उप्र में मूक-बधिर आबादी की जनसंख्या लगातार बढ रही है। लेकिन राज्य में इलाज की उन्नत व्यवस्था नहीं होने के कारण ऐसे बच्चे अपंगता का जीवन जीने को अभिशप्त है। बहरेपन से निजात दिलाने वाली सस्ती बाइनरल कॉकलियर इंप्लांटेशन की तकनीक देश की राजधानी दिल्ली में आ चुकी है। उप्र के कुछ लोग इसका फायदा लेने के लिए पहुंच भी रहे हैं। लेकिन जागरूकता के अभाव में यह संख्या बेहद कम है।
उल्लेखनीय है कि इस समय देश की कुल जनसंख्या का 6.3 फीसदी आबादी सुनने और बोलने में असमर्थ है जबकि उप्र में इनकी संख्या 6.9 फीसदी के आसपास है। जो पूरे देश में बिहार के बाद दूसरे नंबर पर है। उप्र से बडी संख्या में लोग अपने बच्चे के बहरेपन के इलाज के लिए देश की राजधानी दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थित प्राइमस अस्पताल में पहुंच रहे हैं। पूरे उत्तर भारत में यह एक मात्र अस्पताल है जहां बाइनरल कॉकलियर इंप्लांटेशन की व्यवस्था है। इसमें एक ही सर्जरी में दोनों कान में सुनने की क्षमता आ जाती है और खर्च भी सामान्य कॉकलियर इंप्लांटेशन की अपेक्षा 40 फीसदी कम है।
प्राइमस अस्पताल के ईएनटी विभाग के प्रमुख व वरिष्ठ कॉकलियर इंप्लांट सर्जन डॉ सुमित मृग के मुताबिक उप्र में मूक-बधिरों की संख्या में वृद्धि का सबसे बडा कारण असुरक्षित प्रसव है। प्राइमस में इलाज के लिए आने वाले अधिकांश लोगों ने यह स्वीकार किया कि गरीबी के कारण उनके बच्चे का प्रसव किसी अस्पताल की जगह दाईयों ने कराया था। ऐसे प्रसव में संक्रमण का खतरा सर्वाधिक रहता है और इसका एक प्रभाव सुनने की शक्ति के लोप के रूप में भी सामने आता है। उनके अनुसार इसकी अन्य वजहों में बच्चे के कान का लगातार बहना, कान की हडडी का गल जाना, गर्भ में कान का सही विकास नहीं होना और दिमागी बुखार का होना भी है। उप्र से आने वाले मरीजों में एक बडी संख्या मुस्लिम आबादी की है जिनमें यह समस्या ज्यादा देखने में आ रही है। ऐसा निकटवर्ती नातेदारी में शादी और बच्चे के कान बहने पर ध्यान नहीं देने की वजह से हो रहा है।
डॉ सुमित मृग के अनुसार, कॉकलियर इंप्लांट के जरिए बच्चों में सुनने की क्षमता फिर से विकसित की जाती है। ज्ञात हो कि डॉ सुमित मृग को उत्तर भारत में पहला बाइनरल कॉकलियर इंप्लांटेशन का श्रेय जाता है। इसमें एक ही सर्जरी से दोनों कान के सुनने की शक्ति वापस आ जाती है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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