हरदोई जनपद में स्कूलों में षिक्षक ही नही है। तब साक्षर भारत यह सर्व षिक्षा अभियान का नारा बेइमानी लगता है। चाहंें वह माध्यमिक विद्यालय हो चाहंे वह परिषदीय विद्यालय दोनो का हाल जस का तस ही है। उदाहरण के तौर पर उच्चीकृत राजकीय उत्तर माध्यमिक विद्यालय समरावां में केवल अमृता बाजपेई एक मात्र षिक्षिका है। वहीं पर अर्धना में सुश्री प्रभा त्रिपाठी दूसरी विद्यालय में कार्यरत एक मात्र षिक्षिका विद्यालय संचालित कर रही है। इनमें सबसे खराब स्थिति सारीपुर सभी टडि़यावां क्षेत्र के है। वहां पर उमा देवी का स्थानान्तरण गृह जनपद जालौन में हो गया। वहां पर एक मात्र प्रधानाचार्य बीएन मिश्रा षिक्षक प्रषासनिक दायित्व के साथ लिपकीय कार्य भी देख रहे है। ऐसे में एक अध्यापक ढेर सारे बच्चों को सारे विषय की षिक्षा कैसे दे सकता है। यही कामोवेष स्थिति परिषदीय विद्यालयों की है। जनपद में 150 प्राथमिक स्कूल बन्द है या एकल अध्यापक के तौर पर संचालित हो रहे है। जहां पर प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय में पढने वाले बच्चों की संख्या 150 व 200 के मध्य है। तो षिक्षण कार्य कैसे हो पाएगा। यह हालत षिक्षा विभाग की जनपद में है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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