मंथन श्रृंखला के अन्तर्गत ‘अवध की विरासत’ पर विचार गोष्ठी सम्पन्न
अवध की विरासत मिली-जुली संस्कृति की रही है। यहां के साहित्य, संगीत, नृत्य व शेरो-शायरी में यह सांझी संस्कृति नुमाया होती है। गंगा-जुमनी तहजीब की जो मिसाल लखनऊ में मिलती है, वह अन्यत्र नहीं है। लखनऊ विभिन्न संस्कृतियों के मेल-जोल का एक गुलदस्ता है, जो जाति, धर्म, सम्प्रदाय व संकीर्णता से परे है।
ये विचार सुप्रसिद्ध इतिहासविद् व लखनऊ की संस्कृति के जानकार डाॅ0 योगेश प्रवीन ने आज एनेक्सी स्थित मीडिया सेन्टर में व्यक्त किये। वे सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा आरम्भ की गई विचार गोष्ठी श्रृंखला ‘मंथन’ के अन्तर्गत ‘अवध की विरासत’ विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित कर रहे थे।
डाॅ0 योगेश प्रवीन ने कहा कि अवध की विरासत में हठधर्मिता नहीं रही है। लखनऊ शहर जोकि अवध क्षेत्र का केन्द्र है अपनी नजाकत, नफासत व तहजीब के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। यह शहर जहां एक ओर मीर तकी मीर, मजाज लखनवी, हसरत मोहानी व सौदा की शेरो-शायरी से लबरेज है, वहीं दूसरी ओर यह शिवानी, अमृतलाल नागर व भगवती शरण वर्मा जैसे साहित्यकारों की रचनाओं का गवाह भी है। उन्हांेने कहा कि वाजिद अली शाह की रचनाएं और हादी रूसवा की उमराव जान अदा आज भी काफी मशहूर हैं।
डाॅ0 प्रवीन ने कहा कि जो पराजित न हो, वही अवध है। उन्हांेने कहा कि यह क्षेत्र प्रेम, न्याय, उपकार व करूणा से संपृृक्त है। उन्होंने कहा कि रामराज्य की अवधारणा अवध में विकसित हुई थी। उन्हांेेने कहा कि अवध सही मायनों में ‘कास्मोपाॅलिटन’ क्षेत्र है, जो सभी संस्कृतियों व धर्माें को समेटे हुए है। इसकी छाप यहां की स्थापत्य कला, साहित्य व संगीत में महसूस की जा सकती है। उन्होंने कहा कि अवध की विरासत, सादगी और मिल-जुल कर साथ रहने की अदा की विरासत है। उन्होंने कहा कि लखनऊ, अवध की विरासत की नायाब मिसाल है। उन्होंने कहा कि लखनऊ में वह ताकत है कि जो भी यहां पर आया, वो यही का होकर रह गया। सहजता व मेहमान नवाजी लखनऊ की विशेषता है। यहां की भाषा व बोली में मिठास है।
डाॅ0 प्रवीन ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि आज की नौजवान पीढ़ी को अवध की विरासत व इसके इतिहास की जानकारी कम है। उन्होंने कहा कि हमारा यह कर्तव्य होना चाहिए कि हम आने वाली पीढ़ी को अवध की विरासत से रूबरू कराये।
सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के संयुक्त निदेशक डाॅ0 अनिल कुमार ने सभी अतिथियों का स्वागत व अभिनन्दन करते हुए कहा कि संस्कृति हमारी प्राण वायु है इसके बिना जीवन की कल्पना असम्भव है। उन्होंने कहा कि अवध की विरासत पर विचार करते हुए हमें इस बात पर भी मंथन करना चाहिए कि आज हम अपनी परम्परा संस्कृति और विरासत से कितने दूर हो रहे हैं।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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