नई दिल्ली से लेकर फर्रूक्खाबाद तक अरविन्द केजरीवाल ने इण्डिया अगेंस्ट करप्शन का अभियान चलाया। जिसके खिलाफ आन्दोलन था, वह पहले से दिल्ली में महत्वपूर्ण हो गया। फर्रूखाबाद में क्या होगा, यह देखने के लिए लोक सभा चुनाव तक इन्तजार करना होगा। आन्तरिक और रणनीतिक कमियों के कारण अरविन्द केजरीवाल के अभियान में असर कम है। उन्हें अपने तथा अपने कुछ साथियों पर लगने वाले आरोपों का भी समाधान करना है।
इण्डिया अगेंस्ट करप्शन के आन्तरिक लोकपाल ने यह नहीं सोंचा होगा कि पद सम्भालते काम का बोझ आ पड़ेगा। उन्हें आईएसी के तीन महत्वपूर्ण सदस्यों पर लगे आरोपों की जांच करनी है। यदि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के प्रश्नों को गम्भीरता से लिया गया तो यह सं0 बढ़ सकती है। तक इसमें अरविन्द केजरीवाल भी शामिल हो सकते है।
वैसे किसी भी संगठन के लिए आन्तरिक लोकपाल गठन सार्थक कदम है। खासतौर पर तब जबकि जनलोकपाल बनने की फिलाहाल कोई सम्भावना नहीं है। अरविन्द केजरीवाल ने तीन सेवानिवृत्त न्यायधीशों की सदस्यता वाली एक टीम का गठन किया है। दिल्ली उच्च न्यायालय में पूर्व मुख्य न्यायधीश ए0 पी0 शाह, मुम्बई उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश एच मर्लापल्ले तथा दिल्ली उच्च न्यायालय के ही पूर्व न्यायधीश जसपाल सिंह समिति के सदस्य बनाये गये थे। केजरीवाल की राजनीतिक पार्टी के लोकपाल होेंगे। आन्तरिक लोकपाल के गठन की भांति ही उसके लिए चयनित नाम भी सराहनीय है। तीनों वरिष्ठ पूर्व न्यायधीशों से न्याय की स्वभाविक अपेक्षा की जा सकती है।
लेकिन अरविन्द केजरीवाल की समस्याओं का समाधान इतने से नहीं हो सकता। वह चुनावी राजनीति में उतरने का मन बना चुके है। उनकी गतिविधियों व कार्यक्षेत्र का पहले से कहीं अधिक विस्तार होगा। बडी संख्या में नये लोगों को जोड़ना होगा। इसी के मद्देनजर आशंका उठाई गई थी कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए अच्छे व ईमानदार प्रत्याशियों का चयन किस प्रकार होगा। क्या पर्याप्त संख्या में ऐसे लोग चुनावी राजनीति में उतरने को तैयार होगें।
ऐसे लोंगों में चुनावी राजनीति की सक्रियता लगातार कम होती जा रही है। चुनाव में धनबलियों व बाहुबलियों के साथ मुकाबला आसान नहीं होगा। इसके बाद भी केजरीवाल की पार्टी के लोग जीत गये, तब उनके ईमानदार बने रहने की गारण्टी क्या होगी। इस प्रकार की आशंकायें स्वयं अन्ना हजारे भी वयक्त कर चुके है। इसीलिए उन्होंने कहा था कि वह अरविन्द केजरीवाल के चुनाव मंे उन्हें समर्थन देगें। किन्तु अन्य प्रत्याशियों के बारे में कुछ भी नहीं कह सकते। अरविन्द केजरीवाल चुनाव लड़ने के उत्साह में है। लेकिन सभी आशंकाएं निराधार नहीं है। इण्डिया अगेंस्ट करप्शन की छोटी सी टीम में आरोपी है जब बड़ी पार्टी बनेगी, तब क्या होगा।
अरविन्द केजरीवाल ने कहा भी है कि आन्तरिक लोकपाल प्रशांत भूषण, मयंक गांधी, अंजलि-दमानिया सहित अन्य सदस्यों के खिलाफ लगे आरोपों की जांच कर करेंगे। केजरीवाल के बाद प्रशान्त भूषण आई0ए0सी0 के सर्वाधिक महत्वपूर्ण व सक्रिय सदस्य है। उन पर हिंमाचल प्रदेश में जमीन खरीद को लेकर अनियमितता के आरोप है। मयंक गांधी पर मुम्बई के बिल्डरों से व्यापारिक रिस्ते व अनियमितताओं के आरोप है।
अंजलि दमानिया पर लगे आरोप ज्यादा गम्भीर है। अरविन्द केजरीवाल की विश्वास पात्र अंजलि दमानिया इसी क्षेत्र में जमीन सौदे की अनियमितता की आरोपी है। उन्होंने 2007 में खरबंडी गांव में अपने को किसान दिखाकर 7 करोड़ जमीन खरीदी। इसके बाद यहां प्लाट बनाये गये। तथा पूरी जमीन एसवीवी डेवलपर्स को दे दी गई। इस कम्पनी में अंजलि दमानिया स्वयं डायरेक्टर है। 37 प्लाटों की बिक्री करके मुनाफा कमाया गया। इसी प्रकार बगल के कोदिवाड़े गांव में उन्होंने 30 एकड़ जमीन खरीदी थी। बाद में जांच से पता चला कि उन्हांेने किसान होने के जो सबूत दिये थे। वह पर्याप्त नहीें थे। क्या ऐसे लोगों को साथ लेकर भ्रष्टाचार विरोधी लड़ाई चलाई जा सकती है।
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की बाते अब गम्भीरता से नहीं ली जाती। उन्होंने केजरीवाल से 27 प्रश्न पूछे थे। इनमें से अनेक राजनीति द्वारा प्रेरित है। इनको नजरन्दाज किया जा सकता है। लेकिन केजरीवाल के एन जी ओ के संबध में उठाये गये प्रश्नों का समाधान आवश्यक था।
केजरीवाल के सामने एक अन्य अवरोध है। वह अरोप लगाते है, फिर आगे बढ़ जाते है। यह बात उनके बयानों से ही स्पष्ट है। कहा गया कि जब उन्होंने नितिन गडकरी पर आरोप लगाये थे लवासा घोटाले पर शरद पवाॅर व उनके परिवार को छोड़ दिया था। केजरीवाल ने सफाई में कहा कि पहले 15 मंत्रियों पर लगाये गये उनके आरोपो में इसकी चर्चा हो चुकी है। स्पष्ट है कि चर्चा चलाना फिर उसे छोड़कर आगे निकल जाना उनकी राजनीति है। सलमान खुर्शीद के खिलाफ दिल्ली में आन्दोलन चलाया फिर फर्रूखाबाद निकल जाने की घोषणा कर दी। ये खुर्शीद का निर्वाचन क्षेत्र है। संविधान के अनुसार निर्वाचन क्षेत्र के लोग अपने प्रतिनिधि का अगले चुनाव के पहले कुछ नहीं कर सकते। खुर्शीद फर्रूखाबाद न जाये, तब भी शेष कार्यकाल के लिए मंत्री पद पर रह सकते है। जिस प्रकार शरद पवाॅर सहित 14 मंत्री निश्चित है, वैसे ही सलमाल भी सलामत रहेंगे। जनआन्दोलन में प्रभाव होना चाहिए। केजरीवाल को आन्दोलन के समक्ष आने वाले अवरोध दूर करने हांेगें।
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना स्वागत योग्य है। लेकिन इस आवाज का प्रभाव भी दिखाई देना चाहिए। अन्ना हजारे महाराष्ट्र के कई मंत्रियों तथा सैकड़ों सरकारी अधिकारियों के विरूद्ध कार्रवाई कराने में सफल रहे थे। यह उनकी आत्मशक्ति का प्रभाव था। उनके प्रयास से संसद में लोकपाल विधेयक पेश हुआ। वह कमजोर था, पारित नहीं हो सका, यह बात अलग है। लेकिन अरविन्द केजरीवाल के अभियान में वह बात नहीं है। उनके अभियान से किसी भ्रष्ट नेता, अधिकारी को परेशानी नहीं हुई। उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर जमीन घोटाले का जो आरोप लगाया था, वह बेदम रहा। इससे अधिक तो एक अंग्रेजी अखबार की रिपार्ट तो ज्यादा प्रभावी थी। कि पूर्ति ग्रुप संबधी समाचार प्रकाशित हुआ था। अरविन्द ने सलमान खुर्शीद पर आरोप लगाया, उन्हें ज्यादा महत्वपूर्ण मंत्रालय मिल गया। इससे पहले 15 मंत्रियों पर आरोप लगाये थे। प्रायः सब अपनी जगह पर है। उल्टे कांग्रेस ने भ्रष्टाचार पर हमला बोलने, एफ0 डी0 आई0 का समर्थन करने विरोधी अभियान का असर देखें।
एफ0 डी0 आई0 के विरोध में तो वह आन्दोलन चलाना ही नहीं चाहते। सूचना के अधिकार से प्राप्त रिपार्टों या कैग के दस्तावेज सर्वाजनिक करने से काम नहीं चलेगा। शांतिपूर्ण आन्दोलन में भ्रष्टवादियों को परेशान करने वाला प्रभाव होना चाहिए।।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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