भाषा संवर्धनात्मक पाठ्यक्रम में उठा सवाल
”केंद्रीय हिंदी संस्थान में हिंदी सीखने के लिए प्रवेश के मानकों एवं पाठ्यक्रम में परिवर्तन होने चाहिए। तभी हिंदी शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार हो पाएगा।”
यह बात आज केंद्रीय हिंदी संस्थान के नवीकरण एवं भाषा प्रसार विभाग की ओर से आयोजित तीस दिवसीय भाषा संवर्धनात्मक पाठ्यक्रम के समापन अवसर पर संस्थान के नजीर सभागार में आयोजित एक कार्यक्रम में संस्थान के प्रोफेसर हरिशंकर ने कही। यह पाठ्यक्रम मिजोरम हिंदी शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालय, आइजोल के इकतीस प्रशिक्षणार्थियों को लेकर अठारह सितंबर से आयोजित था।
प्रो. हरिशंकर ने मुख्य अतिथि के आसन से कहा कि हिंदी का अध्यापक होने के लिए भाषा की विशेषज्ञता होनी आवश्यक है। उन्होंने छात्रों से हिंदी सीखने के लिए हिंदी बोलने व लिखने का निरंतर अभ्यास करने को कहा। उन्होंने कहा कि बार-बार गलतियाँ करके ही किसी भाषा को सीखा जा सकता है और इसके लिए निर्मम आत्मावलोकन जरूरी है।
प्रो. हरिशंकर से सहमत होते हुए नवीकरण एवं भाषा प्रसार विभाग की अध्यक्ष प्रो. सुशीला थॉमस ने कहा कि हमने विभाग में कौशलपरक पाठ्यक्रम का विकास करने की भरसक कोशिश की है। इसका सकारात्मक परिणाम हमने छात्र-छात्राओं की उत्तर-पुस्तिकाओं में देखा है।
प्रो. थॉमस ने विद्यार्थियों को अधिक से अधिक मुद्रित सामग्री पढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने हिंदी संस्थान को देश के विभिन्न भू-भागों की संस्कृतियों के आदान-प्रदान का एक सुंदर मंच बताया।
मिजोरम से विद्यार्थियों के साथ आए उनके मार्गदर्शक श्री दिनेश द्विवेदी ने एक माह व्यापी इस कार्यक्रम को उत्साहप्रद बताया। उनका कहना था कि इस एक माह में उनके प्रशिक्षणार्थी सड़क से लेकर बाजार तक हिंदी के प्रेरणास्पद वातावरण में रहे, जो मिजोरम में रहकर शायद संभव नहीं हो पाता। उन्होंने संस्थान के शिक्षकों का तहेदिल से आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे प्रशिक्षणार्थी अपने प्रांत में जाकर उनके ज्ञान का सदुपयोग करेंगे और हमेशा कृतज्ञ रहेंगे।
कार्यक्रम के अध्यक्ष और संस्थान के कुलसचिव डॉ. चंद्रकांत त्रिपाठी ने अपने उद्बोधन में प्रो. हरिशंकर द्वारा उठाए गए मुद्दों पर सहमति जाहिर करते हुए उन्हें विचारणीय बताया। डॉ. त्रिपाठी ने विद्यार्थियों को सीख देते हुए कहा कि आपसी बातचीत और व्यवहार में हिंदी को लाए बगैर आप हिंदी नहीं सीख सकते। किसी भी भाषा को सीखने के लिए उसका निरंतर अभ्यास और उपयोग जरूरी है। हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं का नियमित अध्ययन भी भाषा सीखने में सहायक होगा।
कार्यक्रम के बीच पर - परीक्षण में विजयी प्रतिभागी पुरस्कृत किए गए। कार्यक्रम का संचालन
डॉ. प्रमोद रावत ने किया। धन्यवाद ज्ञापन दिया डॉ. भरत सिंह पमार ने।
मालूम हो कि मिजोरम के प्रशिक्षणार्थियों के लिए आयोजित इस माह व्यापी पाठ्यक्रम में प्रो. सुशीला थॉमस ने हिंदी संरचना और भाषा, प्रो. हरिशंकर ने शिक्षा मनोविज्ञान, डॉ. के.जी. कपूर ने पाठ-नियोजन,
डॉ. अजेय पंडित ने हिंदी साहित्य और भाषा परिमार्जन, डॉ. प्रमोद रावत ने भाषा विज्ञान और डॉ. देवीसिंह देवड़ा ने हिंदी साहित्य का अध्यापन किया।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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