अनुपशहर - आजादी के पहले गंगा के आध्यात्मिक और आलौकिक रूप को ध्यान में ऱखकर इससे संबंधित योजनाएं बनती थी लेकिन आजादी के बाद इस बात को ताक पर ऱख दिया गया जिसके कारण गंगा , गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक गंगा कई स्थान पर जलाशयों में तब्दील हो गई है। यह बात गंगा समग्र यात्रा पर निकली उमा भारती ने आज यहां एक सभा को संबोधित करते हुए कहीं।
उमा भारती ने कहा गंगा गांवों में बसे 85 फीसदी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है जबकि एफडीआई केवल 15 लोगों की लोगों की चिंता करती है जिसको इंडिया कहा जाता है ।उन्होने कहा कि गंगोत्री से गंगा सागर तक गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए करीब 50 हजार करोड़ रुपए की जरुरत पड़ेगी इसे सरकार आसानी से मुहैया करा सकती है। सरकार के पास धन की कमी नहीं है टूजी स्पेक्ट्रम में उसके एक मंत्री तो लाखों करोड़ खा गए। इसलिए केन्द्र सरकार को गंगा के प्रति गंभीरता से विचार करना चाहिए और उसकी अविरल और निर्मल धारा के लिए एक ठोस रूपरेखा बनानी पडेगी।
आजादी के बाद बने फरक्का , नरौरा और टिहरी बांधों ने उच्च तकनीक का इस्तेमाल करते हुए गंगा की एक धारा को अविरल छोड़ा जा सकता है। उन्होने यह भी कहा कि जब यह बांध बनाए गए थे तब यह तय किया गया था कि इन तीनों स्थानों पर गंगा की एक धारा अविरल छोड़ी जाएगी लेकिन विकास की अंधी दौड़ में उसको नजरअंदाज कर दिया गया।इसके कारण कई स्थानों पर गंगा जलाशयों में तब्दील हो गयी है। जल प्रवाह और रेत का अनुपात बिगड़ गया। परंपरागत रूप से पहले केवट,मल्लाह और निषाद गंगा से रेत निकालने का काम करते थे क्योकिं उनकों पता था। कि किस स्थान पर कितनी रेत निकालनी है। लेकिन बाद में यह काम बालू माफियायों के हाथ में चला गया जो रेत नहीं गंगा का खून निकालते है। उमा ने कहा कि रेत निकालने का काम केवल निषाद , मल्लाह और केवटों को ही मिलना चाहिए क्योकिं नदी पर उनका पहला अधिकार है । जिस तरह मंदिर में पुजारी का होता है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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