समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता एवं सदस्य विधान परिषद राजेन्द्र चैधरी ने प्रेस कांफ्रेन्स में कहा हैं कि काली कमाई के कई करोड़ रूपए फूंक देने के बावजूद बसपा की तथाकथित रैली में अपेक्षित भीड़ न जुटने से पूर्व मुख्यमंत्री का बौखला जाना स्वाभाविक है। इसी के चलते वे प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव और देश के अति सम्मानित नेता श्री मुलायम सिंह यादव के विरूद्ध अमर्यादित, असंगत और असंयमित बातें बोलती रही। यह उनके अपने संस्कार हैं जिनमें चार बार मुख्यमंत्री के पद पर रहने के बाद भी बदलाव नहीं आया है। भारतीय राजनीति और हमारी लोकतंात्रिक प्रणाली के लिये यह गर्व की बात है कि देश की गरीब जनता, खेत खलिहान, गरीब आदमी के संसाधन गाय-भैंस, समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहने के कारण मुलायम सिंह जी “धरती पुत्र“ है।
बसपा अध्यक्ष का पांच साल का पूरा कार्यकाल भ्रष्टाचार और जन विरोधी कार्यो से भरा रहा है। माफियाओं की पौबारह रही। किसान, नौजवान, व्यापारी, शिक्षक,वकील सब उनके राज में उत्पीड़न के शिकार हुए। विरोधियों पर फर्जी मुकदमें लादे गए। जनता तबाह थी और उनसे मुक्ति चाहती थी। जनता उनके कारनामे भूली नहीं तभी बसपा को सत्ता से बाहर जाने का रास्ता दिखा दिया गया। बसपा राज में विकास ठप्प रहा। भ्रष्टाचार और लूट का बोलबाला रहा। बसपा की 9 अक्टूबर,2012 की रैली के आयोजक वे ही सब पूर्व मंत्री थे जो भ्रष्टाचार की जांचो में फंसे हुए हैं और जेल जाने की आशंका से डरे हैं। अपने गुनाहों पर पर्दा डालने और आम जनता को गुमराह करने के लिए ही यह नौटंकी हुई है।
पूर्व बसपा मुख्यमंत्री को सत्ता जाने के बाद दलितों, गरीबों, ब्राह्मणों की याद आ रही है। अपने कार्यकाल में तो वे इन सबको अपमानित ही करती रही थी। कभी किसी पीडि़त से मिली नहीं। उनके आवास और दफ्तर के दरवाजे चन्द खास लोगों या बड़ा कमीशन देनेवालों के ही लिए खुलते थे। दलित बच्चियों से बलात्कार और हत्या तक के मामलों में कभी उनकी संवेदना नहीं जागी। समाजवादी पार्टी के राज में कथित अपराध वृद्धि की बात करते वे भूल जाती हैं कि उनके कार्यकाल में ही आधा दर्जन से ऊपर मंत्री भ्रष्टाचार, बलात्कार में जेल गए। लोकायुक्त की जांच में फंसे कई मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ गया था।
बसपा की इस रैली में 3 करोड़ रूपए में 10 ट्रेनों से मात्र 12 हजार यात्री ढोए गए। बसों और कारो पर बेतहाशा धन खर्च किया गया। यह धन कहां से आया इसकी जांच होगी। सत्ता के दुरूपयेाग और घोटालों से कमाई धनराशि के बल पर दागियों को बचाने के लिए रैली कर बसपा दल ने एक नई परम्परा शुरू की है। राजनीति के नाम पर भ्रष्टाचार और अपने कुकर्मो पर पर्दा डालना सरासर राजनीतिक बेईमानी है। जनता इससे भी अवगत है कि बसपाकी पूर्व मुख्यमंत्री भाजपा की पुरानी सहयोगिनी रही हैं। गुजरात के दंगो के बाद ही वह मोदी के समर्थन में चुनाव प्रचार करने गई थी। केन्द्र में इस समय कांग्रेस के साथ इसलिए हंै कि उनके भ्रष्टाचार की जांच में तेजी न आने पाए। सत्ता जाने से सदमें में आई पूर्व मुख्यमंत्री मीडिया एवं अफसरों को भी आतंकित करने में लगी है।
समाजवादी पार्टी की सरकार जनता की सरकार है, पत्थरों की नही। पार्टी अपने चुनावी वायदों से बंधी है जबकि बसपा में चुनाव घोषणापत्र का कोई स्थान नहीं है। वहां तो उनकी नेता की मनमानी चलती है। मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव के 6 माह के कार्यकाल में विकास की गति तेज हुई है। 2 लाख करोड़ का बजट पास हुआ है जिसमें खेती, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क,रोजगार को प्राथमिकता दी गई है। उन्होने राजनीतिक द्वेषवश कोई काम नहीं किया है। छः महीने के अल्प अवधि में ही श्री अखिलेश यादव जी के नेतृत्व में समाजवादी सरकार ने प्रदेश में लोकतंत्र, पारदर्शी प्रशासन की नीति के तहत प्रदेश के लोगों में एक नये आत्म विश्वास का संचार किया है। समाजवादी पार्टी के घोषणापत्र के अनुसार विद्याधन, बेरोजगारी भत्ता, ऊर्जा, सिंचाई, औद्योगिक नीति पर संकल्प के साथ काम हो रहा है। प्रदेश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को ठीक कर उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने के लिये समाजवादी पार्टी और उसकी सरकार कृतसंकल्प है। लोकतंत्र को बहाल किया गया है। बसपा मुख्यमंत्री का अपने भ्रष्ट मंत्रियों के पक्ष में समाजवादी पार्टी को भयंकर राजनीतिक परिणाम की चेतावनी देना जताता है कि उनका मानसिक संतुलन ही बिगड़ गया है। उन्हे न तो लोकराज में विश्वास है और नहीं लोकलाज की चिन्ता।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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