समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता श्री राजेन्द्र चैधरी ने कहा है कि बढ़ती मंहगाई पर खुशी जाहिर कर और श्री मुलायम सिंह यादव पर अभद्र टिप्पणी कर केन्द्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने अपने मानसिक दिवालिएपन का सार्वजनिक प्रदर्शन कर दिया है। जन सामान्य के प्रति इस बयान से उनकी संवेदन शून्यता का परिचय होता है। उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों में इनके इसी तरह के अनाप-शनाप बयानों के चलते हुआ था। कांग्रेस के बड़बोले मंत्रियों ने ही कांग्रेस की लुटिया डुबोई थी और अब भी वे कोई सबक लेने को तैयार नहीं दिखते है।
मंहगाई से किसानों को फायदे की बात कोई सिरफिरा ही कह सकता है। केन्द्र सरकार ने डीजल-पेट्रोल रसोई गैस के साथ खाद के दाम बढ़ाकर खेती को बड़ी हद तक अलाभप्रद बना दिया है। किसान उपभोक्ता भी है। बदहाली में सैकड़ों किसान आत्महत्या को मजबूर हुए हैं। आम आदमी की के लिए तो दाल, सब्जी और फल आदि दूसरे पोषक पदार्थ गायब होते जा रहे हैं। घर-गृहस्थी की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से पटरी से उतर चुकी है। इसके लिए यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियां ही जिम्मेदार हैं। पूरे देश में जब जनता में मंहगाई भ्रष्टाचार को लेकर आक्रोश व्याप्त है तब एक केन्द्रीय मंत्री के जिम्मेदार पद पर बैठा कोई व्यक्ति ऐसी अनर्गल बात करे तो इस पर शर्मिंदा होने के अलावा क्या हो सकता है? जनता त्रस्त है, बेनी बाबू इसी में परपीड़ा सुख से मस्त हैं। उन्होने इतनी अवैध कमाई कर ली है कि उन्हें मंहगाई का एहसास ही नहीं हो रहा है।
जहां तक श्री मुलायम सिंह यादव के बारे में बेनी प्रसाद की अभद्र टिप्पणियेां का सवाल है उसे चांद पर थूकने जैसा दुस्साहस ही करार दिया जा सकता है। आज बेनी प्रसाद वर्मा जो कुछ हैं वह श्री मुलायम सिंह यादव की बदौलत ही है। जिले से उठाकर प्रदेश की राजनीति में उन्हें उन्होने ही स्थापित किया था। श्री मुलायम सिंह यादव के कंधे पर बैठकर उन्होने अपना राजनीतिक कद बढ़ाया पर कृतज्ञता दिखाने के बजाए वे कृतधन हो गए है। श्री यादव के बारे में कुछ बोलने से पहले बेनी प्रसाद वर्मा को यह भी तो सोचना चाहिए था कि वे उनके मुकाबले कहां ठहरते हंै?
समाजवादी पार्टी यूपीए-2 सरकार को अपना बिना शर्त समर्थन दे रही है ताकि सांपद्रायिक तत्वों की केन्द्र में दाल न गलने पाए। लेकिन बेनी प्रसाद जैसे मंत्री श्री मुलायम सिंह यादव के विरूद्ध बोलकर, जो धर्मनिरपेक्षता के इस देश में प्रतीक पुरूष बन गए हैं, सांप्रदायिक और जातीय तत्वों को ही बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं। शायद इसके पीछे उनका पुराना आरएसएस स्वयं सेवक का संस्कार फिर उमड़ आया हो तो ताज्जुब नहीं। वे पहले भी आरएसएस शाखाओं में जाते रहते थे। बेनी प्रसाद वर्मा का यह आचरण राजनीतिक शिष्टाचार एवं मर्यादा के विपरीत है। इसकी जितनी निन्दा की जाए कम है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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