विरोधी अधिनियम 1985 में अनेक व्यवस्थायें है जो संविद सरकारों के प्रोत्साहन में मदद करती है तथा ऐसी गोष्ठियों की लखनऊ के अतिरिक्त अन्य स्थानों में भी आवष्यकता है। इस गोष्ठी में एक दर्जन से ज्यादा महिला एवं पुरूष विद्वानों ने संविद सरकारों को अनिवार्य बताया।
इस गोष्ठी के कारण माॅं सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण करते हुए आरम्भ हुआ तथा सभापति द्वारा आये हुए अतिथियों को स्मृति चिन्ह एवं साहित्य भी दिया गया। कार्यक्रम का संचालन प्रमुख सचिव विधान परिषद प्रताप वीरेन्द्र कुषवाहा ने किया। इस गोष्ठी में प्रदेष के लगभग 100 से ज्यादा षिक्षाविद एवं विद्वानों ने भाग लिया।
श्री नित्यानन्द स्वामी, श्री नागेन्द्र नाथ सिंह, श्री भवानी शंकर शुक्ल, श्री टम्बरेष्वर प्रसाद के निधन पर सभापति द्वारा शोक प्रस्ताव लाया गया तथा श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। गोष्ठी का समापन राष्ट्रगान जन-गण-मन के साथ हुआ।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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