आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों के रिहाई मंच ने समाजवादी पार्टी की सरकार पर आरडी निमेष जांच आयोग के कार्यकाल को न बढ़ाने को कचहरी धमाकों में पकड़े गए निर्दोष मुस्लिम नौजवानों को जेलों में बंद रखने की साजिश करार दिया है। संगठन के संयोजक अधिवक्ता मोहम्मद शुएब ने बताया कि निमेष जांच आयोग की सुनवाई पूरी हो चुकी है, लेकिन बावजूद इसके रिपोर्ट जारी इसलिए नहीं की जा रही है कि आयोग का कार्यकाल पिछले 14 मार्च को खत्म हो चुका है। जिसे सत्ता में आने के बाद समाजवादी पार्टी ने अब तक नहीं बढ़ाया है। जिसके चलते इस घटना में आरोपी बनाए गए आजमगढ़ के तारिक कासमी और मडि़याहूं जौनपुर के खालिद जेलों में सड़ने को मजबूर हैं।
मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के प्रदेश संगठन सचिव शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि एक तरफ तो सरकार के नुमाइंदे समय-समय पर बयान दे रहे हैं कि सरकार चुनाव में किए गए अपने वादे के तहत बेगुनाह युवकों को छोड़ने की प्रक्रिया में है। वहीं पिछले दिनों एडीजी कानून व्यवस्था जगमोहन यादव ने भी कहा था कि जिले के कप्तानों से आतंकवाद के नाम पर पकड़े गए लोगों की जानकारी मांगी गई है जिनकी गिरफ्तारियों पर शिकायतें आईं थीं कि उन्हें गलत तरीके से पकड़ा गया है। पर जिस तरह से तारिक कासमी और खालिद के मामले में सरकार पहले से गठित आरडी निमेष जांच आयोग का कार्यकाल नहीं बढ़ा रही है। जबकि आरडी निमेष जांच आयोग को मायावती सरकार ने 2008 में बनाया था, जिसे 6 महीने में अपनी जांच रिपोर्ट सौंपनी थी। रिहाई मंच ने कहा कि बेगुनाहों की रिहाई पर सरकारों का गैरजिम्मेदाराना रुख सीधे तौर पर सरकार द्वारा मानवाधिकार हनन का मसला बनता है। जिससे जाहिर होता है कि सरकार बेगुनाहों को छोड़ने के अपने वादे से मुकरने की फिराक में है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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