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भारतीय जनता पार्टी प्रदेश अध्यक्ष डा0 लक्ष्मीकांत बाजपेयी की प्रेसवार्ता के मुख्य बिन्दु

Posted on 12 December 2012 by admin

ऽ    कल रामपुर में मुख्यमंत्री ने अपने चुनाव घोषणा पत्र के अनुसार कार्य करने की बात कही।
ऽ    सपा घोषणा पत्र के पृष्ठ सं0 7 (कृषि) बिन्दु सं0 1 में कहा गया है कि ’’किसान की उपज का लागत मूल्य निर्धारित करने के लिये एक आयोग गठन किया जायेगा, जो तीन महीने में अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को देगा। लागत मूल्य का 50 प्रतिशत उसमें जोड़कर जो राशि आयेगी, वह विभिन्न फसलों का न्यूनतम् समर्थन मूल्य होगा और सरकार सीधे किसानों से इस निर्धारित मूल्य पर किसान की उपज की खरीद सुनिश्चित करेगी, इसमें खास तौर गन्ना, गेहूँ और धान की फसल से जुड़े किसानों को किसी तरह की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा।’’
ऽ    सरकार गठन हुए 9 माह हो चुके हैं इस बीच गेहूँ खरीद, धान खरीद और अब गन्ना मूल्य तीनों पर सरकार का रूख किसान विरोधी है। सरकार ने अपनी घोषणा के अनुरूप लागत मूल्य निर्धारित करने के लिए आयोग का गठन नहीं किया। मैं पहले भी कहता रहा हूँ कि यह सरकार असमंजस, अराजकता और अन्तरविरोधों से ग्रस्त है, नीतियों के चयन से लेकर कार्यान्वयन तक भ्रमित है।
ऽ    उत्तर प्रदेश में लगभग 35 लाख किसान परिवार गन्ने की खेती करते हैं।
ऽ    वर्ष 2011-12 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने गन्ना मूल्य की घोषणा की थी, तब तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष शिवपाल यादव ने 300/-रू0 प्रति क्विंटल गन्ना मूल्य घोषित करने की मांग की थी।
ऽ    भारतीय जनता पार्टी ने इस पेराई सत्र के लिए गन्ना मूल्य के संदर्भ में 400/- रू0 की मांग की थी। उसको लेकर मुख्यमंत्री का यह बयान आपत्तिजनक है कि विपक्षी दल जब सत्ता में आये ंतो मनचाहा मूल्य कर लेंगे। भाजपा ने गन्ना मूल्य लागत निकालने के लिए दो दल गठित किये गये थे।
लागत मूल्य
प्रथम दल            2011-12            2012-13
240/- प्रति क्विन्टल    284/- प्रति क्विन्टल
द्वितीय दल            310.97    ’’  ’’        379.64   ’’   ’’
सरदार पटेल कृषि वि.वि.मेरठ     -                232/-
ऽ    यदि हम 284/- प्रति क्विन्टल लागत मूल्य आधार मान लें तब स्वामीनाथन आयोग अनुसार लागत पर 50 प्रतिशत जोड़कर 426 रू0 प्रति क्विटल होना चाहिए।
ऽ    सभी वस्तुओं के मूल्य उत्पादन लागत से तय होते हैं।
ऽ    भूमि पूूंजी है। उत्पादन लागत में जुड़ती है। किसान अकेले खेतों पर काम नहीं करता। पूरा परिवार पति पत्नी नातेदार भी श्रमिक होते हैं। मनरेगा के दर में इन्हें भी दैनिक मजदूर माना जाना चाहिए। उत्पादन लागत में यह मजदूरी जोड़नी चाहिए। कृषियंत्र, डीजल, बिजली में लागत का हिस्सा है।
ऽ    सिंचाई की लागत बढ़ी है। डीजल की मूल्यवृद्धि के कारण टैªक्टर और डीजल इंजन का खर्च बढ़ा है।
ऽ    बिजली गायब रहती हैं
ऽ    खादें ब्लैक में मिली है।
ऽ    कुल मिलाकर उत्पादन लागत बढ़ी है। कर्ज माफी पर सरकार नें ठेंगा दिखाया है। उत्पादन लागत के समानान्तर 50ः लाभ जोड़कर ही कीमतें तय होती हैं। यही अर्थशास्त्र का सिद्धांत है। सरकार चीनी मिल मालिकों के मुनाफे का ध्यान रखती है लेकिन किसानों को उत्पादन से कम कीमत दिला रही है।
ऽ    यदि वास्तविक लागत मूल्य से सरकार सहमत नहीं है तो क्यों नही सरकार वास्तविक लागत बताये कि सपा की गणित में गन्ना उत्पादन लागत क्या है? घोषणा के अनुसार आयोग क्यों नहीं गठित किया?
ऽ    क्या सरकार किसान विरोधी नहीं?
ऽ    प्रतिक्रिया विसंगतिपूर्ण नहीं?
ऽ    20 नवम्बर को मंत्रिमण्डल ने मा0 मुख्यमंत्री जी को गन्ना मूल्य घोषित करने के लिए अधिकृत किया। 2-3 दिन में सरकार को घोषित करना था।
ऽ    23 नवम्बर से सदन था - 23, 26, 27, 29, 30 4, 5 को उपवेशन हुआ।
ऽ    26 व 5 तारीख को गन्ना मूल्य को लेकर बाधित सदन के बावजूद घोषणा न करना, क्या सदन का अपमान नहीं।
ऽ    सदन अनिश्चितकालीन स्थगन तिथि 05.12.2012 के बाद अगले दिन 06.12.2012 को घोषित करना सरकार की कायरता तो नहीं? सदन चलते यह मूल्य धोषित होते तो सरकार को पता चल जाता विरोध कैसा होता।
ऽ    कायदे से सदन सत्र में मुख्यमंत्री को गन्ना मूल्य की घोषणा करनी चाहिए थी। सदन के सदस्य सुझाव देते। किसानों की समस्याओं का पक्ष भी सरकार को पता लग जाता।
ऽ    स्थापित संसदीय परम्परा है कि सदन सत्र के ठीक पूर्व या ठीक बाद में सरकारें महत्वपूर्ण घोषणाएं नहीं करती।
ऽ    संविधान ने सरकार को सदन के समक्ष जवाबदेह बनाया है। सरकार को सदन में ही गन्ना मूल्य की घोषणा करनी चाहिए थी।
ऽ    भाजपा ने सरकार को सावधान किया था। स्वयं मैंने कहा था कि मुख्यमंत्री जी सदन में गन्ना मूल्य की घोषणा करें।
ऽ    भाजपा सदस्यों ने दोनों सदनों में गन्ना मूल्य और गन्ना किसानों का प्रश्न उठाया था।
ऽ    लेकिन सरकार ने सदन का सम्मान नहीं किया। किसान विरोधी गन्ना मूल्य की बात वह दिल में छुपाए रही। जैसे ही सदन का स्थगन हुआ सरकार ने चीनी मिल मालिकों को खुश करने वाला गन्ना मूल्य घोषित कर दिया।
ऽ    यह सदन की अवमानना है। किसानों पर हमला है।
ऽ    उत्पादन लागत 18.5ः बढ़ी- गन्ना मूल्य बढ़ोत्तरी 16ः पर भाड़ा (5.75 से 8.75 तक) 52ः बढ़ाया। यह कैसा न्याय है। तथा स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट तथा सपा चुनाव घोषणा पत्र का विषय लागत मूल्य पर 50ः का हुआ।
ऽ    सभी उत्पादनकर्ताओं व दुकानदारों को अपने उत्पादन का विक्रय मूल्य तय करने का अधिकार पर अन्नदाता किसान के उत्पादन का मूल्य उसके विरोध में तय होता है।
ऽ    सरकार व मिल के रहम पर, वह बाद में भुगतान के लिये ठोकरें खाने को मजबूर।
ऽ    पेराई सत्र के दो माह बाद घोषणा, अतएव 290/- रेट वाला गन्ना बचा ही नहीं, अनिश्चितता के कारण किसान क्रेशर पर 170/- बेच चुका।
ऽ    चीनी कीमत 100/- प्रति क्विन्टल बढ़ चुकी तब गन्ना के यह रेट क्यों?
ऽ    सरकार और चीनी मिल मालिकों की डील है। घोषित कीमतें गुप्त डील का नतीजा है। भाजपा जिम्मेदार राष्ट्रीय दल है। हमारी पार्टी किसानों की पक्षधर है। पार्टी ने आन्दोलन का निर्णय किया है। पार्टी किसान के हित में आरपार की लड़ाई लड़ेगी।
ऽ    ’’गन्ना मूल्य पर प्रदर्शन धरना’’
गन्ना उपायुक्त कार्यालय         13 दिसम्बर, 2012        सहारनपुर
14 दिसम्बर, 2012        मुजफ्फरनगर
15 दिसम्बर, 2012        शामली
ऽ    मुरादाबाद, बरेली, मेरठ उपायुक्त कार्यालय तथा कुशीनगर, देवरिया, सिद्धार्थनगर, बस्ती, बलरामपुर, गोण्डा, लखीमपुर खीरी, महराजगंज में तत्काल व्यवस्था करना।
नोट:- FDI केन्द्र लाया है। वालमार्ट ने केन्द्र की नीतियां प्रभावित करने की लाबींग की है। किसान ठगे गये हैं। सपा , बसपा, कांग्रेस तीनों किसान विरोधी है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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