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सुरक्षित सेतुओं के निर्माण कार्य पर शोध कार्य

Posted on 22 July 2012 by admin

अनुरक्षणरहित सस्ते एवं जलभराव वाले क्षेत्रों के लिए सड़कों के निर्माण के लिए शोध कार्य लोक निर्माण विभाग उ0प्र0 के मुख्य अभियंता श्री राजेन्द्र कुमार श्रीवास्तव द्वारा किया गया है और उन्हें मोती लाल नेहरू नेशनल इंस्टीट्ट आॅफ टेक्नालाॅजी, इलाहाबाद से पीएच0डी0 की उपाधि प्रदान की गयी है।
श्री श्रीवास्तव पहले भी मितव्ययी एवं सुरक्षित सेतुओं के निर्माण कार्य पर शोध कार्य कर मानक डिजाइन जारी करा चुके हैं जो पर्याप्त स्थिर और अपेक्षाकृत मितव्ययी हैं।
वर्तमान शोध कार्य से वर्षों से चली आ रही ग्रामीण मार्गों के अनुरक्षण एवं जल भराव वाले क्षेत्रों तथा आबादी भागों में मार्ग के निर्माण एवं अनुरक्षण की समस्या का समाधान हो सकेगा। उनके शोध कार्य का विषय ‘‘स्टडी आॅफ रिजिड प्योरमेण्ट आॅफ विलेज रोड इन एल्यूवियल रीजन’’ है, जिसमें उनके द्वारा वर्तमान में डामर से बनाई जा रही ग्रामीण सड़कों के स्थान पर कान्क्रीट/आर0सी0सी0 की सड़कों का निर्माण कराने की संस्तुति की गयी है। इस प्रकार के मार्ग की लाइफ 20 वर्ष होगी और अनुरक्षण की लागत नगण्य होगी। वर्तमान में जो ग्रामीण मार्ग डामर के बनते हैं वे भारी यातायात एवं जल भराव के कारण समय से पूर्व क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और उनके लिए पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं हो पाता है। शोध कार्य के मुख्य अंश बिन्दु इस प्रकार हैंः-
मैदानी भागों में ग्रामीण मार्गों में प्रायः डामर मार्गों (Flexible Pavement) का निर्माण किया जाता है जो अत्यधिक वर्षा एवं जल भराव के कारण बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं। इन सड़कों के अनुरक्षण के लिए पर्याप्त व्यवस्था भी नहीं होती है। अतः इनके स्थान पर सीमेण्ट कांक्रीट मार्गों का निर्माण सर्वथा उपयुक्त पाया गया है।
सीमेण्ट कांक्रीट मार्ग जो प्रायः पहले निर्मित किए जाते थे, उनकी प्रारम्भिक निर्माण लागत तारकोल की सड़कों से अधिक होती थी, इस कारण तारकोल के मार्ग बनाना समीचीन होता था। परन्तु अब तारकोल के दाम में बेतहाशा बढ़ोत्तरी होने के कारण, सीमेण्ट कांक्रीट मार्गों का निर्माण अपेक्षाकृत मंहगा नहीं रहा गया है। यदि तारकोल की सड़कों पर होने वाले अनुरक्षण की लागत देखी जाए तो इसकी तुलाना में कांक्रीट मार्ग लगभग 40 प्रतिशत तक सस्ता हो जाता है क्योंकि ग्रामीण कांक्रीट मार्गों की आयु 20 वर्ष तथा तारकोल की सड़कों की आयु 5 से 10 वर्ष तक होती है और उत्तर प्रदेश की मार्ग नीति के अनुसार उन्हें 08 वर्ष में नवीनीकरण कराना आवश्यक होता है।
कांक्रीट मार्गों के निर्माण में ज्वाइन्ट (Joints) लगभग 4.5 मी0 की लम्बाई पर दिये जाते हंै। जिसके कारण यातायात में असुविधा होती है। अतः इन ज्वाइन्ट्स के अन्तर को बढ़ाने के लिए आर0सी0सी0 की सड़कें बनाने पर शोध कार्य किया गया है जिसके अन्तर्गत 50 मी0 तक की लम्बाई की सड़कें बिना ज्वाइन्ट्स के बनाना उपयुक्त पाया गया है।
आई0आर0सी0 कोड के अनुसार आर0सी0सी0 की सड़कों मंे सरिया, सीमेण्ट कांक्रीट की मोटाई के बीचों-बीच में दिया जाता था, परन्तु शोध के अनुसार सरिया की ऊपरी सतह से 04 से0मी0 नीचे तथा निचली सतह से 04 सेमी0 ऊपर देने से आर0सी0सी0 मार्ग की क्षमता में वृद्धि भी प्रस्तावित की गयी है।
आई0आर0सी0 कोड में न्यूनतम कांक्रीट की क्षमता एम-30 प्रस्तावित की गयी है जो कार्यक्षेत्र में बिना आधुनिक यंत्रों संयंत्रों के प्राप्त करना सम्भव नहीं है। अतः शोध के फलस्वरूप इन छोटे कार्यों के लिए न्यूनतम कांक्रीट क्षमता एम-20 जो क्षेत्रों में आसानी से सामान्य यंत्र-संयंत्र से प्राप्त की जा सकती है को प्रस्तावित किया गया है।
कोड में सीमेण्ट कांक्रीट सड़कों में लीन कांक्रीट तथा मुख्य स्लैब के बीच पाॅलीथिन की लेयर प्रस्तावित की गयी है जिसको हटाने से दोनों कांक्रीटों के संयुक्त प्रभाव का अध्ययन किया गया है और जिसमें लगभग 20 प्रतिशत की मितव्ययता प्राप्त की गयी है।
सीमेण्ट कांक्रीट रोड की अपेक्षा आर0सी0सी0 रोड की लागत में लगभग 04 प्रतिशत तक सस्ता होने का तथ्य प्रकाश मंे आया है। सीमेण्ट कांक्रीट रोड के स्थान पर आर0सी0सी0 रोड बनाने से यातायात की सुविधा में वृद्धि होगी।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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