समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता श्री राजेन्द्र चैधरी ने कहा है कि मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने राज्य के वार्षिक बजट में चुनावी वायदों को साकार करने की दिशा में कदम उठाए थे। अब विकास के सपने को जमीन पर उतारने के काम को भी उन्होने गति देना प्रारम्भ कर दिया है। आज साढ़े पांच हजार करोड़ रूपए से अधिक लागत की आठ विभागों की जन सुविधाएं आन लाइन करने की विधिवत शुरूआत करके उन्होने समयबद्ध विकास की राजनीति पर अमल करने का अपना संकल्प पूरा कर दिखाया है। मुख्यमंत्री को इसके लिए समाजवादी पार्टी सराहना करती है और बधाई देती है।
सच यही है कि शपथ ग्रहण के दिन से ही मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव की चिन्ता में प्रदेश का विकास रहा है और उसको गति देने के लिए वे स्वयं प्रयत्नशील रहे हैं। केन्द्र सरकार से पैकेज लाकर उन्होने प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने के सपने को पूरा करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया है। उनकी इस बात के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए किन्तु कुछ तत्व हैं जिन्हें विकास के ये सोपान नहीं नजर आते है। ऐसे लोग सावन के अंधे है।
बसपा की पूर्व मुख्यमंत्री को मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव के ये काम नहीं दिखते हैं उन्हें सिर्फ नाम बदलने की चिन्ता सता रही है। उनके पूरे पांच साल के कार्यकाल में जनता की गाढ़ी कमाई पत्थरों, पार्को, स्मारकों और प्रतिमाओं पर लुटाई जाती रही। महापुरूषों के नाम पर बसपाराज में कमाई और कमीशन का ध्ंाधा चलता रहा। जिलो के नाम बदले गए। महापुरूषों के काम पर और उनके विचारों पर उन्होने कभी चर्चा नहीं की। बस उनके नाम की तिजारत कर उनका अपमान ही किया गया। डा0 भीमराव अम्बेडकर के नाम की आड़ में मुख्यमंत्री अपनी विशाल प्रतिमाएं लगाती रही। काश वे, इन महापुरूषों की स्मृति में जनता की भलाई का कोई काम करती लेकिन विकास से उनका दूर-दूर तक वास्ता नहीं रहा।
समाजवादी पार्टी की सरकार ने केवल पूर्व मुख्यमंत्री की गलतियों को सुधारा है। जहां तक उनके प्रदेश के इतिहास ज्ञान का सवाल है वह इसी से जाहिर है कि वे 1993 में समाजवादी पार्टी को श्री कांशीराम द्वारा सहारा दिए जाने की बात बता रही है जबकि सभी जानते हैं कि श्री मुलायम सिंह ने ही स्व0कांशीराम को इटावा से साॅसद निर्वाचित कराया था। अनर्गल बयानबाजी से पहले उन्हें याद रखना चाहिए कि उनकी जितनी उम्र है उससे ज्यादा श्री मुलायम सिंह यादव की सक्रिय राजनीतिक जीवन है। मुख्यमंत्री जी ने उर्दू-फारसी-अरबी विश्वविद्यालय का नाम महान सूफी संत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के नाम पर रखकर महान कार्य किया है जिस पर एतराज उठाना स्वयं दुर्भावनापूर्ण है। ख्वाजा साहब के न केवल मुस्लिम अपितु लाखों गैर मुस्लिम भी अनुयायी है। इस पर पूर्व मुख्यमंत्री का विवाद पैदा करना वैचारिक और मानसिक दरिद्रता का द्योतक है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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