मौनवंशों को बचाने हेतु दिसम्बर व जनवरी माह में विशेष उपाय करें

Posted on 11 December 2012 by admin

प्रदेश के मौनपालक किसानों को मधु उत्पादन को बढ़ाने हेतु सलाह दी जाती है कि वे मौमी पतिंगे की गिडारों से रोकथाम तथा मौनवंशों में किसी भी प्रकार की बीमारी सम्बन्धी विभिन्न तकनीकी जानकारी मौन विशेषज्ञ (मुख्यालय)/संयुक्त निदेशक (उद्यान) से सम्पर्क करके प्राप्त कर उसे दूर करें। साथ ही माइट/गिडारांे के प्रकोप से मौनवंशों को बचाने हेतु दिसम्बर व जनवरी माह में विशेष उपाय करें।
यह सुझाव उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण निदेशक श्री ओम नारायण सिंह ने दिया है। उन्होंने सलाह दी कि मौनवंशों को सुदृढ़/सशक्त बनायें तथा मौनगृहों की दरारों को बंद रखें। मौनपालक खाली छत्तों को मौनगृहों से निकाल कर पाॅलीथीन में ढक कर रखें तथा खाली छत्तों को हवारोधी ड्रम में रखकर ईडीसीटी मिश्रण से धूमित करें। उन्होंने बताया कि मौनपालक वैसीलिस थ्यूरिनजेंसिस (बीटी पाउडर) की 0.5 ग्राम दवा प्रति फ्रेम की दर से 1 लीटर पानी में घोलकर छत्तों पर छिड़काव करें तथा प्रभावित छत्तों को धूप में रख कर गिडारों को हाथ से मारंेे।
श्री सिंह ने कहा कि मौनवंशों को परजीवी अष्टपदी माइट के प्रकोप से बचाव हेतु विशेष सावधानियां बरतें। बैरोवा एवं ट्रोपीलीलेप्स क्लेरी माइट मौनवंशों के लारवा, प्यूपा एवं वयस्क मौनों के शरीर से खून को चूसते हैं, जिससे लारवा, प्यूपा एवं वयस्क मौन मर जाती हैं। बैरोवा माइट से प्रभावित मौन विकलांग एवं अविकसित रह जाती है, जो अवतारक पट (बाटम बोर्ड) के नीचे गिरी हुई मिलती है। उन्होंने कहा कि ट्रोपीलीलेप्स क्लेरी माइट से प्रभावित मौनों के पंख, पैर अविकसित एवं शरीर कमजोर हो जाता है तथा वे मौनगृह से गिर कर दूर रंेग कर जाती हुयी दिखाई देती है। एकरैपिस बुडाई (एकरीन रोग) रोग एक प्रकार का सूक्ष्य आन्तरिक परजीवी एकरैपिस (उडी रैनी) के कारण होता है जो कमेरी एवं रानी मधु मक्खी की श्वांस नली में धुस कर शरीर से खून चूस कर अपना भोजन लेती है। एकरीन रोग से प्रभावित मौने मौनगृह के द्वारा पर रेंगती हुई चलती है तथा मौनों के पंख अंग्रेजी के K अक्षर के आकार में दिखाई देती है। रोगी मौनों को पेचिश होने लगती है तथा मल के पीले पीले धब्बे मौनगृह के अन्दर तथा बाहर छिटके हुये दिखाई देते हैं।
उन्होंने बताया कि माइट से बचाव हेतु रोगग्रस्त क्षेत्रों में मौनवंशों का माइग्रेशन न करें तथा रोगी मौनवंशों के अण्डे एवं लारवा वाले छत्ते स्वस्थ मौनवंशों को न दें। मौनपालक को शक्तिशाली बनाये रखें तथा मौनालय में लूट एवं लड़ाई न होने दें। इसके साथ साथ रोगी मौन वंशों को स्वस्थ मौनवंशों से न मिलायें। उन्होंने कहा कि बैरोवा एवं ट्रोपीलीलप्स क्लेरी माइट से प्रभावित मौनवंशों में सल्फर पाउडर 200 मि0ली0 ग्राम प्रति फ्रेम की दर से साप्ताहिक अन्तराल पर चार बार बुरकाव करें तथा फारमिक एसिड 85 प्रतिशत की 3-5 मि0ली0 मात्रा को एक दिन के अन्तराल पर एक शीशी में लेकर रुई की बत्ती बनाकर मौनगृह के तलपट में शाम के समय रखें और यह उपचार 5 बार किया जाये तथा प्रत्येक दिन दवा को बदलते रहेें। 2-3 ग्राम तम्बाकू की पत्ती का धुआं सप्ताह में दो बार करें तथा नीम का सूखा छिलका नीम की सूखी पत्ती को किसी टिन के बर्तन में रखकर मौनगृह के तल पट पर धुआं करें।
श्री सिंह ने एकरीन रोग से प्रभावित मौनवंशों के उपचार के लिए बताया कि फारमिक एसिड 85 प्रतिशत की 3-5 मि0ली0 दवा प्रति मौनवंश की दर से एक दिन के अन्तराल पर 5 बार फ्यूमीगेशन करें। मिथाइल सैलीसिलेट दवा में सोखता कागज को भिगोकर शाम के समय गेट के अन्दर डाल देना चाहिये तथा सुबह इसे निकाल दें। यह उपचार एक सप्ताह तक लगातार करें और आक्जैलिक एसिड 3 प्रतिशत 5 मि0ली0 प्रति ब्रूड चैम्बर की दर से 8 दिन के अन्तराल पर तीन छिड़काव करें।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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