विधान परिषद में मजहबी आरक्षण को असंवैधानिक बताते हुए भाजपा के हृदयनारायण दीक्षित ने नियम 39 में संवैधानिक औचित्य का प्रश्न उठाया। उन्होंने दिनांक 29 नवम्बर 2012 की परिषद की कार्यवाही का उल्लेख किया और कहा कि नेता सदन अहमद हसन ने सदन में 18 हजार सिपाहियों की भर्ती में 14 प्रतिशत मुसलमानों की भर्ती का दावा किया था। नेता सदन ने आयुष डाक्टरों की भर्ती में भी 18 प्रतिशत मुसलमानों के लिये जाने का दावा सदन मंे किया था।
श्री दीक्षित ने संविधान सभा की 25 मई 1949 की कार्यवाही का उल्लेख करते हुए कहा कि संविधान सभा ने सरदार पटेल के सभापतित्व में अल्पसंख्यक आरक्षण समिति बनाई थी। समिति के प्रतिवेदन पर 25 व 26 मई को बहस हुई थी। नजीरूद्दीन अहमद, मो0 इस्माइल खां, बेगम एजाज रसूल और तज्जमुल हुसैन जैसे संविधान सभा सदस्यों ने मजहबी आरक्षण का विरोध किया था। लेकिन सपा सरकार बार-बार मजहबी आरक्षण का राग अलापती है।
श्री दीक्षित ने कहा कि नेता सदन की घोषणा में नियुक्ति की प्रक्रिया में धांधली दिखाई पड़ती है। मजहब आधारित आरक्षण न होने के बावजूद नेता सदन ने विभिन्न विभागों में मुस्लिम युवकों को भर्ती कराने के लिये कोई तो गोलमाल किया ही होगा। भर्ती में मुसलमानों के लिये अलग से कोई प्राविधान नहीं था। साफ जाहिर है कि सरकार ने नियुक्तियों में नियमों का पालन नहीं किया।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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