अतिक्रमण के चलते तालाबों का अस्तित्व समाप्त होता चला जा रहा है। अधिकांष तालाबांे पर अतिक्रमण हावी है। एक तरफ जो सरकार ने तालाबों की खुदाई करवा करके जल संचय की मुहिम छेड़ रखी है। वहीं दूसरी तरफ भू-माफिया तालाबों की पटाई करके अवैध कब्जा कर रहे हैं। जो तालाब ख्ुादे भी हैं बरसात हाने के बाद भी उनमें पानी नहीं है। लागों का कहना है कि जब बरसात में आदष्र्या तालाबों का यह हाल है तो बरसात बीत जाने के बाद इन तालाबों का क्या होगा।
सच्चाई तो यह है कि सरकारी विभाग भू-माफियाओं का सहयोग करने में पीछे नहीं है। नए तालाबों की खुदाई व सौन्दर्यीकरण के नाम पर स्वीकृत किए गए धन पर भ्रष्टाचार हावी है। जिससे सरकार की जल संचय योजना को मूर्ति रूप देने की मंषा तार-तार होती नजर आ रही है। हाल स्थानीय विकास खंड क्षेत्र अन्तर्गत आने वाले तालाबों का है। 79 राजस्व गांवों में यदि सरकारी आॅकड़े की मानें तो लगभग 180 छोटे-बड़े तालाब हैं। जबकि जमीनी हकीकत कुछ अलग कहानी बयां कर रही है। राजस्व अभिलेखों में जो तालाब दर्ज है उनका रकबा भी तय है, लेकिन मौके पर तालाब गायब हैं। रखरखाव के आॅकड़े दर्शाने वाले राजस्व विभाग के अधिकारी व कर्मचरी भी कुछ करने की स्थिति में नहीं दिखते हैं। वहीं जल संचय योजना के धन का भी कहीं कोई अता-पता नहीं है। गिरते भू-जल स्तर में तालाबों की अहम भूमिका है। बावजूद इसके भू-माफियाओं की वक्रदृष्टि तालाबों के अस्तित्व को ही मिटाने पर तुली है। सबसे बुराहाल अहदा, उदयपुर, सरकवारी, मुडहा, ष्षाहपुर लपटा का है। जहां पर सरहंगो ने तालाब पाटकर कब्जा कर लिया है। तो कुछ पर लोगों ने पाटकर अवैध निर्माण भी कर लिया है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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