राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक-संरक्षक व सुप्रसि( स्वदेशी विचारक श्री के. एन. गोविन्दाचार्य के नेतृत्व में आज दिनंाक 1 अक्टूबर 2012 को देशभर से आए हजारों कार्यकत्ताओं ने राजघाट पर महात्मा गंाध्ी को श्र(ा सुमन अर्पित करने के उपरांत जंतर मंतर तक मार्च निकाला एवं पूरे दिन जंतर मंतर पर ध्रना दिया। आंदोलन की प्रमुख मांग केन्द्रीय बजट का 7» सीध्े ग्राम पंचायतो को देने के संबंध् मे है। इस क्रम में इसी वर्ष 12, 13 एवं 14 मार्च को तीन दिवसीय ध्रना आयोजित किया गया था और प्रधनमंत्राी को ज्ञापन दिया गया था। किन्तु अभी तक कोई कार्यवाही न होने के कारण इस ध्रने का आयोजन किया गया। इस संबंध् में इसी मांग को लेकर पफरवरी 2013 में रामलीला मैदान में विशाल जनसभा का प्रदर्शन कर सरकार पर दबाब बनाने का निर्णय भी लिया गया है।
इस अवसर पर अपने उदबोध्न में राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक-संरक्षक व सुप्रसि( स्वदेशी विचारक श्री के. एन. गोविन्दाचार्य ने कहा है कि देश की राजनीति में जड़ता की स्थिति आ गई है। इसे तोड़ने के लिए साहसिक राजनैतिक पहल की जरूरत है। देश को राजनैतिक विकल्प देने से पहले वैकल्पिक राजनीति की दिशा निर्धरित करनी होगी। ‘‘केन्द्रीय बजट का 7» राशि सीध्े ग्राम पंचायतों को दी जाय’’ हमारी यह मांग उस वैकल्पिक राजनीति की दिशा में प्रथम कदम है।
महात्मा गंाध्ीजी ने ‘स्वराज्य’ मिलने के पश्चात ‘ग्राम स्वराज्य’ का सपना देखा था। लोहियाजी ने चैखम्बा राज में ‘ग्राम पंचायतों’ को स्थान दिया था। दीनदयाल उपाध्यायजी ने अंत्योदय को पूरा करने के लिए पंचायतों की पुनस्र्थापना पर जोर दिया था। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भी पंचायतों को सत्ता में भागीदार बनाकर सिर के बल खड़े सत्ता के पिरामिड को सीध करने की बात कही थी। इन महापुरुषों ने राजसत्ता और अर्थसत्ता का विकेन्द्रीकरण करके ग्राम स्वराज्य का सपना देखा था। हमारी यह मांग इस दिशा में बढ़ा हुआ एक कदम हैं।
सन 1993 में संविधन संशोध्न के द्वारा देश में नए सिरे से ‘पंचायती राज’ की व्यवस्था बनी। इससे ग्राम-पंचायतों का ढाँचा खड़ा हुआ और उन्हें कुछ कार्यों के अध्किार भी मिले। उस समय केन्द्र सरकार ने वादा किया था कि पंचायतों को ध्न भी दिया जायेगा। पर उस वादे पर ठीक से अमल नहीं हुआ। वित्त आयोग ने पंचायतों को कुछ ध्न सीध्े देने की बात रखी पर ‘उफँट के मुँह में जीरे’ जैसा है। आज पंचायतों को काम करने के अधिकार तो हैं पर ध्न के अभाव में कागजों में हैं। केन्द्र और राज्य सरकार की योजना को सरकारी अध्किारी और कर्मचारी लागू करते हैं जिसमें अभी पंचायतों की भागीदारी दिखावटी है। जिस उद्देश्य के लिए ‘पंचायती राज’ की स्थापना हुई उसको पूरा करने के लिए ही हमने यह मांग रखी है।
स्वतंत्राता के पश्चात दिल्ली और प्रदेशों की राजधनियों में ग्राम-विकास और लोक कल्याणकारी योजनायें बनायी जाती हैं। इन कामों को पूरा करने के लिए ध्न भेजा जाता है। पर इनमें से अध्किांश कामों की दुर्दशा तो सभी जानते हैं। देश के भूतपूर्व प्रधनमंत्राी श्री राजीव गंाध्ी ने एक बार कहा था, ‘‘ विकास कामों के लिए दिल्ली से भेजे गए एक रुपये में से 15 पैसा ही आखिर तक पहुंचता है।’’ आम जनता से कर के माध्यम से प्राप्त पैसा ही केन्द्र और राज्य सरकारें खर्च करती हैं। भ्रष्टाचार से बचाकर कुछ राशि सीधे गाँवों तक पहुँचाने के लिए हमनें यह मांग रखी है।
आज भी गांवों में लगभग 70» आबादी रहती है अतः केन्द्रीय बजट से 7» राशि सीध्े ग्राम पंचायतों को दी जाए। सन 2012-13 में केन्द्रीय बजट लगभग 14 लाख करोड़ रुपये से अध्कि का था और देश में 2.5 लाख ग्राम पंचायतें हैं। इस हिसाब से प्रत्येक ग्राम पंचायत को औसत 40 लाख रुपये मिलेंगे जो बजट राशि के साथ प्रतिवर्ष बढ़ते जाएंगे। ग्राम-विकास के क्षेत्रा में सपफलतापूर्वक काम किए समाजसेवकों के हिसाब से अगर प्रतिवर्ष इतना ध्न ग्राम-पंचायतों को मिलने लगे तो वह गांवांे का कायाकल्प करने के लिए पर्याप्त होगा।
ध्न के इस हस्तांतरण को सरलतम बनाने तथा उसके उपयोग को अध्कितम प्रभावी और लाभदायी बनाने के लिए निम्न रूप से लागू करने की भी हम मांग करते हैं-
1- केन्द्र सरकार सीधे ग्राम पंचायतों के बैंक खातों में धन भेजे।
2- ग्राम सभा ग्राम विकास कार्यों को मंजूर करे।
3- ग्राम सभा द्वारा स्वीकृत योजनाओं को ग्राम पंचायत लागू करे।
4 - राज्य सरकार केवल ग्राम पंचायतों के बही खातों का आडिट करे।
5- बजट के बाद प्रति वर्ष मार्च में पंचायतों को भेजी गई राशि का प्रचार उसी तरह हो जैसे सरकार आजकल पोलियो निर्मूलन अभियान का प्रचार करती है।
इस प्रकार प्राप्त ध्न राशि को विकास कार्यों पर खर्च करने का अध्किार केवल ग्राम-सभा और ग्राम-पंचायत का होगा। उसमें सरकारी अध्किारी और कर्मचारियों की कोई दखलंदाजी नहीं होगी। हर ग्राम-पंचायत एक मंत्रिमंडल के रूप में काम करेगा तथा ग्राम सभा उस गांव की लोकसभा या विधनसभा के रूप में चलेगी। अर्थात् हर गंाव में एक छोटी सरकार होगी।
एनडीए के संयोजक शरद यादव जी ने अपने संबोध्न में चिंता व्यक्त की देश की जनता को हजारो गुटो, समुहों आदि मे बाटा जा रहा हैं जिस कारण जनता की सामूहिक शक्ति प्रकट नही हो पा रही। देश की असली मालिक देश की जनता ही है और इस सरकार को इस सच को स्वीकार करना ही होगा 7» नही 70» देश की ग्रामीण जनता का हक है और वह उसको मिलना चाहिए।
राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन की मांग एवं ध्रने को सैकड़ो संस्थाओं, दलो, संगठनो एवं प्रसि( समाज सेवियों ने अपना समर्थन दिया है। इस अवसर पर मंच से श्री शरद यादव ;संयोजक एनडीएद्ध, श्री जगदीश ममगोई, संजय पासवान, श्री आरीपफ मोहम्मद खान, श्री शिव कुमार शर्मा, श्री रमेश शिलेदार, स्वामी चेतनानंद, डा. गणेशी लाल ;पूर्व मंत्राीद्ध, श्री अनुराग केजरीवाल ;लोकसत्ता पार्टीद्ध, डा. महेश शर्मा ;पूर्व सांसदद्ध, मुन्नी सिंह ;पूर्व विधयकद्ध, माननीय शिवन्ना जी, माननीय जगदीश शेट्टीगार, श्री राकेश दुबे एवं सुरेन्द्र विष्ट जी ने संबोध्ति किया।