भारत की संरक्षण संगठनों में एक प्रमुख संगठन डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इण्डिया जिनके कार्यक्रम एवं परियोजनाऐं पूरे देश में प्रसारित हैं, उत्तर प्रदेश वन विभाग की भागीदारी और एचएसबीसी समर्थित कार्यक्रम ’’जीवन के लिए नदियाँ, नदियों के लिए जीवन’’ के तत्त्वाधान में तीन दिवसीय जागरूकता कार्यक्रम, ‘‘मेरी गंगा, मेरी डाॅल्फिन’’ की अगुवाई कर रही है। यह कार्यक्रम उत्तर प्रदेश और आस-पास के इलाकों में 5 से 7 अक्टूबर 2012 तक चलाया जायेगा। अभियान का मकसद 2800 किलोमीटर लम्बी गंगा नदी और इसकी सहायक नदियों जैसे यमुना, सोन, केन, बेतवा, घाघरा और गेरुआ में पाये जाने वाले डाॅल्फिनों की संख्या का पता लगाना है। इसके साथ-साथ गंगा के किनारे बसे स्थानीय समुदायों में राष्ट्रीय जलीय स्तनधारी की उपस्थिति एवं संरक्षण की महत्व के बारे में जागरूगता फैलाई जायेगी व इन जलीय स्तनपायी के संरक्षण में सहायता देने वाले साझीदारों के क्षमता निर्माण में भी मदद की जायेगी। अभियान के दौरान इन नदियों में पाये जाने वाले डाॅल्फिनों की कुल संख्या की घोषणा उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव तिथि 7 अक्टूबर, 2012 को करेंगे। उत्तर प्रदेश के माननीय परिवहन मंत्री राजा अरिदमान सिंह द्वारा इस अभियान की शुरूआत 5 अक्टूबर, 2012 को हरी झण्डी दिखाकर की जायेगी।
आमतौर पर ‘‘सुसु’’ या ‘‘सूंस’’ के नाम से प्रचलित गंगा नदी की डाॅल्फिन (प्लेटनिस्टा गैंजटिक) गंगा, ब्रह्मपुत्र एवं मेघना नदी प्रणालियों की एक स्थानीय जीव है और यह दुनिया की चार स्वच्छ जल डाॅल्फिनों में एक है। दो या इससे अधिक नदियों के संगम और इसके आस-पास के मुख्य रूप से गहरे पानी में रहने वाले यह स्तनधारी जीव मगरमच्छों, स्वच्छ जल कछुओं एवं आद्र प्रदेश में रहने वाले पक्षियों के साथ निवास करते हैं। इनमें से अधिकांश मछली भक्षक होने के कारण इनका डाॅल्फिनों के साथ संभावित प्रतिद्वन्द्वी रहती है। डाॅल्फिन नदियों की एक संकेतक जानवर है व प्रायः इसे ‘‘गंगा की बाघ’’ के नाम से जाना जाता है। एक नदी पारिस्थितिक तंत्र में इनकी स्थिति ठीक वैसी ही है जैसे की जंगल में एक बाघ की है, नदियों में इसकी उपस्थिति एक स्वस्थ नदी पारिस्थितिक तंत्र की प्रतीक को दर्शाता है।
अभियान के बारे में, डाॅ. रुपक डे पीसीसीएफ (वन्य जीव), उत्तर प्रदेश वन विभाग ने बताया, ‘‘गंगा नदी की डाॅल्फिन, भारत की राष्ट्रीय जलीय जानवर एकमात्र करिश्माई जबरदस्त जन्तु और नदी पारिस्थितिक तंत्र के लिए एक संकेतक जाति है। देश में तेजी से घटते डाॅल्फिनों की संख्या एक बहुत बड़ी चिंता और इसके तरफ शीघ्र ध्यान देने की आवश्यकता है। इस ओर सबसे पहले उत्तर प्रदेश वन विभाग और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इण्डिया द्वारा कदम उठाया गया, जिसका उद्देश्य स्थानीय समुदाय की संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करना है।
पिछले कुछ सालों में डाॅल्फिनों के रहने के स्थान में जबरदस्त रूप से कमी आई है। विभिन्न विकासात्मक गतिविधियों जैसे डैमों एवं बैराजों के निर्माण के परिणामस्वरूप नदी प्रवाहों का सिकुड़ना, अंधाधंुध मछली पकड़ने, वन-उन्मूलन के कारण नदियों में गाद जमना, नदियों का प्रदूषित होने व निवास स्थान विनाश के कारण इनकी संख्या पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। भारत में वर्ष 1982 के दौरान डाॅल्फिनों की अनुमानित संख्या 4000-5000 के बीच थी, लेकिन अब इनकी संख्या 2000 से भी कम है और इनकी वार्षिक अनुमानित मृत्यु दर 130-160 की संख्या के बीच है। यह स्तनधारी जीव अब भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 में सूचीबद्व है एवं इसे विश्व संरक्षण संघ (आईयूसीएन) द्वारा ‘‘लुप्तप्राय’’ के रूप में वर्गीकृत किया है। इसे राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर उच्च स्तर की कानूनी संरक्षण की आवश्यकता है।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इण्डिया के नदी घाटियों एवं जल नीति के निदेशक, श्री सुरेश बाबू ने इस अभियान के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘मेरी डाॅल्फिन, मेरी गंगा’’ कार्यक्रम का आयोजन डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इण्डिया द्वारा एचएसबीसी जल कार्यक्रम एवं उत्तर प्रदेश वन विभाग के संरक्षण में किया है जिसका लक्ष्य डाॅल्फिन संरक्षण के लिए सहयोगपूर्ण कार्य पर संदेश फैलाना और पूरे उत्तर प्रदेश राज्य में एक डाॅल्फिन गणना आयोजित करना है।’’
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इण्डिया ने गंगा नदी की डाॅल्फिनों को विशेष ध्यान देने वाली जाति के रूप स्वीकार किया है और इसके लिए इन्होंने 1997 में गंगा नदी डाॅल्फिन संरक्षण कार्यक्रम की शुरूआत की। इस संगठन ने देश में नेटवर्क भागीदारों के सहयोग से अब तक की इस प्रकार के जीवों की पहली वैज्ञानिक स्थिति सर्वेक्षण आयोजित किया। इस प्रक्रिया में, 20 से अधिक नदियों का सर्वेक्षण हुआ, जिसके दौरान लगभग 6000 किलोमीटर की दूरी कवर किया गया और देश के विभिन्न नदियों में विशेष रूप से गंगा नदी को ही डाॅल्फिनों की आबादी के लिए एक आदर्श निवास स्थान के रूप में पहचान हुई जिसके लिए संरक्षण कार्य की प्राथमिकता दी गई। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इण्डिया ने उत्तर प्रदेश वन विभाग की मदद से उत्तर प्रदेश में गंगा नदी डाॅल्फिन संरक्षण के लिए एक रणनीति एवं कार्य योजना तैयार किया है और पूरे देश में भी गंगा नदी डाॅल्फिन संरक्षण के नेटवर्क के लिए सहयोगी बनाये हैं।
सर्वेक्षण की आवश्यकता को आयोजित करने पर जोर देते हुए डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इण्डिया के एसोसिएट डायरेक्टर (नदी घाटी एवं जैव विविधता), डाॅ. संदीप बेहेरा ने बताया, ‘‘डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इण्डिया ने वर्ष 2005 के दौरान उत्तर प्रदेश के नदियों में 600 नदी डाॅल्फिनों का आकलन किया। उसके बाद से, इन जीवों की कोई व्यापक गणना नहीं की गई। अब इस अभियान के अन्त तक हम उम्मीद करते हैं कि इन जीवों की वर्तमान संख्या स्थिति प्राप्त होगी और उत्तर प्रदेश में इनके संरक्षण के लिए एक कार्य योजना विकसित करेंगे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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