उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने संकल्प के अनुरूप नहरों एवं राजकीय नलकूपों से किसानों को मुफ्त सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने का निर्णय लिया। इसके अलावा वर्षों से अधूरी सिंचाई परियोजनाओं को समयबद्ध रूप से पूरा करने के लिए लगभग
20 हजार करोड़ रुपए के निवेश से 4 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में अतिरिक्त सिंचन क्षमता सृजित कर प्रदेश में दूसरी हरित क्रान्ति लाने के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्ध है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के प्रतिनिधि के रूप में आज नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में प्रधानमंत्री डाॅ0 मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आहूत राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद की छठी बैठक में मुख्यमंत्री के विचारों से अवगत कराते हुए प्रदेश के सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने राष्ट्रीय जल नीति, 2012 में संशोधन किये जाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि शहरीकरण, औद्योगीकरण, बदलते मौसम चक्र तथा भूगर्भ जल के गिरते स्तर जैसे वर्तमान परिदृश्य की चुनौतियों के दृष्टिगत राष्ट्रीय जलनीति, 2012 में संशोधन किया जाना जरूरी है। राष्ट्रीय जलनीति के मसौदे के अधिकांश प्रस्तावों से राज्य सरकार की सहमति जताते हुए उन्होंने कहा कि नीति के प्रस्तर 2.1 में जल के संबंध में कानून बनाये जाने की बात कही गयी है, जो एक संवेदनशील विषय है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस विषय पर केन्द्र सरकार द्वारा सामान्य मार्गदर्शी सिद्धान्त ही तय करना समीचीन होगा।
सिंचाई मंत्री ने भारतीय भोगाधिकार अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन के संबंध में वृहद सामाजिक परिदृश्य को ध्यान में रखने का सुझाव दिया। उन्होंने प्रत्येक खेत और घर तक पानी पहुंचाने की सार्वजनिक व्यवस्था पूरी होने तक इस अधिनियम में संशोधन से पूर्व राज्यों से और अधिक विचार-विमर्श करने की जरूरत पर बल दिया। प्रदेश में 74,000 किमी लम्बी नहर प्रणाली, 29,600 राजकीय नलकूप, 273 पम्प कैनाल एवं 65 जलाशयों के अतिरिक्त निजी नलकूपों व अन्य साधनों से सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। राज्य सरकार अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप जल उपयोग क्षमता में वृद्धि, न्यूनतम जल संसाधन की मांग और आपूर्ति के लिए वैज्ञानिक विधि आधारित नियोजन, बाढ़ प्रबन्धन में आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग, कृषि, पेयजल तथा उद्योग में उपयोग के लिए अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग और नदियों को प्रदूषण से बचाने जैसे अनेकों उपाय कर रही है। उन्होंने भारत सरकार से सक्रिय सहयोग की जरूरत बताते हुए कहा कि राज्य सरकार द्वारा समग्र भूगर्भ जलनीति तैयार की जा रही है।
श्री यादव ने सरयू परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किये जाने पर आभार व्यक्त करते हुए कहा कि शारदा, शारदा सहायक की समेकित क्षमता पुनस्र्थापना परियोजना को भी राष्ट्रीय परियोजना में शामिल किया जाना चाहिए। इससे लगभग 35 जिलों की सिंचाई व्यवस्था को सुदृढ़ किया जा सकेगा। उन्होंने ऊपरी गंगा-यमुना समेकित क्षमता पुनरोद्धार योजना को भी राष्ट्रीय परियोजना घोषित किये जाने की जरूरत बतायी। उन्होंने सूखाग्रस्त विन्ध्य क्षेत्र एवं नक्सल प्रभावित जनपद सोनभद्र की कनहर सिंचाई परियोजना की स्वीकृति शीघ्र जारी करने तथा प्रदेश की राष्ट्रीय परियोजनाओं एवं ए0आई0बी0पी0 पोषित अन्य सभी सिंचाई परियोजनाओं का केन्द्रांश तत्काल अवमुक्त करने का अनुरोध किया। बुन्देलखण्ड पैकेज के अन्तर्गत 05 सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने हेतु 1240 करोड़ रुपए के अतिरिक्त पैकेज एवं नहरों पर सौर ऊर्जा उत्पादन की योजनाओं हेतु 200 करोड़ रुपए की सहायता से सम्बन्धित धनराशि तत्काल अवमुक्त किये जाने की भी मांग की। उन्होंने वृहद् एवं मध्यम सिंचाई योजनाओं तथा बाढ़ नियंत्रण की परियोजनाओं की स्वीकृति प्रक्रिया में समयावधि को कम करने तथा बाढ़ परियोजनाओं की पूर्ण धनराशि राज्य सरकारों को एकमुश्त अवमुक्त करने का अनुरोध किया।
श्री यादव ने सिंचाई हेतु आवश्यक जल की कमी को पूरा करने, बाढ़ की समस्या के निदान के लिए टिहरी बांध जलाशय को पूरी क्षमता से भरने, रेणुका बांध, किसाऊ बांध, लखवाड़-व्यासी बांध परियोजनाओं को शीघ्रता से पूरा कराये जाने तथा नेपाल के साथ पंचेश्वर, नेमुरे एवं करनाली बांधों का निर्माण प्रारम्भ किये जाने हेतु केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता बताई। गंगा-यमुना की अविरल एवं निर्मल धारा बनाये रखने के लिए समग्र प्रयास किये जाने, बारहवीं पंचवर्षीय योजना में प्रदेश की नदियों में जल उपलब्धता बढ़ाये जाने के लिए हाईड्रोलाॅजिकल सर्वेक्षण एवं अध्ययन कराने तथा केन-बेतवा लिंक योजना के क्रियान्वयन हेतु समयबद्ध कार्यवाही किये जाने की जरूरत बतायी।
बैठक में केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत, प्रदेश के प्रमुख सचिव सिंचाई श्री दीपक सिंघल, अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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